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जाते-जाते मोदी सरकार व विपक्ष को नसीहत दे गए प्रणब मुखर्जी

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद में अपने आखिरी भाषण के दौरान कहा कि केवल बेहद जरूरी परिस्थितियों में ही अध्यादेश लाया जाना चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 24 Jul 2017 04:28 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jul 2017 02:32 PM (IST)
जाते-जाते मोदी सरकार व विपक्ष को नसीहत दे गए प्रणब मुखर्जी
जाते-जाते मोदी सरकार व विपक्ष को नसीहत दे गए प्रणब मुखर्जी

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद में अपने आखिरी भाषण के दौरान सरकार को अध्यादेश लाने से बचने की नसीहत देने में हिचक नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि केवल बेहद जरूरी परिस्थितियों में ही अध्यादेश लाया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, वित्तीय मामलों में तो अध्यादेश का रास्ता बिल्कुल नहीं अपनाना चाहिए। राष्ट्रपति ने संसद में बिना चर्चा के ही विधेयक पारित करने पर चिंता जताते हुए कहा कि यह जनता काविश्वास तोड़ता है। वहीं हंगामे के कारण संसद के बाधित होने पर भी मुखर्जी ने बेबाक राय जाहिर करते हुए कहा कि इसकी वजह से सरकार से ज्यादा नुकसान विपक्ष का होता है।

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रविवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में भावपूर्ण विदाई समारोह के दौरान प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संसद का सत्र नहीं चलने के दौरान तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्यपालिका को अध्यादेशों के जरिये कानून बनाने के असाधारण अधिकार दिए गए हैं। मगर उनका दृढ़ मत है कि अध्यादेश केवल बाध्यकारी परिस्थितियों में ही लाया जाना चाहिए। खासकर उन विषयों पर तो अध्यादेश बिल्कुल नहीं लाना चाहिए जिन पर संसद या संसदीय समिति विचार कर रही हो या जिन्हें संसद में पेश किया गया हो। उन्होंने बिना चर्चा के विधेयक पारित होने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की सलाह दी। कहा कि जब संसद कानून निर्माण की अपनी भूमिका निभाने में विफल हो जाती है या बिना चर्चा के कानून लागू करती है तो वह जनता द्वारा व्यक्त विश्वास को तोड़ती है। कानून बनाने से पहले व्यापक चर्चा होनी ही चाहिए।
उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष की बेंचों पर बैठकर बहस, परिचर्चा और असहमति के महत्व को उन्होंने बखूबी समझा है। इस अनुभव के आधार पर उनका साफ मानना है कि संसद में हंगामे से विपक्ष का ज्यादा नुकसान होता है क्योंकि इससे वह लोगों की चिंताओं को स्वर देने का अवसर खो देता है।

जीएसटी संघवाद का शानदार उदाहरण
मुखर्जी ने जीएसटी कानून के संसद और विधानसभाओं से पारित होने को सहकारी संघवाद का शानदार उदाहरण बताया। कहा कि यह हमारी संसद की परिपक्वता को जाहिर करता है।



मोदी को सराहा
प्रणब ने राष्ट्रपति के रूप में शपथ को याद करते हुए कहा कि पांच वर्षों में इसकी मूल भावना के साथ संविधान के संरक्षण और सुरक्षा का प्रयास किया। इस कार्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह और सहयोग का उल्लेख करना वह नहीं भूले और कहा कि इसका उन्हें काफी लाभ मिला।

संसदीय लोकतंत्र की देन हूं
इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्होंने पूरा श्रेय संसदीय लोकतंत्र को दिया। कहा कि वास्तव में वह इस संसद की एक कृति और ऐसे व्यक्ति हैं जिसके राजनीतिक दृष्टिकोण और व्यक्तित्व को लोकतंत्र के इस मंदिर ने गढ़ा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के तौर पर सेवामुक्त होने के साथ ही वे संसद का हिस्सा नहीं रहेंगे मगर उदासी के भाव और रंग-बिरंगी स्मृतियों के साथ वे इस भव्य भवन से प्रस्थान कर रहे हैं।



