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गुलाम कश्मीर के विस्थापित परिवारों ने काली पट्टियां बांध कर किया प्रदर्शन

शनिवार को महेशपुरा चौक में विस्थापितों की संस्था एसओएस इंटरनेशनल ने रैली में जमकर भड़ास निकाली।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Sat, 22 Oct 2016 10:25 PM (IST)Updated: Sun, 23 Oct 2016 03:54 AM (IST)

जागरण संवाददाता, जम्मू : 22 अक्टूबर, 1947 को अपने घरों से बेघर हुए गुलाम कश्मीर के विस्थापित परिवारों ने शनिवार को काली पट्टियां बांध कर प्रदर्शन किया और इस दिन को काला दिवस के तौर पर मनाया। वहीं पुनर्वास नहीं किए जाने को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की।

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शनिवार को महेशपुरा चौक में विस्थापितों की संस्था एसओएस इंटरनेशनल ने रैली में जमकर भड़ास निकाली। कहा गया कि करीब 70 साल बीतने को आए हैं, मगर गुलाम कश्मीर के इन विस्थापितों से आज तक इंसाफ नहीं हो पाया। संस्था के प्रधान राजीव चुन्नी ने कहा कि सोची समझी साजिश के तहत कबायलियों ने पाकिस्तानी सेना की सहायता से 22 अक्टूबर, 1947 को मुजफ्फराबाद जिले में हमला बोल हिंदू-सिख लोगों के साथ मारकाट शुरू की थी और अगले दिन तक यह जिला पाकिस्तान की गिरफ्त में आ गया था तथा हजारों परिवार बेघर हो गए व विस्थापित बनकर यहां आ गए। इस मारकाट में हमारे कई लोगों की जानें गईं।

इतना कुछ खोने के बाद भी इन विस्थापित परिवारों की आज तक सुनवाई नहीं हो पाई। मंदे हालात में लोग आज भी कैंपों में रहकर अपना जीवन बसर कर रहे हैं। चुन्नी ने कहा कि गुलाम कश्मीर को छुड़वाने के लिए संसद में प्रस्ताव पास तो हुआ मगर यह इलाका खाली नहीं कराया गया। जम्मू-कश्मीर में आज तक गुलाम कश्मीर क्षेत्र की सीटों को खाली रखा गया है।

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श्रद्धांजलि के लिए सर्वधर्म प्रार्थना

22 अक्टूबर, 1947 को मुजफ्फराबाद जिले में कबायलियों की मारकाट में जिन लोगों की जानें चली गई थीं, उन्हें श्रद्धांजलि देकर याद किया गया। महेशपुरा चौक में एसओएस इंटरनेशनल के महासचिव ललित कुमार ने सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन किया और दो मिनट का मौन रखकर शांति के लिए प्रार्थना की।

ऐसे उजड़े कि बस न सके

गुलाम कश्मीर के भिंबर में कभी काका सिंह अपने माता-पिता के साथ रहते थे। मगर ऐसी आंधी चली कि वहां अपनी जमीन, संपत्ति छोड़ कर यहां आना पड़ा। अपने ही राज्य में विस्थापित बनकर रह गए। आज काका सिंह 84 साल के हैं मगर उनको 1947 का मंजर कुछ-कुछ आज भी याद है। पुंछ जिले के मंथैनी (अब पाकिस्तान के कब्जे में) में जन्मे व कुछ बचपन वहां बिताने वाले अमरनाथ का कहना है कि विस्थापन का दर्द आज 68 साल बाद भी उनको दुख पहुंचाता है। कितना कुछ हम लोगों ने खोया मगर आज तक विस्थापित लोग बस नहीं पाए।

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