Move to Jagran APP

लालच में आकर डॉक्टर लगा रहें हैं बच्चों को गैरजरूरी टीके ?

हालांकि इसका प्रकोप अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में ज्यादा है। ऐसे में यह वैक्सीन विदेशी यात्रा करने वाले व्यक्तियों को बतौर ऐतियात के तौर पर दी जाती है।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Sat, 08 Apr 2017 06:50 PM (IST)Updated: Sat, 08 Apr 2017 07:51 PM (IST)
लालच में आकर डॉक्टर लगा रहें हैं बच्चों को गैरजरूरी टीके ?
लालच में आकर डॉक्टर लगा रहें हैं बच्चों को गैरजरूरी टीके ?

नई दिल्ली,जेएनएन । स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में डाक्टर और मरीज के बीच विश्वास की महीन रेखा होती है, जिसमें टीकाकरण उस विश्वास की दिशा में पहला कदम होता है। लेकिन इस क्षेत्र में उस विश्वास को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। आउटलुक मैग्जीन के मुताबिक इन दिनों भारत में कई तरह की प्रचलित बीमारियों के लिए अनेक टीकों की बिक्री का दौर जारी है, जैसे येलो फीवर वैक्सीन। दिल्ली में यह एक प्रचलित वैक्सीन है, जिसकी देश में प्रत्येक माह दो हजार यूनिट बिक्री हो रही है। जबकि हकीकत यह है कि येलो फीवर का प्रकोप भारत और एशिया में लगभग जीरो है।

loksabha election banner

हालांकि इसका प्रकोप अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में ज्यादा है। ऐसे में यह वैक्सीन विदेशी यात्रा करने वाले व्यक्तियों को बतौर ऐतियात के तौर पर दी जाती है। वैक्सीन की प्रति व्यक्ति एक खुराक की कीमत 1, 850 रुपये है। जिसका मार्केट करोड़ रुपए का कारोबार है। वहीं इसका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में डाक्टर आम लोगों की परवाह किये बगैर वैक्सीन से बेतहाशा कमाई कर रहे हैं।

विज्ञापनों के माध्यम से इन वैक्सीन को मार्केट बढ़ाया जा रहा है। बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन के इस कारोबार में प्राइवेट सेक्टर बॉडी प्राइवेट सेक्टर 10 से 15 फीसद तक सीधे तौर पर शामिल है। हालांकि यह एक सीमित दायरा है। लेकिन इसके बावजूद राज्य संचालित टीकाकरण प्रोग्राम का इसमें एक बड़ा हिस्सा है। टीकाकरण पब्लिक हेल्थ एजेंसी के जरिए बढ़ रहा है। लेकिन जिस तरह से इसे क्रियान्वित किया जा रहा है, उसमें कई तरह की लापरवाही बरती जा रही है।

यह भी पढ़ें:  स्वाइन फ्लू से एक की मौत, स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप

17 मार्च को सांसद हरीश मीणा की ओर से इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया गया था। जिसके जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स (आईएपी) में भ्रष्टाचार की बात को स्वीकार किया। मामले को लेकर कर्नाटक के एक डॉक्टर की ओर से शिकायत मिलने की भी बात कही गयी थी। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से आईएपी को किसी तरह से बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) समेत सभी तरह के टीकाकरण सरकार की स्वास्थ्य योजनाएं के तहत मुफ्त में कराए जा रहे हैं। वर्तमान समय में भारत में प्रत्येक वर्ष करीब 27 मिलियन नवजात शिशु प्राइवेट सेक्टर के माध्यम से टीका ग्रहण करते हैं।

शहरी क्षेत्रों में प्राइवेट सेक्टर से टीका ग्रहण करने का औसत दर ग्रामीण इलाकों से ज्यादा है। इसकी एक वजह चिकित्सा इंडस्ट्री का स्ट्रक्चर है। ज्यादातर वैक्सीन विदेशों से आयात की जाती हैं। जिसकी बिक्री बढ़ाने के उद्देश्य से इन वैक्सीनों को डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिये डॉक्टरों के पास भेजा जाता है। कई ऐसी वैक्सीन हैं, जिन्हें बिना किसी आवश्यकता के लगाया जा रहा है। इन वैक्सीन को प्रतिष्ठित पेडियाट्रिक्स समूह से मान्यता लेकर बाजार में उतारा जाता है। इसमें एक बड़ी लॉबी काम कर रही है।

