इस कारण एक साल पहले ही चुनावी मोड़ में राजस्थान, नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर
अजमेर, अलवर लोकसभा क्षेत्रों और मांडलगढ़ विधानसभा सीट के चुनाव दिसंबर में गुजरात विधानसभा के चुनाव के साथ ही होने की संभावना बताई जा रही है।
मनीष गोधा, जयपुर। राजस्थान के दो सांसदों और एक विधायक के बीच कार्यकाल में निधन से भाजपा और कांग्रेस की प्रदेश इकाइयां मुश्किल में पड़ गई हैं। दोनों ही दलों को अपनी चुनावी तैयारियां समय से पहले शुरू करनी पड़ रही हैं और राजस्थान एक वर्ष पहले ही चुनावी मोड़ में आ गया है। इसका असर राज्य में चल रही विकास योजनाओं पर भी पड़ना तय माना जा रहा है।
पिछले एक माह में राजस्थान में दो सांसदों सांवरलाल जाट और महंत चांदनाथ का निधन हो गया। इनके अलावा एक विधायक कीर्ति कुमारी की भी स्वाइन फ्लू की चपेट में आकर मौत हो गई। एक माह में तीन नेताओं की मौत से जहां सत्तारूढ़ भाजपा सदमे में है, वहीं कांग्रेस भी परेशानी में आ गई है। राजस्थान में विधानसभा चुनाव अगले वर्ष दिसंबर में होने हैं, लेकिन अजमेर, अलवर लोकसभा क्षेत्रों और मांडलगढ़ विधानसभा सीट के चुनाव दिसंबर में गुजरात विधानसभा के चुनाव के साथ ही होने की संभावना बताई जा रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि राजस्थान में जनता के मूड का बहुत कुछ अंदाजा एक साल पहले ही हो जाएगा।
राजे, पायलट और जितेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर
राजस्थान की जिन दो लोकसभा सीटों अजमेर और अलवर में उपचुनाव होना है, वे दोनों ही राजनीतिक तौर पर प्रमुख सीटें हैं। भाजपा के लिए इन सीटों को जीतना इसलिए जरूरी है, क्योंकि दोनों ही सीटों पर उसका कब्जा था। ऐसे में इन सीटों पर हुई हार सरकार के चार वर्ष के कामकाज पर सवाल खड़ा करेगी और विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।
खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए यह जीत खासी अहम है। इस चुनाव की हार से उनकी कुर्सी पर तलवार लटक सकती है। भाजपा से भी ज्यादा यह सीटें कांग्रेस के लिए अहमियत रखती है। दोनों ही सीटें कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खास सिपहसालारों सचिन पायलट और भंवर जितेंद्र सिंह की सीटें हैं। पायलट इस समय प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। वे अजमेर सीट से चुनाव लड़ते हैं, वहीं भंवर जितेंद्र सिंह अलवर से सांसद रहे हैं और पिछला चुनाव यहीं से हारे थे। ऐसे में कांग्रेस के दो बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा इस चुनाव से जुड़ी है।
अलवर से भंवर जितेंद्र सिंह का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है, जबकि अजमेर सीट को लेकर पायलट दुविधा में दिख रहे हैं। वे राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी माने जा रहे हैं। ऐसे में इस सीट की हार-जीत उनके लिए खासी अहमियत रखती है।
सरकार का कामकाज होगा प्रभावित
इन उपचुनावों से सरकार का कामकाज भी प्रभावित होने की आशंका है। सरकार को अब अपना पूरा ध्यान इन चुनावों की तैयारी में लगाना पड़ेगा। अजमेर और अलवर जयपुर से लगती हुई सीटें हैं। अजमेर लोकसभा सीट में शामिल एक विधानसभा सीट दूदू तो जयपुर जिले में पड़ती है। ऐसे में चुनाव आचार संहिता भी तीन जिलों को सीधे तौर पर प्रभावित करेगी।
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