डॉक्टर की मृत देह के बगल में सोता मिला भाई
खाते-पीते लोगों की कॉलोनी शास्त्रीनगर में शनिवार को एक भयावह दृश्य देखकर पुलिस भी कांप गई। मकान नंबर बी-163 में रहने वाले डॉ. हरेंद्र मगई की लाश कमरे में सड़ी हुई मिली, जबकि पास में मृतक का अवसादग्रस्त भाई हरीश सोता हुआ मिला। दोनों की उम्र 60 वर्ष से ज्यादा है। करीब महीने भर से दोनों भा
जागरण संवाददाता, मेरठ। खाते-पीते लोगों की कॉलोनी शास्त्रीनगर में शनिवार को एक भयावह दृश्य देखकर पुलिस भी कांप गई। मकान नंबर बी-163 में रहने वाले डॉ. हरेंद्र मगई की लाश कमरे में सड़ी हुई मिली, जबकि पास में मृतक का अवसादग्रस्त भाई हरीश सोता हुआ मिला। दोनों की उम्र 60 वर्ष से ज्यादा है। करीब महीने भर से दोनों भाई घर से बाहर देखे नहीं गए थे। घर से लगातार उठती तेज बदबू से पड़ोसियों को शक हुआ। बगल में रहने वाले डॉ. विनोद अग्रवाल ने पुलिस को सूचित किया, तो हैरतअंगेज वाकया सामने आया। पुलिस ने दरवाजा खटखटाया, किंतु अंदर से कोई आहट नहीं आई। दरवाजा तोड़कर जब पुलिस अंदर पहुंची, तो वहां के दृश्य ने पुलिस को झकझोर कर रख दिया। सड़ी- गली लाश की बगल छोटा भाई हरीश मगई सोता हुआ मिला। उसका रूप देखकर पड़ोसी भी सन्न रह गए। लाश क्षत-विक्षत हो चुकी थी और उसमें कीड़े भी पड़ चुके थे।
एकांत पसंद थे दोनों भाई:
मृतक डॉ. हरेंद्र मगई सरधना के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक के तौर पर कार्यरत थे। 2006 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया, जबकि दूसरे भाई हरीश नौसेना से रिटायर्ड थे। दोनों भाई कुंवारे थे। वे आसपास के लोगों से ज्यादा मतलब नहीं रखते थे।
पड़ोसियों ने बताया कि मृतक डॉ. हरेंद्र ने एमएस (मास्टर ऑफ सर्जरी) किया था और वह अपने बैच के गोल्ड मेडलिस्ट थे। मृतक के भाई हरीश मानसिक रूप से बीमार थे, जो बाहर से गंदगी को लाकर अपने घर में एकत्रित करते थे।
दोनों भाई घर पर खाने का टिफिन व दूध मंगवाते थे। महीने भर से पड़ोसियों ने टिफिन व दूधवालों को भी नहीं देखा। पता चला कि इनके दो भाई विदेश में रहते हैं।
पुलिस का कहना है कि दोनों भाइयों की चिकित्सा का कोई पर्चा भी नहीं मिला। देर शाम तक पुलिस घर पर डटी रही। पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा, जबकि हरीश को पुलिस ने घंटों घर से बाहर बिठाकर रखा। उसने पुलिस पर भाई को खुद से जुदा करने का आरोप लगाया।
इनका कहना है:
अपने प्रियजन की मौत पर कई बार परिजनों में ग्रीफ रिएक्शन नामक बीमारी हो जाती है, जिसमें मरीज लाश को जीवित मानकर व्यवहार करता है। लाश के पास सोने की घटना बता रही है कि व्यक्ति डबल डिप्रेशन में चला गया है। ऐसे मरीजों में लाश की बदबू से कोई परेशानी नहीं होती है। इलाज से यह रोग पूरी तरह ठीक हो सकता है।
-डॉ. सत्यप्रकाश, न्यूरो साइकेट्रिस्ट
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