बता दें कि सरकार की ओर से सभी पांच साल तक के बच्चों को मुफ्त मे टीकाकरण किया जा रहा है। मौजूदा समय में प्रत्येक बच्चों को सरकार की ओर से छह टीका लगाएं जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष राज्यों में तीन अतिरिक्त टीके लगाए जा रहे हैं। जबकि दूसरी ओर प्राइवेट डॉक्टर आपके बच्चों को करीब 25 टीके लगा रहे हैं। जिनकी कीमत भी काफी महंगी होती है। शहरी क्षेत्रों कई माता-पिता के लिए यह खर्च वहन करना महंगा होता है।

ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1945 के मुताबिक पेडियाट्रिशियन की ओर से बच्चों को लगायी जाने वाली प्रत्येक वैक्सीन का रिकार्ड रखना जरूरी होता है। हालांकि सरकारी और गैर सरकारी कोई ऐसा तंत्र नहीं है, जिससे पेडियाट्रिशियन के इन रिकार्ड की जांच करे। जिसकी वजह से अवैध मात्रा में कई वैक्सीन को डाक्टरों की ओर से बढ़ावा दिया जा रहा है। हालात यह है कि डिस्ट्रीब्यूटर्स से डॉक्टर तक पहुंचने वाली वैक्सीन की कीमत 30 से 300 हो जाती ही। जहां एक वैक्सीन की कीमत अगर 1200 रुपये होती है, तो वो टीकाकरण वाले माता-पिता को 3,800 रुपये में दी जा रही है।

यह भी पढ़ें: इसी साल होगा दुनिया का पहला 'हेड ट्रांसप्लांट'

ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की ओर से मान्यता प्राप्त वैक्सीन के जवाब में अलग-अलग कंपनियों के प्रतिनिधि डाक्टर के पास अपने उत्पाद लेकर पहुंच जाते हैं और डाक्टर से अपनी कंपनी के उत्पाद को बेंचने की अपील करते हैं। डाक्टर उन्हीं की कंपनी की दवा मरीजों को लिखे। इसे लेकर डाक्टर को कई तरह के लालच दिये जाते हैं, जैसे किसी यात्रा का ऑफर, वैक्सीन के फ्री सैंपल आदि। नियम के मुताबिक वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखना चाहिए। इससे ऊपर के तापमान में यह वैक्सीन खराब हो जाती हैं। हालांकि प्राइवेट डिस्ट्रीब्यूटर्स जिस तरह से इन वैक्सीन की सप्लाई करते हैं, वो भी संदेह के दायरे में है। अगर आप दिल्ली की बड़ी ड्रग्स होलसेल मार्केट चांदनी चौक में जाएंगे तो देखेंगे कि वैक्सीन को बिना किसी फ्रिंजिंग प्वाइंट के साथ ट्रकों से मेडिकल स्टोर को सप्लाई किया जा रहा है। यह सरकारी नियमों का उल्लंघन है। साथ ही लाइंसेस लेने में कई तरह की गड़बडियां सामने आ रही हैं।

ऐसी वो 15 वैक्सीन जो जरूरी नहीं है लेकिन प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डाक्टर उपयोग करते हैं।
1. आईपीवी
2. डीटी
3. टीडैप
4. टाइफाइड
5. एचआईबी
6. एमएमआर
7. एचपीवी
8. हेपेटाइटिस ए
9. चिकेन पॉक्स

कुछ जरूरी स्थिति में वैक्सीन-
10. रेबीज
11. इन्फ्लूएंजा
12. पीपीएसवी 23
13. मीनिंगकोकल
14. कॉलरा
15. यलो फीवर

जरुरी टीकाकरण-
1. बीसीजी
2. डीपीटी
3. ओपीवी
4. मीयल्स
5. हेपेटाइटिस बी
6. टीटी (टिटनेस टॉक्साइड)
7. पेनेम्यूकोकल
8. डीपीटी+हेपेटाइटिस बी+एचआईवी
9. रोटावायरस
10. जेई वैक्सीन 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.