खाद्य सुरक्षा का श्रेय संप्रग को, तोहमत राज्यों के मत्थे
खाद्य सुरक्षा विधेयक में कई ऐसे प्रावधान हैं, जिनका खामियाजा राज्यों को भुगतना पड़ सकता है। यही वजह है कि संप्रग के सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस समेत कई राज्य सरकारों ने विधेयक पर सवाल खड़ा करते हुए सख्त ऐतराज जताया है।
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। खाद्य सुरक्षा विधेयक में कई ऐसे प्रावधान हैं, जिनका खामियाजा राज्यों को भुगतना पड़ सकता है। यही वजह है कि संप्रग के सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस समेत कई राज्य सरकारों ने विधेयक पर सवाल खड़ा करते हुए सख्त ऐतराज जताया है। उनका आरोप है कि सबको रियायती अनाज वितरित करने का श्रेय कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार खुद लेगी, जबकि इसकी खामियों का खामियाजा राज्य सरकारें भुगतेंगी। सबकी रसोई तक रियायती अनाज पहुंचाने के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे के विकास का जिम्मा राज्यों पर डाला गया है। इससे राज्यों के खजाने पर बोझ पड़ेगा।
खाद्य सुरक्षा विधेयक में अनाज के वितरण के लिए राशन प्रणाली, गोदामों की कमी, दुकानों तक पहुंचाने में होने वाली चोरी पर रोक और निगरानी तंत्र विकसित करने की जिम्मेदारी राज्यों पर डाली गई है। लेकिन इसके लिए वित्तीय संसाधन के बाबत खाद्य सुरक्षा विधेयक मौन है। यही नहीं, खाद्य सुरक्षा विधेयक के प्रावधानों के तहत अनाज वितरण में देरी अथवा उपभोक्ता को अनाज नहीं मिलने पर संबंधित राज्य को खाद्य सुरक्षा भत्ता देना पड़ेगा।
विधेयक की इन्हीं खामियों व राज्यों पर डाले गए दायित्वों को लेकर राज्य सरकारें खासा नाराज हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने इसे चुनावी स्टंट बताते हुए खारिज कर दिया है। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने विधेयक के प्रावधानों पर नाराजगी जताते हुए अपनी आपत्तियां दर्ज करा दी हैं। इन मुख्यमंत्रियों को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों [बीपीएल] की सूची के तैयार करने के तरीके और गरीबों की संख्या को लेकर केंद्र सरकार के रवैए पर सख्त ऐतराज है। आर्थिक-सामाजिक जनगणना-2011 को लेकर भी इन राज्यों ने विरोध जताया है। दरअसल, केंद्र व राज्यों के बीच गरीबों की संख्या को लेकर लगातार टकराव बना रहा है।
खाद्य भत्ते का भुगतान केंद्र सरकार के निर्धारित मानक के अनुसार किया जाएगा। इसे लेकर राज्य सरकारों में भारी आक्रोश है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली [पीडीएस] में सुधार का जिम्मा राज्य सरकारों का ही है। सुधार के लिए केंद्र सरकार से फिलहाल कोई मदद नहीं मिलेगी। राशन प्रणाली में सुधार न कर पाने वाले राज्यों को दंडित भी किया जाएगा। इन राज्यों के सामान्य श्रेणी के उपभोक्ताओं को रियायती अनाज आवंटित नहीं किया जाएगा। विधेयक में पीडीएस में सुधार के लिए निश्चित उपाय बताए गए हैं।
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