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सूखे हलक के लिए जुड़ने लगे हाथ से हाथ

रांची के अनगड़ा में पशु-पक्षियों के लिए तैयार हो रहा चेकडैम, बोंगईबेड़ा के लोग रविवार करते श्रमदान...

By Srishti VermaEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 10:37 AM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 10:37 AM (IST)
सूखे हलक के लिए जुड़ने लगे हाथ से हाथ
सूखे हलक के लिए जुड़ने लगे हाथ से हाथ

रांची (ब्युरो)। रांची से 25 किमी दूर अनगड़ा का बोंगईबेड़ा जंगल जंगली जीव- जंतुओं से आबाद हो रहा है। हाल के दिनों में यहां पानी की दिक्कत से जानवर परेशान थे। यहां जानवर जिस गूंगा नाला से पानी पीते थे वह भीषण गर्मी में सूख रहा था। कुछ पशुओं की जान गई। ग्रामीणों और वनसुरक्षा समिति ने हालात बदलने की ठानी। तय किया कि चेकडैम बनाकर यहां पानी को रोका जाए ताकि गर्मी में जानवरों की प्यास बुझ सके। सरकारी उम्मीद की बाट नहीं जोहते रहे। फावड़ा, गैंदा, टांगी लेकर खुद जुट गए ग्रामीण।

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पिछले एक महीने से प्रत्येक रविवार को 75-80 की संख्या में ग्रामीण महिला पुरुष सुबह पांच बजे ही गांव से दो तीन किमी दूर हथुवागढ़ा पहुंचते हैं। देखते ही देखते ‘साथी हाथ बढ़ाना’ की तर्ज पर युद्धस्तर पर चेकडैम के निर्माण में जुट जाते हैं। लगातार आठ घंटे श्रमदान किया जाता है। बीस फीट चौड़े व पांच फीट ऊंचे चेकडैम का निर्माण अब अंतिम चरण में है। निर्माण में सीमेंट-बालू आदि पर होनेवाली खर्च की राशि की व्यवस्था ग्रामीण स्वयं आपस में चंदा करके कर रहे हैं। पांच जून को बोंगईबेड़ा जंगल में आयोजित पर्यावरण मेला में इसे वन्य जीव-जंतुओं के लिए समर्पित किया जाएगा।

चेकडैम से यहां पानी ठहर सकेगा और जानवर इससे अपनी प्यास बुझाएंगे। वनसुरक्षा समिति बोंगईबेंड़ा के सचिव सह चेकडैम निर्माण के नेतृत्वकर्ता छोटेलाल महतो बताते हैं कि बोंगईबेड़ा जंगल के बीच से बहनेवाले गूंगा नाला में पानी के जमाव का कोई व्यवस्था नहीं है। जंगल के बीच में खेती की जमीन नही होने से सरकारी स्तर पर चेकडैम का निर्माण नही हो पा रहा था। ग्रामीण भी अपने पालतू मवेशी को चराने इसी जंगल में आते हैं। लेकिन पानी नही होने से हमारे जानवरों को काफी परेशानी हो रही थी। प्यास के कारण अनेक पक्षी व जंगली जानवर मरे
पाये गये। इन्हीं कारणों से श्रमदान से चेकडैम निर्माण करने का निर्णय लिया गया। इसे जल्द ही पूरा कर  लिया जाएगा।

जंगल को किया गुलजार : बोंगईबेड़ा जंगल में आज चेकडैम निर्माण किया जा रहा है लेकिन यह जंगल शुरू से ही ग्रामीणों व वन सुरक्षा समिति आबाद रहा है। दस वर्ष पूर्व यह पूरी तरह उजाड़ हो गया था लेकिन वनसुरक्षा समिति इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कर रही है। पिकनिक के समय में काफी संख्या में यहां पर्यटक आते हैं। बीच जंगल तक आनेजाने के लिए ग्रामीणों ने श्रमदान से पथ भी बनाया है। जंगल में मोर, हिरण, नेवला, खरगोश, भेड़िया, जंगली सूकर, बंदर की आदि की अनेक प्रजाति हैं।

-पूनम जायसवाल 

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