अपराध कर जेल पहुंचे, हुनर लेकर बाहर निकले और मिल गया रोजगार
वक्त कितना भी बुरा हो लेकिन परिश्रम जाया नहीं जाता। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है जेल से मुक्त हुए इन बंदियों ने..
जागरण संवाददाता, रांची। राज्य के पांचों सेंट्रल जेल में बंद आजीवन कारावास के 105
कैदियों को शनिवार को रिहा कर दिया गया। सजा के दौरान जेलों में अच्छे आचरण और अन्य
बिंदुओं पर समीक्षा के बाद राज्य सजा पुनरीक्षण पर्षद की अनुशंसा पर ये बंदी मुक्त किए गए
हैं। यह पहली बार है जब झारखंड में कारा मुक्त 57 बंदियों को जेल से बाहर निकलने पर
रोजगार दिया जा रहा है। शनिवार को रांची के होटवार स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा
परिसर में सभी 57 बंदियों को कारा महानिरीक्षक ने नियुक्ति पत्र देकर उनके उज्जवल भविष्य
की कामना की और जेल से बाहर जाकर नई जिंदगी की शुरूआत के लिए मिठाई खिलाकर
शुभकामनाएं दीं। इन बंदियों में 07 बंदियों को झारक्राफ्ट ने कपड़ा बुनाई समूह में नियोजन
किया है, वहीं भारतीय किसान संघ ने सिक्यूरिटी गार्ड के लिए 37 बंदियों का चयन किया
है। रिया इंटरप्राइजेज ने इलेक्ट्रिशियन, राजमिस्त्री के लिए 11 बंदियों का चयन किया और
उन्हें नियुक्ति पत्र दिया।
जेल का प्रभार मिला तो बदल गए बंदियों के प्रति ख्यालात
मौके पर मौजूद कारा महानिरीक्षक सुमन गुप्ता ने कहा कि जब पुलिसिंग देखती थीं, तब उनके
मन में अपराधियों को देखने का नजरिया अलग था, लेकिन कारा महानिरीक्षक बनने के बाद
बंदियों के प्रति उनके ख्यालात ही बदल गए। बंदियों में वास्तव में हुनर है। किसी न किसी
कारण से अनजाने में जुर्म कर पहुंचे ऐसे बंदियों को सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी की वजह से छोडऩे
में विलंब हुआ है, लेकिन आज रोजगार देकर जेल के इतिहास में नया अध्याय जुड़ा है। जेल से छूटने
वाले बंदी, जेल से बाहर आकर अन्य लोगों को भी रोजगार के प्रति प्रेरित करेंगे। कहा, एक
वेब पोर्टल भी बनेगा, जिससे कि विभिन्न एजेंसी जेलों में बीच-बीच में भी छूटने वाले बंदियों
को रोजगार की दिशा में पहल कर सकें। बहुत से कैदी घर का पता भूल गए हैं, जिन्हें जेल
अधीक्षक घर पहुंचाएंगे।
केस एक : खून कर जेल आया, बन गया एकाउंटेंट
ओरमांझी के दड़दाग निवासी फूलेंद्र महतो आज जेल से मुक्त होकर बहुत खुश हैं। अपने एक
रिश्तेदार की हत्या में उन्हें 16 साल पहले आजीवन कारावास की सजा हुई थी, लेकिन जेल में
उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई भी की और जेल के लिए एकाउंटेंट बाबू बन गए थे। वर्ष 2010 से
वे एकाउंट देखते थे।
केस दो : अब घर जाकर नई जिंदगी शुरू करेंगे प्रमोद
प्रमोद का चयन सिक्यूरिटी गार्ड के लिए हुआ है। वर्ष 2000 में बड़े पिताजी दुर्योधन मांझी
की हत्या में उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई थी। दुमका के सरैयाहाट निवासी प्रमोद ने
कहा, वह महज एक संयोग था, आज आदमी बनकर बाहर जा रहा हूं। नन मैट्रिक कर जेल गए थे,
आज स्नातक पास कर बाहर जा रहे हैं। अब सुरक्षा प्रहरी बनने जा रहे हैं।
केस तीन : पत्नी की हत्या ने पहुंचा दिया था सलाखों तक
रामगढ़ के मोहम्मद युनूस पर वर्ष 1991 में पत्नी की हत्या का आरोप लगा था। जेल में उन्होंने
पढ़ाई भी की और सिलाई भी। अब सुरक्षा प्रहरी बनने जा रहे हैं।
केस चार : रिश्तेदार की हत्या में कैद था श्रीनंद
देवघर के पालाजोरी का श्रीनंद टुडू अपने एक रिश्तेदार सुखौती मुर्मू की हत्या में कैद था। अब
सुरक्षा गार्ड बनने जा रहे हैं, जिसकी उन्हें खुशी है।
केस पांच : राजमिस्त्री बनकर बहुत खुश हैं अफनस
सिमडेगा के जलडेगा, जुनाडीह निवासी अफनस मुंडा राजमिस्त्री बनकर बहुत खुश हैं। वे जेल में
17 साल से कैद थे, जहां वर्ष 1999 से साग-सब्जी उपजाने से लेकर जेल का बगान देख रहे थे।
अब कैद से बाहर आकर वे घर बनाएंगे।
किस जेल के कितने बंदी
- सेंट्रल जेल, पलामू : 05
- सेंट्रल जेल, रांची : 40
- सेंट्रल जेल, दुमका : 42
- सेंट्रल जेल, हजारीबाग : 13
- सेंट्रल जेल, घाघीडीह, जमशेदपुर : 05
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