चार साल में सौ डॉक्टरों को भी नहीं मिला दंड
कमीशन के लालच में बहुत से डॉक्टर महंगी दवा या जांच लिखते हैं, यह बात भारतीय चिकित्सा परिषद [एमसीआइ] को पता नहीं चल पाती। कमीशनखोरी ही नहीं, इलाज में जानलेवा लापरवाही तक के मामले में भी इसका रवैया बेहद सुस्त है। देश के नौ लाख से ज्यादा डॉक्टरों में इसने पिछले चार साल में सौ से भी कम के खिलाफ क
नई दिल्ली [मुकेश केजरीवाल]। कमीशन के लालच में बहुत से डॉक्टर महंगी दवा या जांच लिखते हैं, यह बात भारतीय चिकित्सा परिषद [एमसीआइ] को पता नहीं चल पाती। कमीशनखोरी ही नहीं, इलाज में जानलेवा लापरवाही तक के मामले में भी इसका रवैया बेहद सुस्त है। देश के नौ लाख से ज्यादा डॉक्टरों में इसने पिछले चार साल में सौ से भी कम के खिलाफ कोई कार्रवाई की है। वह भी प्रतीकात्मक ही रही।
एमसीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 2010 से अब तक महज 97 मामलों में डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई की सिफारिश की गई हैं। इनमें वे मामले भी शामिल हैं, जो विभिन्न राज्यों की परिषदों के फैसले को चुनौती देते हुए एमसीआइ में लाए गए थे। खास बात यह है कि इन सभी मामलों में एमसीआइ सिर्फ इतना ही करता है कि दोषी डॉक्टर को कुछ समय के लिए प्रैक्टिस करने से रोक देता है। मगर इनमें से किसी भी मामले में डॉक्टर का पंजीकरण [रजिस्ट्रेशन] हमेशा के लिए समाप्त नहीं किया गया है।
एमसीआइ की अध्यक्ष जयश्रीबेन मेहता इस बारे में पूछे जाने पर सिर्फ इतना ही कहती हैं कि 'नियम-कानूनों के तहत रहते हुए हम ऐसे मामलों में बहुत सख्त कार्रवाई कर रहे हैं। साथ ही नई परिस्थितियों के मुताबिक भी तैयारियां की जा रही हैं।' मगर एमसीआइ एथिक्स कमेटी के सदस्य रहे एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. पीके दवे इस बारे में ज्यादा खुल कर बात करते हैं। वे मानते हैं कि विकसित देशों के मुकाबले अपने यहां गलत आचरण में लिप्त डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई बहुत कम होती है। साथ ही वे कहते हैं कि एथिक्स कमेटी को ज्यादा अधिकार और संसाधन संपन्न बनाना जरूरी है।
इसी तरह एथिक्स कमेटी के सदस्य और गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज के प्रोफेसर डॉ. केपी कुशवाहा भी शिकायतों की जांच के दौरान ज्यादा सघन प्रक्रिया अपनाने की वकालत करते हैं। वे कहते हैं कि दोषी डॉक्टरों को तभी पकड़ा जा सकता है, जबकि उनके बैंक खाते और आयकर रिटर्न आदि का ब्योरा मंगवाया जाए। इसी तरह डायग्नोस्टिक लैब में हो रही गड़बड़ियों को ले कर कई नए कदम उठाने का सुझाव देते हैं। इनके मुताबिक एमसीआइ को रेडियोलाजिस्ट और पैथोलाजिस्ट के नियमन के लिए अलग से व्यापक नियमावली बनानी चाहिए। साथ ही एक निर्देश जारी करें कि उन लैब में जिस भी तरह की जांच होती है, उसकी दर वे सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करें।