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छोटी सी दुकान से भरी हौसले की उड़ान

24 वर्षीय दिलीप ने जीवनपथ की कठिन पगडंडियों पर मोबाइल रिपेयर की छोटी सी दुकान के सहारे चलकर स्वावलंबी बने और गरीबी को मात दी।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 29 Jun 2017 09:20 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jun 2017 09:20 AM (IST)
छोटी सी दुकान से भरी हौसले की उड़ान
छोटी सी दुकान से भरी हौसले की उड़ान

जागरण संवाददाता, (भदोही) : उड़ान परों से नहीं हौसले से होती है। इसकी मिसाल हैं दोनों पैरों से दिव्यांग दिलीप कुमार। औराई के खमरिया नगर से सटे भटपुरवा, कोइलरा निवासी 24 वर्षीय दिलीप कुमार ने दोनों पैरों से दिव्यांग होने से बाद भी कभी हिम्मत नहीं हारी। जीवनपथ की कठिन पगडंडियों पर मोबाइल रिपेयर की छोटी सी दुकान के सहारे चलकर स्वावलंबी बने और गरीबी को मात दी। अब दिलीप औरों के लिए स्वावलंबन की नजीर हैं। भटपुरवा, कोइलरा निवासी रामनारायण व शांति देवी के पुत्र के रूप में जुलाई 1993 में जन्मे दिलीप दो वर्ष की आयु में ही दोनों पैर से विकलांगता का शिकार हो गए थे। किसानी से तीन पुत्रों व पांच पुत्रियों का पालन करने वाले रामनारायण के लिए दिलीप की विकलांगता चिंता का कारण बन गई।

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हौसले से हर ली पिता की चिंता : दिलीप को लेकर पिता सहित पूरा परिवार हमेशा चिंतित रहता था। दिलीप भी अन्य बच्चों की तरह खेल न पाने से मन ही मन असहाय महसूस करते थे। कभी हिम्मत नहीं हारी। परिवार से मिले सहयोग के जरिए कला से स्नातक तक की शिक्षा हासिल की। फिर किसी रोजगार की तलाश में जुट गए। इसी बीच ज्ञानपुर नगर में स्थित ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान में नि:शुल्क मोबाइल रिपेयर का रोजगारपरक प्रशिक्षण मिलने की जानकारी पर उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया। आज मोबाइल रिपेयर की दुकान खोल अपनी जरूरतें पूरी करने व परिवार का भी आर्थिक सहयोग कर रहे हैं।

ट्राइसाइकिल से 50 किमी सफर : दिलीप का हौसला ही था कि ज्ञानपुर में प्रशिक्षण के मिले मौके को भुनाने के लिए प्रतिदिन 50 किमी का सफर ट्राइसाइकिल से पूरा करते थे। पढ़ाई के दौरान से ही वह मोबाइल रिपेयर का प्रशिक्षण लेना चाह रहे थे। कई दुकानदारों से संपर्क किया किंतु कोई अपनी दुकान पर बिठाने व सिखाने को तैयार नहीं हुआ। प्रशिक्षण संस्थान में पहुंचने पर प्रशिक्षक देवेंद्र कुमार दुबे ने दिव्यांग होने पर पहले पंजीकरण से इंकार कर दिया। प्रतिदिन आने की बात कही तो नामांकन कर भरपूर सहयोग किया। वह इस मुकाम पर हैं कि अपने साथ परिजनों के लिए भी दो वक्त की रोटी जुटा रहे हैं।

-पैरों से दिव्यांग दिलीप ने साहस के बल पर दी गरीबी को मात
-खुद स्वावलंबी बनकर औरों को दिखा रहे स्वावलंबन की राह

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