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20 साल बाद डॉक्टर चिकित्सीय लापरवाही के आरोप से मुक्त

इस वजह से मरीज की अगले ही दिन मौत हो गई थी। मरीज के भाई ने आरोपी सर्जन के अलावा दो और डॉक्टरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

By Manish NegiEdited By: Published: Sun, 09 Apr 2017 06:10 PM (IST)Updated: Sun, 09 Apr 2017 07:33 PM (IST)
20 साल बाद डॉक्टर चिकित्सीय लापरवाही के आरोप से मुक्त
20 साल बाद डॉक्टर चिकित्सीय लापरवाही के आरोप से मुक्त

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र की एक डॉक्टर को 20 साल बाद चिकित्सीय लापरवाही के आरोप से मुक्त कर दिया है। सड़क दुर्घटना के एक पीडि़त की अस्पताल में मौत के बाद उन पर यह आरोप लगा था।

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जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा, 'किसी डॉक्टर के लिए यह कतई संभव नहीं है कि वह इलाज को लेकर यह आश्वासन या गारंटी दे सके कि उसका परिणाम सकारात्मक ही होगा। एक पेशेवर सिर्फ यही आश्वासन दे सकता है कि वह पेशेवर रूप से सक्षम है और उसके पास सौंपे गए कार्य को सावधानी पूर्वक करने की जरूरी कुशलता है।'

दरअसल, 29 अगस्त, 1997 को अमरावती के इरविन अस्पताल में एक मरीज को देखने के लिए आरोपी डॉक्टर (सर्जन) को बुलाया गया था। उसकी जांच करने के बाद डॉक्टर ने पाया कि मरीज के पेट में दर्द था। लिहाजा उन्होंने फिजीशियन को बुलाने की सलाह दी, लेकिन कोई भी फिजीशियन मरीज को देखने नहीं आया। आरोपी सर्जन पर प्रमुख आरोप यह था कि उन्होंने फिजीशियन के आने का इंतजार नहीं किया, जबकि मरीज हीमोफीलिया से पीडि़त था। इस बीमारी में मरीज के खून में थक्का जमने की क्षमता प्रभावित हो जाती है।

इस वजह से मरीज की अगले ही दिन मौत हो गई थी। मरीज के भाई ने आरोपी सर्जन के अलावा दो और डॉक्टरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। महाराष्ट्र हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने आरोपी सर्जन को दोषी पाया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सर्जन को मरीज के शरीर पर खून बहने या चोट का कोई साक्ष्य नहीं मिला था। लिहाजा उन्होंने फिजीशियन को बुलाने का सुझाव दिया था। वह अस्पताल से इसलिए चलीं गईं क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि फिजीशियन जल्द ही आ जाएगा। अगर अस्पताल स्टॉफ ने देखा कि फिजीशियन नहीं आ सका तो उन्हें सर्जन को फिर बुला लेना चाहिए था, लेकिन ऐसा भी नहीं किया गया।

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