गंगा में गंदगी जाने से रोकेगा फाइटोरिड
गंगा-यमुना में गिर रहे सीवेज की सफाई के लिए लगे ट्रीटमेंट प्लांट बिजली न होने के कारण बंद पड़े रहते हैं जिसके चलते गंदा पानी ही सीधे नदियों में गिरता रहा है। नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने इस समस्या का हल ढ़ूढ़ते हुए एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिसके
नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। गंगा-यमुना में गिर रहे सीवेज की सफाई के लिए लगे ट्रीटमेंट प्लांट बिजली न होने के कारण बंद पड़े रहते हैं जिसके चलते गंदा पानी ही सीधे नदियों में गिरता रहा है। नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने इस समस्या का हल ढ़ूढ़ते हुए एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिसके जरिये गंदे पानी को साफ करने के लिए बिजली की जरूरत नहीं पड़ेगी। फाइटोरिड नाम की इस तकनीक को नीरी ने गंगा की सफाई के लिए देने की पेशकश की है।
फाइटोरिड की खासियत यह है कि इसके जरिये नगरपालिकाओं, अस्पतालों, कालोनियों, औद्योगिक इकाइयों, रेलवे स्टेशनों और सार्वजनिक शौचालयों से निकलने वाले गंदे पानी को साफ किया जा सकता है। फाइटोरिड से साफ होने के बाद पानी का इस्तेमाल पार्क में लगे पेड़-पौधों को पानी देने, फव्वारों और सिंचाई के लिए हो सकता है।
गंगा को निर्मल बनाने के लिए नीरी ने यह तकनीक देने की पेशकश की है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से आयोजित 'गंगा मंथन' कार्यक्रम नीरी के प्रधान वैज्ञानिक राजेश बिनीवाले ने फाइटोरिड के जरिये गंगा में गिरने वाले नालों की गंदगी को साफ करने का प्रस्ताव किया। बिनीवाले ने कहा कि फाइटोरिड के तहत जलीय पौधों का इस्तेमाल कर गंदे पानी को शुद्ध किया जाता है। इसमें कुछ विशेष प्रकार की घास तथा दूसरे जलीय पौधे रोपे जाते हैं जो जल को शुद्ध करते हैं। फाइटोरिड तकनीक तीन स्टेज में काम करती है। पहली स्टेज में ईट और पत्थर तथा बजरी डाली जाती है। इस पथरीली संरचना से इस तरह पानी निकाला जाता है कि गंदे पानी का स्तर इससे ऊपर न उठे। उसके बाद यह जल पौधों तक पहुंचाया जाता है जो इसे साफ करते हैं।
बिनीवाले ने कहा कि फाइटोरिड के जरिये गंदे जल में बीओडी के स्तर में 78 से 84 प्रतिशत कमी हो जाती है। इसी तरह कॉलीफार्म के स्तर में भी 90 से 97 प्रतिशत की कमी आ जाती है। बिनीवाले ने कहा कि फाइटोरिड का संयंत्र 35 वर्ग मीटर क्षेत्र में लगाया जा सकता है। इसकी लागत करीब 1.20 से 1.30 लाख रुपये आती है। नीरी फाइटोरिड तकनीक का पेटेंट करा चुका है और इसका इस्तेमाल मुंबई यूनिवर्सिटी परिसर में सीवेज ट्रीटमेंट के लिए किया गया है।