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गरीबी पैमाने को लेकर खुद कन्फ्यूज है सरकार

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। सरकार भले ही गरीबी घटाने का डंका पीट रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि गरीबी मापने के लिए उसके पास कोई ठोस पैमाना ही नहीं है। सरकार में ही अलग-अलग कमेटियां व संस्थाएं गरीबों का अलग-अलग आंकड़ा पेश करती रही हैं। हालत यह है कि पिछले एक दशक में तीन समितियां गरीबी मापने के तीन पैमाने बता चुकी हैं तो

By Edited By: Published: Thu, 25 Jul 2013 09:02 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jul 2013 09:11 PM (IST)
गरीबी पैमाने को लेकर खुद कन्फ्यूज है सरकार

नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। सरकार भले ही गरीबी घटाने का डंका पीट रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि गरीबी मापने के लिए उसके पास कोई ठोस पैमाना ही नहीं है। सरकार में ही अलग-अलग कमेटियां व संस्थाएं गरीबों का अलग-अलग आंकड़ा पेश करती रही हैं। हालत यह है कि पिछले एक दशक में तीन समितियां गरीबी मापने के तीन पैमाने बता चुकी हैं तो ऐसी दो रिपोर्टे आना अभी बाकी हैं।

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केंद्र सरकार ने गरीबों की संख्या का आकलन करने के लिए सुरेश तेंदुलकर कमेटी, एनसी सक्सेना समिति व अर्जुन सेन कमेटी का अलग-अलग गठन किया। इनकी रिपोर्ट लगभग एक ही समय प्रस्तुत की गईं। इनमें सभी कमेटियों ने गरीबों की संख्या का आकलन अपने-अपने पैमाने पर किया। इनमें प्रति व्यक्ति रोजाना की कैलोरी को आधार बनाया गया। इस कैलोरी आधार को समझना आम आदमी के लिए खासा मुश्किल है। इसके मुताबिक शहरी व्यक्ति को रोजाना 2100 और ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी का पैमाना था। लेकिन इस पर विवाद रहा। इसे भुखमरी का पैमाना तो माना जा सकता है, लेकिन गरीबी का नहीं। बाद में इसकी जगह भोजन, ईधन, बिजली, कपड़े और जूते को पैमाना माना गया।

इन पैमानों पर सितंबर, 2011 में तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक देश में गरीबों की संख्या 37.2 फीसद बताई गई। वहीं, एनसी सक्सेना कमेटी ने गरीबों की तादाद 70 फीसद बता डाली। बात यहीं नहीं रुकी। अर्जुन सेन कमेटी ने तो गरीबों की संख्या 77 फीसद तक बताई। सेन कमेटी ने निष्कर्ष निकाला था कि देश की 80 फीसद आबादी 20 रुपये रोजाना पर जिंदगी बसर कर रही है। ऐसे में सरकार ने सबसे कम गरीब बताने वाली तेंदुलकर समिति की सिफारिश को मंजूर कर लिया। लेकिन इस पर हंगामा मचा तो सरकार ने गरीबों की संख्या का निर्धारण करने वाला फार्मूला सुझाने के लिए सी रंगराजन कमेटी का गठन कर दिया। अब इस समिति की रिपोर्ट 2014 में आने वाली है।

गरीबों को चिन्हित करने के लिए सरकार व्यापक 'सामाजिक-आर्थिक व जातिगत जनगणना-2011' करा रही है। इस जनगणना में निर्धारित मानक के आधार पर गरीबी जांची व परखी जाएगी। तब गरीबों का एक और आंकड़ा आ जाएगा। सामाजिक- आर्थिक व जातिगत जनगणना के आंकड़े इस साल के आखिर तक आने हैं। यह जनगणना दो साल पीछे चल रही है। भला सरकार किस रिपोर्ट को सही मानेगी?

सामाजिक-आर्थिक जनगणना का पैमाना

ऐसे परिवार बीपीएल सूची से स्वत: हो जाएंगे बाहर

-जिनके पास मोटर चालित दोपहिया, तिपहिया, चौपहिया वाहन, मछली पकड़ने की नाव है

-जिनके पास मशीन चालित तीन व चार पहिया वाले खेती के उपकरण हैं

-50 हजार और इससे अधिक की सीमा वाले किसान क्रेडिट कार्डधारक

-सरकारी नौकरी वाले सदस्य का परिवार

-सरकार में पंजीकृत गैर कृषि उद्योग वाले परिवार

-10 हजार अथवा अधिक मासिक वेतन वाले का परिवार

-आयकरदाता, व्यावसायिक करदाता

-पक्के मकान, रेफ्रिजरेटर, लैंड लाइन फोन वाले

-ट्यूबवेल व ढाई एकड़ जमीन वाले परिवार

-दो फसली खेती वाली पांच एकड़ जमीन वाले

ऐसे परिवार बीपीएल सूची में स्वत: शामिल होंगे

-बेघर परिवार, निराश्रित व भिक्षुक, मैला ढोने वाले, आदिम जनजातीय समूह तथा कानूनी रूप से मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूर

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