Move to Jagran APP

भारत और चीन ने उड़ा दी है पश्चिमी देशों की नींद, आप जानते हैं आखिर क्या है वजह

भारत और चीन ने पश्चिमी देशों की नींद उड़ा दी है। इसके पीछे वजह है कि अब एक बार फिर दोनों ने नए सिरे से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को जमाना शुरू किया।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 29 Oct 2017 12:36 PM (IST)Updated: Mon, 30 Oct 2017 01:22 PM (IST)
भारत और चीन ने उड़ा दी है पश्चिमी देशों की नींद, आप जानते हैं आखिर क्या है वजह
भारत और चीन ने उड़ा दी है पश्चिमी देशों की नींद, आप जानते हैं आखिर क्या है वजह

नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। अगर विशेषज्ञ इस सदी को एशिया की सदी मान रहे हैं तो इसमें हैरत नहीं होनी चाहिए। भारत और चीन की अगुआई में जिस तरह से इस क्षेत्र के विकासशील देश विकसित होने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं, उससे पश्चिमी देशों का चैन गायब हो चुका है। भारत और चीन इतिहास को दोहरा रहे हैं। 15वीं से लेकर 18वीं सदी तक दोनों का आधे वैश्विक व्यापार पर नियंत्रण था। यह प्रभुत्व 19वीं सदी में भारत को ब्रिटेन द्वारा उपनिवेश बनाए जाने तक कायम था। बीसवीं सदी के मध्य में भारत को आजादी मिली तो चीन में साम्यवाद स्थापित हुआ।

loksabha election banner

अब एक बार फिर दोनों ने नए सिरे से अपनी अर्थव्यवस्थाओं को जमाना शुरू किया। 21वीं सदी में दोनों देश दुनिया की सबसे तेज विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। लिहाजा वैश्विक व्यापार का केंद्र पूर्व की ओर बदलता महसूस किया जा सकता है। पिछले पांच सौ सालों में इन दोनों एशियाई दिग्गजों के आर्थिक विकास पर एक नजर:

16वीं सदी

भारत: लालसागर से होकर भारतीय सामान को यूरोेप ले जाकर अरब व्यापारियों द्वारा बेचे जाने के समय भारतीय
अर्थव्यवस्था की विश्व की आय में 24.5 फीसद हिस्सेदारी थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर था। टेक्सटाइल्स, चीनी, मसाले, आम, कारपेट इत्यादि बेचकर यह सोना और चांदी खरीदकर अपना व्यापार संतुलन बनाए रखता था।

चीन: यूरोप और चीन के बीच सीधा समुद्री कारोबार पुर्तगालियों के साथ शुरू हुआ। इसके बाद अन्य यूरोपीय देशों ने भी इसका अनुसरण किया। भारत और चीन के बीच  कारोबार जमीनी रास्तों से होता था।

भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी ‘चीन’ ने बदल ली हैं ‘केंचुल’, भारत को रहना होगा 'सावधान'

17वीं सदी

भारत: सदी के अंत तक भारत के मुगलों की सालाना आय (17.5 करोड़ पौंड) ब्रिटिश बजट से अधिक हो चुकी थी। शाहजहां के शासनकाल में आयात से अधिक निर्यात किया जाने लगा था। खंभात से इतना अधिक व्यापार किया जाता था कि इस बंदरगाह पर हर साल तीन हजार समुद्री जहाज आया करते थे।

चीन: लगातार वैश्विक कारोबार के एक चौथाई पर इसका आधिपत्य कायम रहा। 1637 में कैंटोन में अंग्रेजों ने एक व्यापार चौकी भी स्थापित की। 1680 के दशक में समुद्री व्यापार में क्विंग शासक द्वारा छूट देने के बाद इसमें उत्तरोत्तर विकास होता गया। अब तक ताइवान क्विंग साम्राज्य के अधीन हो चुका था।

18वीं सदी

भारत: मुगल शासक औरंगजेब के समय देश का विश्व की आय में 24.4 फीसद हिस्सा था। मुगल ताकत के क्षीण होते ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के दुनिया से कारोबारी संबंधों को तहस-नहस कर दिया। 

चीन: 1760 में वैश्विक कारोबार में इसकी हिस्सेदारी भी घटने लगी। सरकार ने व्यापार के लिए आने वाले विदेशियों और विदेशी जहाजों के लिए कई सख्त नियम-कानून बना दिए। यहां आने वाले विदेशी व्यापारियों के लिए केवल एक बंदरगाह कैंटोन को इस नियम कानून से मुक्त रखा गया। 1776 में आजादी की लड़ाई के बाद अमेरिकियों ने चीन से व्यापार करना शुरू किया। ब्रिटेन के लिए यह एक बड़ा झटका था। 

19वीं सदी

भारत: वैश्विक आय का 16 फीसद रह चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था 1820 तक पूरी तरह ईस्ट इंडिया कंपनी के चंगुल में आ चुकी थी। कंपनी चीन के साथ अफीम कारोबार को बढ़ावा दे रही थी। कंपनी ने भारतीय कृषि पद्धति को बदल कर रख दिया। 1870 तक वैश्विक आय में भारतीय हिस्सेदारी 12.2 फीसद रह गई। 

चीन: क्विंग शासक ने विदेशी व्यापारियों के लिए सभी बंदरगाह खोलने से मना कर दिया। भारत के साथ अफीम कारोबार पर भी प्रतिबंध लगाया। ब्रिटेन और चीन के बीच दो बार जंग भी हुई। हारकर चीन ने अफीम कारोबार की स्वीकृति दी और अपने अति विकसित क्षेत्रों को पश्चिमी व्यापारियों के लिए खोल दिया। लिहाजा 1843 के बाद आठ साल के भीतर ही चाय का निर्यात पांच गुना बढ़ गया।

20वीं सदी

भारत: 1913 में वैश्विक आय में भारतीय अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी महज 7.6 फीसद रह गई। 1952 में यह 3.8 फीसद पर पहुंच गई। 1973 में इसकी 494.8 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का वैश्विक आय में हिस्सा केवल 3.1 फीसद था। 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव द्वारा आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई। लिहाजा 1998 तक अर्थव्यवस्था की वैश्विक आय में हिस्सेदारी बढ़कर पांच फीसद हो गई। 2005 तक देश की अर्थव्यवस्था बढ़कर 3815.6 अरब डॉलर पहुंच गई। अब तक वैश्विक आय में इसकी हिस्सेदारी बढ़कर 6.3 फीसद हो चुकी थी। 

चीन: 1949 में साम्यवादी चीन के अस्तित्व से पहले देश में प्रमुख रूप से यार्न, कोयला, कच्चा तेल, कॉटन और अनाज का उत्पादन किया जाता था। माओ जेडांग ने देश को एक समाजवादी दिशा दी। 1980 में चीन ने शेनझेन में पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र गठित किया। 1986 में देश की ‘ओपेन डोर’ पॉलिसी ने विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया। 1992 में ‘सोशलिस्ट मार्केट इकोनॉमी’ की स्थापना हुई। पहली बार चीन दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ। 2001 में यह विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.