संकल्प आंनद की खुदकुशी के लिए जिम्मेदार फर्जी जॉब रैकेट
लोकनायक जयप्रकाश नारायण नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फोरेंसिक साइंस इंस्टीट्यूट में समाज विज्ञान के लेक्चरर संकल्प आनंद के सुसाइड नोट से इंस्टीट्यूट में कागजी प्रोजेक्ट और एक बड़े फर्जी जॉब रैकेट का पर्दाफाश हो सकता है। सुसाइड नोट में इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक कमलेंद्र
मथुरा, जागरण संवाददाता। लोकनायक जयप्रकाश नारायण नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फोरेंसिक साइंस इंस्टीट्यूट में समाज विज्ञान के लेक्चरर संकल्प आनंद के सुसाइड नोट से इंस्टीट्यूट में कागजी प्रोजेक्ट और एक बड़े फर्जी जॉब रैकेट का पर्दाफाश हो सकता है। सुसाइड नोट में इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक कमलेंद्र प्रसाद और डीआइजी संदीप मित्तल का बार-बार जिक्र किया गया है। आने वाली करोड़ों रुपये की रकम इन्हीं के इशारे पर इधर-उधर हो रही थी।
इंस्टीट्यूट की वेबसाइट के अनुसार, संदीप मित्तल डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (डीआइजी) हैं, जबकि कमलेंद्र प्रसाद 11 जून, 2009 से 17 जून, 2014 तक इंस्टीट्यूट के निदेशक रहे हैं। गृह मंत्रालय के उच्च अधिकारियों वाले इस संस्थान में सुसाइड नोट के अनुसार संदीप मित्तल मुख्य सरगना प्रतीत हो रहे हैं। नोट में एक जगह सीवीसी प्रदीप शर्मा के नाम पर धमकाने और वसूली करने का भी जिक्र किया गया है।
भारी मानसिक तनाव में लिखे गए पत्र से प्रतीत हो रहा है कि फर्जी जॉब रैकेट चलाकर उच्चाधिकारी मोटा पैसा बना रहे थे। मामला दिसंबर, 2012 में रोजगार समाचारपत्र में निकाले गए भर्ती विज्ञापन से जुड़ा है, जिसमें देश भर से दलालों ने करोड़ों रुपये इकट्ठे किए थे। इंस्टीट्यूट की ओर से हाल ही में 13 सितंबर को भी डेप्यूटेशन पोस्ट की 11 भर्तियां भी निकाली गई हैं। मामले की सघन जांच हो तो इसमें गृह मंत्रालय के अधिकारी भी फंस सकते हैं क्योंकि कोई इंस्टीट्यूट किसी लेक्चरर को आगे कर दो साल से उसके खाते में करोड़ों की रकम मंगा रहा था। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की नाक के नीचे तेजी से हो रहे इस करोड़ों के लेन-देन को उच्च संरक्षण भी प्राप्त हो सकता है।
दो साल में नरक बनी जिंदगी
संकल्प आनंद की जिंदगी दो साल में नरक बनी। अपनी नौकरी पक्की कराने के फेर में लेक्चरर फंसते चले गए और अंत में आत्महत्या करनी पड़ गई। सुसाइड नोट में उन्होंने दो दर्जन से ज्यादा लोगों के नाम और उनके मोबाइल नंबर लिखे हैं जिन्हें अपनी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। नोट में लेक्चरर ने 250 करोड़ की एक प्लेसमेंट स्कीम का भी जिक्र किया है, लेकिन उसमें साफ कहा गया है कि यह सब झूठा था और उनसे पैसा इधर-उधर कराया जा रहा था।
इसके बाद में लोगों ने उनसे पैसे मांगने शुरू किए और न देने पर जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं। जब यह बात उच्च अधिकारियों को बताई तो उन्होंने कहा कि यह तुम्हारी समस्या है। तुम खुद इससे निपटो। इससे आनंद तनाव में आ गए। पत्र में लिखा है कि संदीप मित्तल और कमलेंद्र ने उनके नाम पर करोड़ों रुपये बनाए लेकिन उनकी नौकरी नहीं पक्की की।
संकल्प को मिले पांच लाख रुपये
दिसंबर, 2012 में तत्कालीन निदेशक कमलेंद्र प्रसाद और डीआइजी संदीप मित्तल समेत बीएन चट्टोराज ने संकल्प आनंद को बुलाया। बताया कि 250 करोड़ की एक स्कीम कंस्ट्रक्शन की है। रकम अलॉट कर दी गई है। गुड़गांव की कंपनी इंटरजेन एनर्जी ने एक फीसद एडवांस मांगा है। चार जून, 2013 को एक फीसद एडवांस के तौर पर 15 लाख मिल गए। ये पैसा कमलेंद्र और संदीप को दे दिया। 19 जून को कथित एग्रीमेंट तैयार कराया और 75 लाख रुपये रिसीव किए।
इसमें से 20 लाख रुपये एमके डागा ने ले लिए। बाकी रकम संदीप मित्तल को दे दी गई, जिसमें से पांच लाख रुपये संकल्प को दे दिए गए। इस समय तक लेक्चरर को पता नहीं था कि ये गलत काम हो रहा है। किसी फारच्यून कंपनी में काम करने वाली लेक्चरर की दोस्त सिमी शंखधर और उसके पति अमित शंखधर ने आवेदन करने वालों से एक करोड़ रुपये कलेक्ट किए। उसने इंदिरापुरम में एक अपार्टमेंट भी खरीदा।
ब्लैकमेल किया जा रहा था
कोसीकलां। आत्महत्या की सूचना पर कोसी पहुंचे लेक्चरर संकल्प आनंद के परिजनों ने गबन के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। मां ने कहा कि एक गलती को लेकर कुछ लोग बेटे को ब्लैकमेल कर रहे थे। जिन्हें हर कीमत पर सजा दिलाकर रहेंगे। घटना के संबंध में कोसीकलां में कोई तहरीर नहीं दी, कहा कि वे दिल्ली में जाकर मुकदमा दर्ज कराएंगे।
बेटे और बहू की आत्महत्या की सूचना पर संकल्प के पिता संतोष आनंद, मां, दो बहनें एवं दोस्त मंगला अस्पताल पहुंचे, जहां संकल्प की बेटी रिदिमा भर्ती थी। पोस्टमार्टम के बाद वे दोनों शवों को दिल्ली ले गए।