गुजरात विधानसभा चुनावः पर्दे के पीछे से आखिरी दम का जोर
भाजपा से पाटीदारों की नाराजगी को कांग्रेस भुनाने में जुटी, राज्य की 89 सीटों पर चुनाव प्रचार शाम पांच बजे हुआ ठप...
आशुतोष झा, जूनागढ़। केशुभाई पटेल के गढ़ जूनागढ़ का केशौद विधानसभा क्षेत्र - गांव के छोटे से कमरे में पांच छह नौजवान बैठकर मतदाता सूची पर गहनता से चर्चा कर रहे हैं। सामने हमें देखते हैं तो सतर्क हो जाते हैं। यह बताने पर कि मीडिया से हैं और कुछ बातें करना चाहते है, वह तत्काल सूची हटाते हैं। धीरे धीरे आसपास एक दर्जन से ज्यादा नौजवान और कुछ बुजुर्ग भी इकट्ठे होते जाते हैं। ये सभी हार्दिक के समर्थक हैं। तीस बत्तीस साल के बृजेश पटेल और उनके साथी बताने से नहीं हिचकते हैं कि वह इस बार भाजपा को वोट नहीं देंगे। हालांकि तत्काल यह भी कहते हैं कि पहले वह गांव मे भाजपा के शक्ति केंद्र के प्रभारी थे। जाहिर है कि मतदान से चार पांच दिन पहले मतदाता सूची को परखकर वह क्या सुनिश्चित करना चाहते हैं।
केशौद से लगभग सौ किलोमीटर दूर राजकोट का गोंडल विधानसभा क्षेत्र - एपीएमसी यानी खेतीबारी उत्पाद बाजार समिति के अध्यक्ष जयंतीभाई ढोल अपने कमरे में बैठकर यह सुनिश्चत कर रहे हैं कि उत्पाद बेचने के लिए आने वाले किसानों और खरीदी करने वाले व्यापारियों को कोई परेशानी न हो। परिसर में बीस एसी कमरे भी हैं और दूर दराज से आया कोई व्यापारी आराम करना चाहे तो बहुत कम पैसे में वह उपलब्ध है। कोई भी फोन आता है तो वह तत्काल उठाते हैं। इस एपीएमसी से 82 गांव और लगभग बारह सौ व्यापारी जुड़े हैं। वह खुद भी पटेल समुदाय से आते हैं और लेहुआ पटेलों का सबसे बड़ा धर्मस्थल कोंडलधाम भी यहीं है। यह भी ध्यान रहे कि पटेल किसानी भी करते हैं और व्यापार में भी उनकी ही धमक है। पूरे गुजरात में लगभग सात दर्जन एपीएमसी हैं और उसमें से लगभग पांच दर्जन पर भाजपा समर्थकों का कब्जा है।
नेताओं के चुनावी प्रचार से अलग सौराष्ट्र के दो आसपास के जिले और विधानसभा क्षेत्रों में पर्दे के पीछे चल रही यह कवायद बहुत कुछ कहती है। पहले चरण के मतदान के लिए गुरुवार को चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है।्र की 89 सीटों पर शाम बजे के बाद चुनाव प्रचार का होहल्ला बंद हो गया। यानी प्रत्यक्ष अभियान खत्म। अगले दो दिन निचले स्तर पर यही कुछ चलेगा और दोनों पक्षों की ओर से दम लगा दिया गया है। कांग्रेस जाहिर तौर पर हार्दिक के समर्थकों से ही आस लगाए बैठी है। दरअसल यही मौका है जब कांग्रेस पटेलों के असंतोष को भुनाकर कुछ हासिल कर सकती है। बृजेश जैसे पटेल युवाओं के सामने आगे कुआं और पीछे खाई है। सड़क पर उतरकर जिस तरह सरकार को बेदखल करने का ऐलान कर चुके हैं उसमें भाजपा का विरोध करना मजबूरी है। वरना तो उनकी राजनीतिक पैठ ही दांव पर लग जाएगी। यही कारण है कि वह कहते हैं कि लोकसभा में फिर से मोदी को वोट देंगे लेकिन प्रदेश में नहीं। वह यह भी समझते हैं कि प्रभुत्वशाली पटेल अगर ज्यादा आक्त्रामक हुए तो ओबीसी वर्ग आशंकित होकर दूसरी ओर जा सकता है जो उनके पूरे अभियान को पस्त कर देगा। लिहाजा उनकी टीम दूसरे समुदायों को यह समझाने में भी जुटी है कि हार्दिक आरक्षण के लिए ही सब कुछ नहीं कर रहे हैं। वह तो सबकी भलाई के लिए लड़ रहे हैं।
पर यह भी सच्चाई है कि पूरे सौराष्ट्र में हार्दिक के प्रति प्रेम एक समान नहीं है। शहरों मे तो यह प्रेमभाव नगण्य है। जयंतीभाई जैसे लोग यह सुनिश्चित करने में जुटे हैं कि आरक्षण की सच्चाई हर किसी तक पहुंचे।
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