सीने पर गोली खाकर भी 21 हजार फीट की ऊंचाई पर लहराया था तिरंगा
चौबेपुर स्थित सरसौल गांव के आलिम अली। कारगिल के शेर, पूरे गांव के हीरो। हालांकि इस शहर और सरकार ने उन्हें भुला दिया है।
वाराणसी(ब्यूरो)। 'मूंछ पर ताव देते कारगिल के हीरो अली ने कहा-मैंने जो किया देश के लिए किया। किसी पुरस्कार के लिए नहीं लेकिन अफसोस इस बात का है कि 18 साल बीत गए मगर सरकार की ओर से किए गए वादे पूरे नहीं हुए। वतन के लिए आठ-आठ गोलियां खाई लेकिन आज मैं गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश हूं।बस, साल में एक बार 'जिंदा' हो जाता हूं जब सेना की ओर से कारगिल विजय दिवस के अवसर पर सम्मान मिलता है'।
ये हैं चौबेपुर स्थित सरसौल गांव के आलिम अली। कारगिल के शेर, पूरे गांव के हीरो। हालांकि इस शहर और सरकार ने उन्हें भुला दिया है। गोलियां लगने के कारण एक पैर और एक हाथ ठीक से काम नहीं करता। सरकारी तंत्र से खफा आलिम ने काशी में कई जगह नौकरी की कोशिश की लेकिन हर दरवाजा बंद मिला। बताते हैं कि पेंशन के रूप में 21 हजार रुपए मिलते हैं। कभी-कभी समय से पहले पैसे खत्म हो जाते हैं।
इस बार तो बैंक ने बताया कि खाते में सिर्फ पांच हजार ही आए हैं, मेरे बाकी 16 हजार रपए कहां गए कोई बताने वाला नहीं। इतनी दुश्वारियों के बाद भी आलिम का हौसला टूटा नहीं है। कहते हैं कि कुछ भी हो जाए, बेटे को सेना में अफसर बनाऊंगा। पेंशन के रुपए से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई व घर का खर्च चलता है। आलिम की तीन बेटियां और एक बेटा है। बेटा दानिश चंदौली से बीएससी की पढ़ाई कर रहा है।
सीने पर खाई थी दुश्मन की गोली
22 ग्रेनेडियर के नायक आलिम अली 1990 में सेना में भर्ती हुए। जुलाई-92 से सितंबर-95 तक कश्मीर में चल रहे ऑपरेशन रक्षक में शामिल थे। पाकिस्तान जब कारगिल में घुसा तब सात जून-99 को उन्हें कारगिल में लड़ने भेजा गया।
आलिम ने अपने 25 साथियों के साथ कारगिल के युद्ध में हिस्सा लिया था और 21 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित जुबार हिल पर साथियों के साथ तिरंगा फहराया था। पाकिस्तानी फौज से युद्ध के दौरान उन्हें सीने समेत शरीर के अन्य हिस्सों में आठ गोलियां लगी थीं।
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