फसलों को बचाने के लिए अब गांव-गांव खुलेंगे 'फार्म क्लीनिक'
किसान कीटनाशक बेचने वालों से ही अपनी फसलों में होने वाले रोग के बारे सलाह लेता है। जबकि संबंधित दुकानदार को फसलों की बीमारी के बारे में तकनीकी जानकारी नहीं होती है।
नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। फसलों में लगने वाले रोगों का सही इलाज न होने से हर साल करोड़ों का नुकसान होता है। खाद्य सुरक्षा के समक्ष पैदा हुई इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए ही गांव-गांव 'फार्म क्लीनिक खोलने का फैसला किया है। फसलों में लगने वाले रोगों के इलाज के लिए जिन दुकानों से दवाएं अथवा कीटनाशक लिए जाते हैं, अब उन्हीं प्रतिष्ठानों को फार्म क्लीनिक के रूप में तब्दील किया जाएगा। वहां प्रशिक्षित या शिक्षित लोग सलाह देने के लिए उपलब्ध रहेंगे।
इसके लिए केंद्र सरकार ने कीटनाशक दवाओं की बिक्री केंद्रों को ही 'फार्म क्लीनिक में तब्दील करने का फैसला किया है। कीटनाशकों की बिक्री करने वाले प्रतिष्ठान खोलने के लिए कृषि विज्ञान शिक्षा, बायो टेक्नोलॉजी, बायो केमेस्ट्री, लाइफ साइंसेज, बॉटनी, जीव विज्ञान, अथवा केमेस्ट्री विषयों में स्नातक होना अनिवार्य बना दिया गया है। यह शैक्षिक योग्यता न्यूनतम है। दुकान खोलने के लिए लाइसेंस तभी मिलेगा, जब उस दुकान का मालिक अथवा काम करने वाला व्यक्ति इस न्यूनतम शैक्षिक योग्यता को पूरा करेगा।
केंद्र सरकार की जारी अधिसूचना के मुताबिक देशभर में कीटनाशक दवाओं की बिक्री करने वाली फिलहाल सवा लाख दुकानें हैं। इन पुरानी दुकानों के संचालकों को भी कृषि विभाग से बाकायदा प्रशिक्षण लेना पड़ेगा। इसके अलावा एक विकल्प यह भी होगा, वे चाहें तो निर्धारित न्यूनतम योग्यता वाले स्नातक युवाओं को नौकरी देकर दुकान चला सकते हैं।
दरअसल, सरकार के इस फैसले के पीछे फसलों में होने वाले नुकसान को रोकने की उचित सलाह देना है। किसानों को कीटनाशक देने से पहले सलाह देना भी जरूरी होगा। सामान्य तौर पर किसान कीटनाशक बेचने वालों से ही अपनी फसलों में होने वाले रोग के बारे सलाह लेता है। जबकि संबंधित दुकानदार को फसलों की बीमारी के बारे में तकनीकी जानकारी नहीं होती है। इससे जहां फसलों का भारी नुकसान होता है, वहीं किसान का पूरा सीजन चौपट हो जाता है।
इसी तरह कीटनाशक उत्पादन करने वाली इकाइयों के लिए भी कुछ प्रावधान किये गये हैं। उत्पादक इकाई की स्थापना के लिए केमेस्ट्री में स्नातकोत्तर, पीएचडी, अथवा पेस्टीसाइड में इंजीनियरिंग में स्नातक होना जरूरी होगा। इसके अलावा केमेस्ट्री विषय के साथ एग्र्रीकल्चर साइंस में स्नातक होना जरूरी है। केंद्र सरकार ने वर्ष 1971 के पेस्टीसाइड कानून में संशोधन कर यह प्रावधान किया है।