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सभी के लिए खुलें मंदिरों के दरवाजे: मोरारी बापू

संत मोरारी बापू का कहना है कि मंदिरों के दरवाजे सभी के लिए खुलने चाहिए। किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। जिन धर्माचार्यो को लोग बहुत मानते हैं, उनकी बड़ी जिम्मेदारी है कि वह किसी के साथ भेदभाव न होने दें।

By kishor joshiEdited By: Published: Sat, 06 Feb 2016 08:35 AM (IST)Updated: Sat, 06 Feb 2016 08:45 AM (IST)
सभी के लिए खुलें मंदिरों के दरवाजे: मोरारी बापू

राज कौशिक, नई दिल्ली।संत मोरारी बापू का कहना है कि मंदिरों के दरवाजे सभी के लिए खुलने चाहिए। किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। जिन धर्माचार्यो को लोग बहुत मानते हैं, उनकी बड़ी जिम्मेदारी है कि वह किसी के साथ भेदभाव न होने दें।

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रामकथा मानस राजघाट के सातवें दिन बापू ने कहा कि जातीय आधार पर भेदभाव काफी हद तक कम हुआ है, लेकिन अब भी कुछ करने की जरूरत है। इसके लिए धर्माचार्यो को आगे आने होगा। बापू ने कहा कि धार्मिक क्षेत्र हो, राजनीतिक या फिर सामाजिक क्षेत्र, आखिरी व्यक्ति पूजनीय होना चाहिए। अगर आखिरी व्यक्ति आप तक नहीं पहुंच पा रहा है तो ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप उस तक पहुंचें। अपनी जाति पर सभी को गर्व होना चाहिए, लेकिन दूसरी जाति को निम्न समझना विशुद्ध अधर्म है।

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गांधी जैसे मानव चाहिए:

मोरारी बापू ने कहा कि आज भारत समेत पूरी दुनिया को गांधी जैसे विश्व मानव की जरूरत है। विश्व मानव वह होता है, जिसमें गांधी के गुण हों। गांधी ने कभी कुर्ता नहीं पहना, क्योंकि 40 करोड़ देशवासियों के पास पहनने के लिए कुर्ते नहीं थे। गांधी संवेदना से भरे विज्ञानी थे, जिन्होंने जीवन भर सत्य के प्रयोग किए। गांधी ने जाति, धर्म, पंथ के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया। सत्य ही गांधी का धर्म था और उस तक जाने के लिए उन्होंने अहिंसा का मार्ग चुना

सत्य जहां से मिले, ले लो:

मोरारी बापू ने कहा कि सत्य जहां से भी मिले, ले लेना चाहिए। शुभ विचार चाहे सनातन धर्म में हो, चाहे इस्लाम में, ईसाइयत में या जैन में हो, ग्रहण कर लेना चाहिए। हम खिड़कियों को बंद कर बहुत तोड़फोड़ कर चुके हैं। अब यह सब बंद होना चाहिए। खिड़कियां खोल कर ताजी हवा लेने की जरूरत है। रामकथा सुनने वालों को किसी तरह संकीर्ण नहीं होना चाहिए।

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परंपरा प्रवाही हो:

मोरारी बापू ने कहा कि वह परंपराओं का सम्मान करते हैं, लेकिन परंपरा जड़ नहीं, प्रवाही होनी चाहिए। कपड़े पानी से ही साफ हो सकते हैं, बर्फ से नहीं। परंपरा जड़ हो जाए तो आदमी को बिगाड़ देती है। बापू ने कहा कि वह प्रवाही परंपरा में यकीन रखते हैं, इसीलिए रामकथा को धर्मशाला नहीं बल्कि प्रयोगशाला कहते हैं। इसमें वह सर्वधर्म की बात करते हैं। जिस धर्म में जो भी शुभ है, उसे ले रहे हैं..उसे बांट रहे हैं।

पूजा के लिए भी मत तोड़ो फूल:

बापू ने कहा कि परमात्मा को चढ़ाने के लिए भी फूल नहीं तोड़ने चाहिए। मानस में फूल चुनने का जिक्र है, तोड़ने का नहीं। मंदिरों में बहुत यादा फूल चढ़ाना भी बाद में अस्वछता का कारण बन जाता है। मंदिरों में दर्शन करने जाओ तो अंदर की मूर्तियों के साथ बाहर के पेड़-पौधों और पक्षियों को भी देखो। प्रकृति को सम्मान दो, उसके दर्शन करो।


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