साइकिल पर सस्पेंस बरकरार, दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद EC ने फैसला सुरक्षित रखा
साइकिल चुनाव चिह्न पर लड़ाई के अंतिम दौर में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव गुट के दिग्गज चुनाव आयोग के सामने लगभग चार घंटे तक बहस करते रहे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सपा की साइकिल पर अभी सस्पेंस बरकरार है। लगभग चार घंटे तक मुलायम और अखिलेश गुट की बहस सुनने के बाद चुनाव आयोग ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। वहीं बेटे अखिलेश यादव के साथ सुलह की तमाम अटकलों और संकेतों को खारिज करते हुए पुराने पहलवान रह चुके मुलायम सिंह यादव ने साफ कर दिया है कि वे अखाड़े के बाहर हार मानने को तैयार नहीं हैं। चुनाव आयोग के सामने दोनों गुटों ने पूरी ताकत के साथ अपना-अपना पक्ष रखा।
आमने सामने डटे रहे दावेदार
साइकिल चुनाव चिह्न पर लड़ाई के अंतिम दौर में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव गुट के दिग्गज चुनाव आयोग के सामने लगभग चार घंटे तक बहस करते रहे। चुनाव आयोग ने 12 बजे का समय दिया था। इसके 15 मिनट पहले मुलायम सिंह यादव अपने आवास से शिवपाल यादव, आशु मलिक, आदित्य यादव के साथ निकले और पांच मिनट बाद ही चुनाव आयोग पहुंच गए। मुलायम सिंह यादव के पांच मिनट बाद ही रामगोपाल यादव, किरणमय नंदा, सुरेंद्र नागर, नीरज शेखर, जावेद अली और अक्षय यादव आयोग पहुंच गए। सबसे पहले अखिलेश गुट को अपना पक्ष रखने को कहा गया। लगभग दो घंटे तक अखिलेश गुट का पक्ष सुनने के बाद भोजनावकाश के लिए एक घंटे का ब्रेक दिया गया। इसके बाद तीन बजे से पांच बजे तक मुलायम सिंह यादव गुट ने अपना पक्ष आयोग के सामने रखा। दोनों पक्षों का तर्क सुनने के बाद आयोग ने फिलहाल अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अखिलेश गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि आयोग ने जल्द ही फैसला सुनाने का आश्वासन दिया है।
प्रतिनिधि हमारे पास तो पार्टी भी हमारी: अखिलेश गुट
लगभग डेढ़ लाख पन्नों के दस्तावेजी सबूतों के साथ समाजवादी पार्टी और उसके चुनाव चिह्न साइकिल पर अखिलेश गुट की ओर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील व कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग के सामने तर्क दिया कि पार्टी किसी एक नेता की जागीर नहीं होती है। बल्कि वह कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों से मिलकर तैयार होती है। उनका कहना था कि सपा के 90 फीसदी कार्यकर्ता और चुने हुए प्रतिनिधि अखिलेश यादव के साथ हैं। सबूत के तौर पर उनके हलफनामे आयोग को सौंपे जा चुके हैं। एक जनवरी को सपा का अधिवेशन बुलाए जाने और अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने को कानूनी रूप से सही बताते हुए सिब्बल ने आयोग से कहा कि 40 फीसदी प्रतिनिधियों की मांग पर पार्टी का अधिवेशन बुलाया जा सकता है। सिब्बल ने तर्क दिया कि पार्टी के अधिकांश प्रतिनिधि अखिलेश यादव के साथ है, इसीलिए समाजवादी पार्टी और साइकिल भी उन्हीं की है। अखिलेश यादव की तरफ से बहस के दौरान रामगोपाल यादव, नरेश अग्रवाल, अक्षय यादव, सुरेंद्र नागर, नीरज शेखर और जावेद अली जैसे नेता आयोग में बहस के दौरान मौजूद थे।
पार्टी में टूट नहीं, तो साइकिल पर झगड़ा कैसा: मुलायम गुट
अखिलेश यादव गुट के विपरीत मुलायम सिंह यादव गुट ने पार्टी में किसी भी तरह की टूट या चुनाव चिह्न पर विवाद से ही इनकार कर दिया। खुद मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहन परासरण ने कहा कि सपा में कभी विभाजन हुआ ही नहीं, तो फिर पार्टी और उसके चुनाव चिह्न पर कोई दावा कैसे कर सकता है। उन्होंने आयोग का ध्यान दिलाया कि अखिलेश गुट ने कभी भी पार्टी के टूटने या उनमें विभाजन का दावा नहीं किया है। एक जनवरी के पार्टी अधिवेशन को असंवैधानिक करार देते हुए उन्होंने कहा कि अधिवेशन बुलाने का हक केवल पार्टी अध्यक्ष को है। साथ ही अधिवेशन बुलाने वाले महासचिव रामगोपाल यादव को पहले ही पार्टी के निष्कासित किया जा चुका था। अधिवेशन असंवैधानिक होने के कारण मुलायम सिंह यादव अब भी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और साइकिल चुनाव चिन्ह सपा का ही है।
पार्टी में टूट को लेकर तर्क
यह जानते समझते हुए कि आयोग का फैसला कहीं न कहीं इस पर भी निर्भर करेगा कि सपा के अंदर टूट हुई या नहीं, दोनों खेमा तैयारी के साथ था। टूट न होने की दशा मंें साइकल पर दावेदारी को गलत ठहरा रहे मुलायम खेमे के जवाब में अखिलेश खेमा ने अमर सिंह की चिट्ठी का सहारा लिया। बताते हैं कि उनकी ओर से कहा गया कि अमर सिंह ने ही चुनाव आयोग को लिखी गई चिट्ठी में 'स्पिलंटर ग्रुप' का हवाला दिया और कहा कि दूसरा खेमा पहले ही मान चुका है कि पार्टी मेैं टूट हो गई है।
तीन दिन के भीतर साफ होगी स्थिति
माना जा रहा है कि चुनाव आयोग मंगलवार के पहले कभी भी साइकिल चुनाव चिह्न पर फैसला सुना सकता है। उत्तरप्रदेश में पहले चरण का विधानसभा चुनाव आठ फरवरी को होना है और इसके लिए नामांकन की प्रक्रिया 17 जनवरी से शुरू हो जाएगी। चुनाव आयोग के सामने किसी एक गुट को चुनाव चिह्न देने से लेकर उसे फ्रिज करने तक विकल्प खुला हुआ है। साइकिल चुनाव चिह्न फ्रिज होने की स्थिति में दोनों गुटों को नए-नए चुनाव चिह्न आवंटित किये जाएंगे।
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