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जानें, 1967 और 1986 में क्या हुआ था जिसका जिक्र करने से डरता है चीन

डोकलाम के मुद्दे पर चीन की तरफ से रोजाना भड़काने वाले बयान आते हैं। भारत को चीन सबक सिखाने की धमकी देता रहता है। लेकिन हकीकत कुछ और है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Tue, 25 Jul 2017 12:49 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jul 2017 10:48 AM (IST)
जानें, 1967 और 1986 में क्या हुआ था जिसका जिक्र करने से डरता है चीन
जानें, 1967 और 1986 में क्या हुआ था जिसका जिक्र करने से डरता है चीन

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। डोकलाम को लेकर उठे ताजा विवाद से करीब 55 वर्ष पहले 1962 में चीन ने भारत की पीठ में छूरा भोंका था। ये बात अलग है कि चीन पंचशील के उन सिद्धांतों को भूल गया, जिनकी बुनियाद पर दोनों मुल्कों ने आगे बढ़ने का फैसला किया था। 1962 की लड़ाई के ठीक पांच साल बाद 1967 में नाथुला में अपनी शर्मनाक पराजय का जिक्र करने से चीन डरता है। चीन की सरपरस्ती में आग उगलने वाली मीडिया खामोश रहती है। यही नहीं 1962 की करारी हार को याद दिलाकर चीन उससे भी बड़ी लड़ाई की बात करता है। लेकिन 1986 में अरुणाचल के सुमदोरोंग चू में अपनी कूटनीतिक और सामरिक हार का चीन विश्व के पटल पर जिक्र नहीं करता है। लेकिन हम आपको बताएंगे कि आखिर 1967 और 1986 में कैसे भारतीय सेना ने चीन की हेकड़ी ढीली कर दी थी।

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11 सितंबर 1967

नाथुला के बीचोंबीच तार लगाने पहुंचे भारतीय जवानों से कहासुनी के बाद चीन की तरफ से हुई गोलीबारी में 70 भारतीय जवान शहीद हो गए। लेकिन भारतीय सेना की कड़ी कार्रवाई में चीन के 500 से ज्यादा सैनिक मारे गए। इसके अलावा चीन के ज्यादातर बंकरों को भारतीय जांबाजों ने बर्बाद कर दिया।

इस घटना के महज 20 दिन बाद एक अक्टूबर 1967 को नाथुला से चंद किलोमीटर दूर स्थित चोला में चीन ने घुसपैठ की कोशिश की। दोनों पक्षों में दिन भर तनातनी रही। लेकिन लेकिन भारतीय रणबांकुरों के सफल प्रतिरोध के बाद चीनी सेना को चोला से तीन किमी पीछे हटना पड़ा।

1986 में चीन को एक बार फिर करारा जवाब

अरुणाचल के सुमदोरोंग चू में करीब दो लाख भारतीय सेना की तैनाती के बाद चीन ने भी वहां अपनी सैन्य टुकड़ियां भेजी। लेकिन भारतीय सेना की सख्ती के बाद चीनी सेना शांत हुई।

1967 के जीत के नायक

लेफ्टिनेंट जनरल सगट सिंह- 1965 में नाथुला से 17 माउंटेन डिवीजन में तैनात थे। इन्होंने चीनी चेतावनी को खारिज कर भारतीय जवानों को सीमा से हटाने से मना कर दिया।

लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह- युद्ध की धमकी के बाद भी नाथुला पर तारों से सीमा निर्धारण का काम जारी रखा। चीन की तरफ से गोलीबारी में घायल भी हुए थे।

लेफ्टिनेंट अतर सिंह- लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह के घायल होने के बाद इन्होंने कमान संभाली। इनके नेतृत्व में भारतीय जवानों ने चीनी बंकरों और चौकियों को बर्बाद कर दिया।

डोकलाम में गतिरोध जारी

डोकलाम इलाके में पिछले 39 दिनों से दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ी हैं। इस इलाके में चीन सड़क बना रहा है, जिसका विरोध भूटान कर रहा है। भूटान सरकार के अनुरोध पर भारत ने अपनी सेना तैनात की है। चीन से ताजा विवाद के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए 27 और 28 जुलाई को बीजिंग में होंगे। एनएसए डोभाल के दौरे से ठीक पहले ग्लोबल टाइम्स ने एक बार फिर आग उगली है। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक डोकलाम विवाद के पीछे भारतीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल का दिमाग है। यही नहीं उनके दौरे से दोनों देशों के बीच विवाद कम नहीं होने वाला है। इससे एक दिन पहले चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वु क्यान ने भड़काने वाले बयान दिए थे।

वु क्यान ने क्या कहा था

डोकलाम मुद्दे पर सोमवार को क्यान ने कहा कि चीनी सेना अपने हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार है। मौजूदा समय में तनाव के लिए भारत जिम्मेदार है, और उसे अपनी सेना को हटा लेना चाहिए। क्यान ने यहां तक कहा कि एक पल के लिए पहाड़ को हिलाया जा सकता है। लेकिन चीनी सेना को हिलाया नहीं जा सकता है। 
भारत को अपनी गलती सुधारने के साथ-साथ भड़कावे की कार्रवाई से बचना चाहिए।

सुषमा स्वराज ने क्या कहा था?

भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि डोकलाम को लेकर सरकार का मत स्पष्ट है। भारत सरकार ने हमेशा पंचशील सिद्धांत का सम्मान किया है। लेकिन वो चीन के बेजा दबाव को स्वीकार नहीं कर सकती है। डोकलाम में चीन यथास्थिति में बदलाव की फिराक में है, जिसे भारत स्वीकार नहीं कर सकता है। हालात को सामान्य बनाए रखने के लिए चीन को अपनी सेना पहले हटाना चाहिए।

कौन हैं वु क्यान

कर्नल रैंक के अधिकारी वु क्यान चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता हैं। 2015 में उन्हें प्रवक्ता पद की जिम्मेदारी दी गई थी। चीनी सेना में क्यान कई अहम पदों पर रहे हैं।

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