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राष्ट्रपति चुनाव के बहाने पड़ गई विपक्षी महागठबंधन की नींव

सरकार धर्मनिरपेक्ष छवि वाले व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाती है तो संयुक्त विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारते हुए एनडीए का मुकाबला करेगा।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Sat, 27 May 2017 09:24 AM (IST)Updated: Sat, 27 May 2017 12:38 PM (IST)
राष्ट्रपति चुनाव के बहाने पड़ गई विपक्षी महागठबंधन की नींव
राष्ट्रपति चुनाव के बहाने पड़ गई विपक्षी महागठबंधन की नींव

 नई दिल्ली[संजय मिश्र]। एनडीए सरकार के तीन साल के जश्न के दिन ही आखिरकार राष्ट्रपति चुनाव के बहाने विपक्षी एकजुटता की नींव रख दी गई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर 17 विपक्षी दलों के नेताओं की हुई बैठक में राष्ट्रपति चुनाव में सरकार से सबको स्वीकार्य चेहरे को राष्ट्रपति बनाने की पहल करने को कहा गया। आम सहमति की गेंद सरकार के पाले में डालते हुए विपक्ष ने यह भी साफ कर दिया कि सरकार धर्मनिरपेक्ष छवि वाले व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाती है तो संयुक्त विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारते हुए एनडीए का मुकाबला करेगा।

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विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने की कोशिशों में अहम भूमिका निभा रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्ष के शीर्ष नेताओं की बैठक के बाद कहा कि सरकार राष्ट्रपति चुनाव के लिए आम सहमति की पहल नहीं करेगी तो विपक्ष एक छोटी समिति का गठन करेगा। यह समिति संयुक्त विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार का चयन करेगी। सोनिया गांधी ने विपक्षी पार्टियों के नेताओं को दोपहर भोज के न्यौते के साथ राष्ट्रपति चुनाव पर चर्चा के लिए बुलाया था।

विपक्ष के रुख से साफ है कि घोर संघ परिवार के किसी चेहरे पर आम सहमति के लिए विपक्षी पार्टियां राजी नहीं होंगी। विपक्षी नेताओं की दो घंटे से अधिक चली बैठक के बाद ममता बनर्जी ने पत्रकारों से कहा भी कि सरकार की आम सहमति की पहल का हम इंतजार करेंगे। सरकार अगर संविधान की मर्यादा का खयाल रखने वाले किसी धर्मनिरपेक्ष चेहरे को उम्मीदवार के रूप में सामने लाती है तो हम विपक्ष में उस पर गौर करेंगे।

ममता ने यह भी कहा कि सरकार उम्मीदवार पर विपक्ष के साथ मिलकर चर्चा करती है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है। वाजपेयी सरकार के दौरान 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम पर आम सहमति बनाने की हुई पहल को ममता ने इसका बेहतरीन उदाहरण भी बताया और कहा कि अटल ने जब कलाम के नाम का प्रस्ताव रखा तब सहमति बन गई। ममता ने कहा विपक्ष की इस बैठक में राष्ट्रपति उम्मीदवार पर कोई चर्चा नहीं हुई। मगर सहारनपुर की हिंसा, कश्मीर की चिंताजनक हालत और नोटबंदी पर सरकार की आलोचना को लेकर विपक्षी नेताओं की एक राय थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सियासी ब्रांड पर सवार भाजपा-एनडीए को 2019 के आम चुनाव में चुनौती देने के लिए कांग्रेस राष्ट्रपति चुनाव के बहाने तमाम विपक्षी दलों को गोलबंद करने की कोशिश में जुटी है। इस लिहाज से सोनिया गांधी की विपक्षी नेताओं की यह भोज बैठक इस मायने कामयाब रही कि राज्यों में विपरीत ध्रुव पर रहने वाली पार्टियां राष्ट्रीय सियासत में एक मंच पर आने को अब तैयार हैं। बदले समीकरण और राजनीतिक हकीकत को देखते हुए उत्तरप्रदेश की दो धुर विरोधी पार्टियां सपा और बसपा तो पश्चिम बंगाल में एक दूसरे के खिलाफ तलवारें भांज रही तृणमूल कांग्रेस और वामदल राष्ट्रीय मंच पर संयुक्त विपक्ष की छतरी के नीचे आने को तैयार हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के सोनिया की इस बैठक में शामिल होने से साफ है कि राज्यों में एक दूसरे की खिलाफत करने के बावजूद भाजपा से मुकाबले के लिए राष्ट्रीय मंच पर साथ आने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। ममता और सीताराम येचुरी का इस बैठक में सोनिया गांधी के दाएं और बाएं बैठना भी यही इशारा कर रहा था।

विपक्ष के 17 दलों के नेताओं की इस भोज बैठक में शामिल अन्य अहम चेहरों में कांग्रेस की ओर से मनमोहन सिंह और राहुल गांधी, एनसीपी के शरद पवार, राजद के लालू प्रसाद, जदयू के शरद यादव और केसी त्यागी, नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, द्रमुक की कनीमोरी, भाकपा के सुधाकर रेड्डी, डी राजा आदि शामिल थे।

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