राजनीतिक चंदे से निपटने के लिए कड़े कानून की जरूरत
चुनाव आयोग राजनीतिक चंदे पर कड़े कानून का पक्षधर है। आयोग ने सोमवार को कहा कि चुनाव के दौरान काले धन के इस्तेमाल को रोका जाना है, क्योंकि यह राजनीतिक व्यवस्था में असंतुलन पैदा करता है।
नई दिल्ली। चुनाव आयोग राजनीतिक चंदे पर कड़े कानून का पक्षधर है। आयोग ने सोमवार को कहा कि चुनाव के दौरान काले धन के इस्तेमाल को रोका जाना है, क्योंकि यह राजनीतिक व्यवस्था में असंतुलन पैदा करता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने यहां कहा कि भारत को राजनीतिक चंदे के मुद्दे से निपटने के लिए एक कड़े कानून की जरूरत है। उन्होंने कहा कि काला धन व धन बल और उसके बाद बाहुबल चुनावी प्रक्रिया में असंतुलन पैदा करता है और ये स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हैं।
कालाधन लोकतंत्र पर चोट करता है। कालाधन व बाहुबल चुनाव मैदान में सबको बराबरी के अवसर के स्तर को अव्यवस्थित कर देते हैं। हालांकि, पैसा वोट की गारंटी नहीं हो सकता, लेकिन अधिक खर्च कर सकने वाला उम्मीदवार बेहतर स्थिति में होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की संस्तुतियों व राजनीतिक चंदे पर दिन भर चलने वाली विचार सभा का उद्घाटन कर रहे थे।
आंध्र प्रदेश में 15-15 करोड़ रुपये तक खर्च किए उम्मीदवारों ने
मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसी खबरें हैं कि आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों ने 15-15 करोड़ रुपये तक खर्च किए हैं। उन्होंने आश्चर्य जताया कि यह पैसा आता कहां से है और जाता कहां है। धन बल के बारे में राजनीतिक दलों के जवाब का हवाला देते हुए ब्रह्मा इस बात से भी सहमत हुए किए इसके इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए। बहुत सारे राजनेता इस बात सहमत हैं कि धन बल बुरा है।
पति-पत्नी की तरह राजनीतिक दल और आयोग
उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों व चुनाव आयोग को पति और पत्नी की तरह खुशी से रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि मतभेद हो सकते हैं, लेकिन चुनाव प्रणाली को साफ करना मकसद होना चाहिए।
इस अवसर पर विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एपी शाह ने कहा कि चुनाव के दौरान पैसा ट्रकों में भर कर आता है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में ऐसे उम्मीदवारों का भी पता चला है, जिन्होंने हर मतदाता अपने पक्ष में वोट देने के लिए पांच-पांच हजार रुपये दिए।
राजनीतिक दलों पर कॉरपोरेट का प्रभाव
न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि राजनीतिक दलों पर कॉरपोरेट के प्रभाव से बाद में कॉरपोरेट के हितों को ही जनता के हित के रूप में पेश करने लगते हैं। कॉरपोरेट अब मीडिया हाउस की अधिगृहीत कर रहे हैं। चुनाव सुधारों पर विधि आयोग की हाल की संस्तुतियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कंपनी कानून में संशोधन कर राजनीतिक दलों को कंपनी के कोष से चंदा देने के लिए उनके निदेशक मंडल के बजाय वार्षिक आम सभा में प्रस्ताव पारित कर अधिकार प्राप्त करने की जरूरत होनी चाहिए।