10 साल से न्याय के इंतजार में गैंगरेप की शिकार आदिवासी महिलाएं
2007 में गैंगरेप की शिकार हुई 11 महिलाएं पिछले 10 साल से न्याय का इंतजार कर रहीं हैं। हैरानी की बात ये है कि जांच में लापरवाही करने वाली पुलिस मामले की सुनवाई शुरू नहीं होने देना चाहती।
विशाखापत्तनम। गैंगरेप की शिकार वाकापल्ली आदिवासी समूह की महिलाएं पिछले 10 साल से न्याय के संघर्ष कर रही हैं। आदिवासी क्षेत्र की 11 महिलाओं को 2007 में अराजकतत्वों ने अपना शिकार बनाया था। मानव अधिकार मंच के जनरल सेक्रेटरी वीएस कृष्णा का कहना है कि ऐसी महिलाएं जो मंडल क्वार्टर पर जाने से भी घबराती हैं उन्होंने इन दुराचारियों के खिलाफ पिछले 10 साल से जंग छेड़ हिम्मत दिखाई है जो अपने आप में बड़ी बात है। दुखद ये है कि दस साल बीत जाने के बाद भी आज तक केस की सुनवाई शुरू नहीं हो सकी।
महिलाओं ने पुलिस पर लगाए थे आरोप
गैंगरेप के बाद आईपीसी की धारा 376 और एससी एसटी उत्पीड़न एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। जांच के दौरान महिलाओं ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने उनकी मेडिकल जांच में जानबूझ कर देरी की ताकि आरोपियों के खिलाफ सबूत न मिल सकें। हालांकि पुलिस ने ये कहकर इन आरोपों का खंडन किया था कि महिलाओं ने माओवादियों के दवाब में ये आरोप लगाए हैं।
सरकार दबा रही मामला
कुछ महिला संगठनों का आरोप है कि सरकार मामले को दबाना चाहती है इसीलिए पुलिस जांच में लापरवाही कर रही है। महिला चेतना समिति की सदस्य के पदमा का कहना है कि चूंकि वाकापल्ली माओवादियों का बड़ा केंद्र है। ऐसे में पुलिस विद्रोहियों पर आरोप लगाकर अपना पल्ला झाड़ रही है।
सीबीआई जांच के आदेश, नतीजा शून्य
के पदमा का कहना है कि मामले की ठीक तरह से जांच के लिए आदिवासी नेताओं ने धरना दिया। प्रदर्शन हुए, तमाम आदिवासियों ने भूख हड़ताल भी लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। सरकार ने सीबीआई और सीआईडी जांच के आदेश दिए लेकिन जांच एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाई।
11 में से तीन महिलाओं की मौत
के पदमा के मुताबिक 2007 में गैंगरेप की शिकार हुई 11 महिलाओं में से तीन की मौत हो चुकी है। बाकी बची 8 महिलाएं आज भी न्याय का इंतजार कर रही है।
सुनवाई शुरू हुई तो पुलिस ने लिया स्टे
मानवाधिकार मंच के जनरल सेक्रेटरी के अनुसार जांच में पुलिस की लापरवाही के विरोध में पीड़ित महिलाओं ने 2008 में पडेरु कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसकी सुनवाई शुरू हुई तो पुलिस ने आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। चार साल बाद अप्रैल 2012 में मामले की आखिरी सुनवाई हुई और कोर्ट ने लापरवाही पर 13 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज करने के आदेश दिए।
सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई पुलिस
मामला दर्ज होने के बाद अगस्त 2012 में पुलिसकर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली और केस वहीं रुक गया। अब सर्वोच्च न्यायालय को ये निर्णय लेना है कि मामले में ट्रायल आगे चलेगा या नहीं। इसके लिए सुनवाई का इंतजार किया जा रहा है।