बेतुके आदेश के लिए वन संरक्षण को पड़ी फटकार
राज्य सूचना आयुक्त ने प्रथम अपीलीय अधिकारी के मुफ्त सूचना मुहैया करवाने संबंधित फरमान को पूरी तरह बेतूका करार दिया है।
चंडीगढ़। राज्य सूचना आयुक्त ने प्रथम अपीलीय अधिकारी के मुफ्त सूचना मुहैया करवाने संबंधित फरमान को पूरी तरह बेतूका करार दिया है। राज्य सूचना आयुक्त हेमंत अत्री ने हरियाणा के वरिष्ठ आईएफएस (भारतीय वन सेवा) अधिकारी और उत्तरी सर्कल के वन संरक्षक को एक आरटीआई आवेदक की अपील पर बेतूका फरमान जारी करने के लिए कड़ी फटकार लगाई है।
आयुक्त ने अपने आदेश में साफ कहा है कि वे इस तरह के आदेश पारित करने से बाज आएं और जरूरत होने पर उन्हें सूचना अधिकार कानून की सही अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए हिपा में प्रशिक्षण के लिए भेज दिया जाए। मौजूदा मामला मोरनी के कृष्ण कौशिक की अपील से जुड़ा, जिसने जनवरी माह में तत्कालीन वन मंडल अधिकारी एवं मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक एस़ नारायणन से मोरनी क्षेत्र में पेड़ों के काटने और राजस्व विभाग के बारे में सूचनाएं मांगी थी। नारायणन ने आवेदन मिलते ही 18 फरवरी को आवेदक के नाम साधारण डाक से एक पत्र भेजा और दस्तावेजों की ऐवज में 12 हजार 660 रुपये का शुल्क मांगा। शुल्क न मिलने पर उन्होंने दो मार्च को फिर से कौशिक के नाम स्मरण पत्र जारी किया। आवेदक ने फीस जमा करवाने की बजाय प्रथम अपीलीय अधिकारी एवं वन संरक्षक एमपी शर्मा के यहां अपील दायर कर दी। अपील पर फैसला करते हुए एमपी शर्मा ने 17 अप्रैल को नारायणन को आदेश जारी किए कि आवेदक को 6330 पेजों की सूचना नि:शु-ल्क मुहैया करवाई जाए। इस पर नारायणन ने पूरी सूचना देने के बदले 1279 पेज की सूचना डाक पार्सल के जरिये आवेदक को भेज दी।
अत्री ने सारे मामले पर चिंता जाहिर करते हुए अपने आदेश में लिखा है कि नियत समयावधि पर मांगी गई दस्तावेज शुल्क के बावजूद 6000 से अधिक पृष्ठों की सूचना मुफ्त दिए जाने का कोई आधार नहीं है। चूंकि आवेदक ने शुल्क के नाम पर फूटी कोड़ी भी जमा नहीं करवाई। सूचना आयुक्त ने कहा कि इस तरह के आदेश भविष्य के लिए गलत परिपाटी तो साबित होंगे ही, साथ ही संबंधित अधिकारियों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ भी पड़ेगा। उन्होंने नारायणन द्वारा अधूरी सूचना दिए जाने का भी कड़ा संज्ञान लेते हुए कहा कि उनके पास वन संरक्षक के आदेश के बाद दो ही विकल्प थे। या तो वे उन्हें पूरी सूचना मुहैया करवाते या फिर वन संरक्षक के आदेश को आयोग के सामने चुनौती देते।
मिशन निदेशक ने इनमें से कोई भी विकल्प न अपनाते हुए अधूरी सूचना दी जो पूरी तरह नियमों के विरुद्ध है। आयोग ने दोनों आईएफएस अधिकारियों के रवैये को गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए विशेष रूप से वन संरक्षक के आदेश को निराधार ठहराया है। आयुक्त ने आदेश दिए हैं कि जरूरत होने पर उन्हें आरटीआई के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए प्रशिक्षण हेतु हरियाणा लोकसेवा संस्थान में भेज दिया जाए। साथ ही, नारायणन द्वारा दस्तावेजी शुल्क संबंधी पत्र और डिस्पेच रिकार्ड दिखाए जाने पर अपेक्षाकृत नरम रुख अपनाते हुए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई चेतावनी स्थगित कर दी है।