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मुफ्त की घोषणाओं पर लगे लगाम

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि घोषणापत्रों में मुफ्त लैपटॉप, टीवी, मिक्सर ग्राइंडर, बिजली का पंखा और सोने की थाली देने जैसी लोक लुभावन घोषणाएं भले ही जनप्रतिनिधित्व कानून में भ्रष्टाचार की परिभाषा में न आती हो लेकिन इनसे लोग प्रभावित होते हैं। ये चुनाव प्रक्रिया दूषित करती हैं। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह घोषणापत्रों में मुफ्त उपहार की लोक लुभावन घोषणाएं रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करे ताकि चुनाव प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे। इतना ही नहीं कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह इसे महत्वपूर्ण मानते हुए जल्दी से जल्दी अंजाम दे। कोर्ट ने इस बारे में राजनैतिक दलों को नियमित करने के लिए अलग कानून बनाने की जरूरत पर भी बल दिया है।

By Edited By: Published: Fri, 05 Jul 2013 10:48 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jul 2013 04:24 AM (IST)

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि घोषणापत्रों में मुफ्त लैपटॉप, टीवी, मिक्सर ग्राइंडर, बिजली का पंखा और सोने की थाली देने जैसी लोक लुभावन घोषणाएं भले ही जनप्रतिनिधित्व कानून में भ्रष्टाचार की परिभाषा में न आती हो लेकिन इनसे लोग प्रभावित होते हैं। ये चुनाव प्रक्रिया दूषित करती हैं। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह घोषणापत्रों में मुफ्त उपहार की लोक लुभावन घोषणाएं रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करे ताकि चुनाव प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे। इतना ही नहीं कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह इसे महत्वपूर्ण मानते हुए जल्दी से जल्दी अंजाम दे। कोर्ट ने इस बारे में राजनैतिक दलों को नियमित करने के लिए अलग कानून बनाने की जरूरत पर भी बल दिया है।

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न्यायमूर्ति पी. सतशिवम व न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में द्रमुक और अन्नाद्रमुक के घोषणापत्रों में मुफ्त उपहारों की घोषणा को चुनाव के भ्रष्ट तरीके बताने वाली एस सुब्रमण्यम बालाजी की याचिका का निपटारा करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने राजनैतिक दलों के घोषणापत्रों में जीतने पर विभिन्न तरह के मुफ्त उपहार देने की घोषणाओं को संवैधानिक स्तर और मौजूदा कानूनों पर तोलते हुए कहा कि यह जनप्रतिधित्व कानून की धारा 123 के तहत भ्रष्ट तरीका नहीं माना जा सकता। लेकिन फिर भी इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि राजनैतिक दलों द्वारा घोषणापत्रों में की जाने वाली मुफ्त उपहार देने की घोषणाओं से लोग प्रभावित होते हैं। इससे निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव की प्रक्रिया पर असर पड़ता है।

पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 324 के तहत निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने और विभिन्न उम्मीदवारों के बीच बराबरी का मौका स्थापित करने के लिए चुनाव आयोग आदर्श चुनाव संहिता जैसे दिशानिर्देश जारी कर सकता है। जैसा कि उसने पहले भी किया है। घोषणापत्रों में मुफ्त उपहारों की घोषणा पर रोक लगाने वाले दिशानिर्देश आदर्श आचार संहिता में अलग हेड में शामिल किए जाएं। पीठ ने कहा कि उन्हें मालूम है कि चुनाव आयोग सिर्फ चुनाव की तिथि घोषित होने के बाद ही कोई कार्रवाई कर सकता है और चुनाव घोषणापत्र चुनाव की तिथि लागू होने से पहले जारी होते हैं। ऐसी स्थिति में इस मामले को अपवाद माना जाएगा क्योंकि चुनाव घोषणापत्र सीधे तौर पर चुनाव प्रक्रिया से जुड़ा होता है। हालांकि कोर्ट ने याचिका पर सीधे तौर पर कोई आदेश देने से इन्कार करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में दखल देने का कोर्ट के पास बहुत सीमित अधिकार है। जब तक ऐसी घोषणाएं योजना का रूप न ले लें। उन्हें लागू करने के लिए उचित विधेयक और पैसा न जारी हो तब तक कोर्ट उसमें दखल नहीं दे सकता। कोर्ट सरकार के काम काज में तभी दखल दे सकता है जबकि वह काम असंवैधानिक या गैरकानूनी हो।

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