लोकसभा अध्यक्ष ने पढ़ा अभिनंदन पत्र
प्रणब के इस विदाई भाषण से पहले लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने सभी सांसदों की ओर से अभिनंदन पत्र पढ़ा। इसमें उनके शानदार राजनीतिक जीवन, प्रशासनिक योगदान और संसदीय जीवन में गुरु की भूमिका निभाने का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति के रूप में संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने के अमूल्य योगदान की सराहना की गई।

अंसारी ने किया योगदान का जिक्र
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इस मौके पर कहा कि देश के शासन में प्रणब दा के अमूल्य योगदानों का जिक्र किए बिना उनका अभिनंदन अधूरा होगा। इस क्रम में राज्यपालों के लिए मुखर्जी की ओर से पिछले हफ्ते आयोजित विदाई भोज में उन्हें दी गई नसीहत का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मुखर्जी ने राज्यपालों से साफ कहा कि हमारा संविधान ऐसा है जिसमें दो कार्यकारी अथॉरिटी नहीं हो सकते। राज्यपालों की भूमिका केवल मुख्यमंत्री को सलाह देने तक सीमित है।

संसद से विदाई के दौरान दिग्गजों को नहीं भूले प्रणब

 संसद में भावपूर्ण विदाई समारोह के दौरान निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अहम मुद्दों पर बेबाक राय जाहिर करने के साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के तमाम शीर्ष दिग्गजों की दिल खोलकर तारीफ की। पुराने दिग्गजों में इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी तो मौजूदा नेताओं में सोनिया गांधी और लालकृष्ण आडवाणी के संसदीय लोकतंत्र में योगदानों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। 
संसद के केंद्रीय कक्ष में अपने संबोधन के दौरान प्रणब ने पंडित नेहरू के संसदीय लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने के विचारों को आत्मसात कर उनसे प्रेरणा लेने की बात कही। वहीं यह भी बेबाकी से माना कि सांसद के रूप में इंदिरा गांधी की सलाह और बेबाकी से उन्होंने काफी कुछ सीखा। साथ ही अपनी गलतियां स्वीकार कर उसे सुधारने का पहला पाठ भी इंदिरा गांधी से सीखा। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह और सहयोग का जिक्र करते हुए प्रणब ने मोदी के काम की तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि मोदी अपने उत्साह और ऊर्जा के सहारे देश में बड़ा परिवर्तन ला रहे हैं। प्रणब ने मोदी के साथ आपसी रिश्तों को भी मधुर बताते हुए कहा कि उनकी गर्मजोशी और सौम्य व्यवहार की मधुर स्मृतियां उनके साथ रहेंगी।
प्रणब ने शासन और संसदीय जीवन में बड़े सामाजिक बदलावों के लिए कानून बनाने में सोनिया गांधी के समर्थन और योगदान की तारीफ करने में हिचक नहीं दिखाई। उन्होंने लिखित भाषण से इतर जाकर सोनिया के समर्थन का उल्लेख किया। संसदीय जीवन में पुराने दिग्गजों भूपेश गुप्ता, राजनारायण, मधु लिमये, इंद्रजीत गुप्ता, पीलू मोदी आदि के अलग-अलग गुणों से सीखने का जिक्र किया। तो पीवी नरसिम्हा राव के बौद्धिक ज्ञान, अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण के साथ मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी के परिपक्व परामर्श से लाभान्वित होने का उल्लेख करना भी वह नहीं भूले। 
केंद्रीय कक्ष में विदाई समारोह के दौरान सांसदों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के तमाम सदस्यों के अलावा पक्ष-विपक्ष के कई बड़े दिग्गज मौजूद थे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, एचडी देवेगौड़ा, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी ने भी इस दौरान मुखर्जी के विदाई भाषण को बड़े गौर से सुना। वहीं मुखर्जी ने संसद की ओर से दी गई भावपूर्ण विदाई और अभिनंदन के लिए सांसदों का आभार भी जताया।

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