राजकोषीय संतुलन के लिए एफआरबीएम में संशोधन जरूरी
सर्वेक्षण कहता है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से दुनिया भर में राजकोषीय नीति में व्यापक बदलाव देखने को मिला है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राजकोषीय नीति को सही दिशा में ले जाने के लिए 13 साल पुराने एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन की जरूरत महसूस होने लगी है। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के मुताबिक भारत के बेहतर कल के लिए जरूरी है कि इस कानून को सुधार कर एक नया लक्ष्य निर्धारित किया जाए।
साल 2003 जब यह कानून बना था उस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार काफी छोटा था। आज के मुकाबले बाहरी दुनिया के लिए अपेक्षाकृत बंद थी। इसके प्रति व्यक्ति आय विकसित होने वाले अन्य उभरते बाजारों की तुलना में काफी पीछे थी।
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आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि आज स्थिति काफी बदल चुकी है। भारत मध्य आय वाले देश में तब्दील हो चुका है। इसकी अर्थव्यवस्था किसी भी दूसरी महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था की तुलना में काफी बड़ी, खुलापन लिए हुए और तेजी से विकास करने वाली है।
सर्वेक्षण कहता है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से दुनिया भर में राजकोषीय नीति में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। ज्यादातर देशों की राजकोषीय नीति में पूरा जोर कर्ज के बजाये घाटे पर दिया जा रहा है। स्पष्ट है कि अब कर्ज बने रहने की चिंताएं कम होती जा रही हैं। लेकिन भारत का अनुभव इससे अलग रहा है।
भारत की नीति का पूरा जोर राजकोषीय घाटे को सीमित रखने पर रहा है क्योंकि यह तेजी के दौरान खर्च करने और मंदी के दिनों में प्रोत्साहन देने की नीति पर निर्भर रही है। लेकिन सर्वेक्षण से संकेत मिल रहे हैं कि सरकार भी अब अपनी इस नीति में बदलाव करने की दिशा में बढ़ रही है।
सर्वेक्षण के जरिए सरकार मानती है कि भारत की अर्थव्यवस्था कई प्रकार से पश्चिम की बड़ी, खुली हुई, सम्पन्न अर्थव्यवस्थाओं की ओर अग्रसर है। बीते 25 वर्ष में भारत के विकास की रफ्तार काफी तेज हुई है। जबकि विकसित देशों की गति अवरुद्ध हुई है।
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खासतौर पर दुनिया भर में आए वित्तीय संकटों के बाद विकसित देशों के विकास की गति धीमी हो गई है। इसके चलते 2003 में राजकोषीय संतुलन एवं बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) को बनाते समय जिन उद्देश्यों को प्राप्त करने पर सहमति बनी थी उन्हें प्राप्त करना अब मुश्किल होता जा रहा है। इसलिए सर्वेक्षण मानता है कि आज के बदले हालात में इन उद्देश्यों व लक्ष्यों को संशोधित करना आवश्यक हो गया है।
सर्वेक्षण हाल ही में एनके सिंह समिति की रिपोर्ट में एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन की सिफारिश की पुष्टि करता है। वित्त मंत्री को रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद सरकार ने कहा था कि वह इसकी समीक्षा करेगी और जरूरत समझी जाने पर उचित कार्यवाही करेगी।