एक्सक्लूसिव : 'देश में भाजपा की लहर नहीं, मोदी का जहर'
लखनऊ [आनन्द राय]। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [एनसीपी] केंद्र में लंबे समय से कांग्रेस की साझीदार है, लेकिन पिछले चुनावों तक उत्तर प्रदेश में वह कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले खड़ी रही। पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने 1999 के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी को कांग्रेस के प्रचार में खड़ा किया है। पवार ने एनसीपी महासचिव और सा
लखनऊ [आनन्द राय]। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [एनसीपी] केंद्र में लंबे समय से कांग्रेस की साझीदार है, लेकिन पिछले चुनावों तक उत्तर प्रदेश में वह कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले खड़ी रही। पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने 1999 के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी को कांग्रेस के प्रचार में खड़ा किया है। पवार ने एनसीपी महासचिव और सांसद देवी प्रसाद त्रिपाठी [डीपीटी] को रायबरेली में सोनिया गांधी और अमेठी में राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के लिए भेजा है। मूलत: सुल्तानपुर के ही रहने वाले त्रिपाठी यूपी आ गए हैं। दैनिक जागरण ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश
मोदी की लहर चल रही है। यूपी में क्या असर होगा?
देश में कहीं कोई लहर नहीं है। मोदी का जहर जरूर है। 1989 से भारत का चुनाव देखिए तो आज तक कोई लहर नहीं चली। किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। अबकी भी किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने वाला है।
भीड़ में, रैलियों में और जन चर्चाओं में मोदी का प्रभाव दिख रहा है?
इस बार नई शैली इजाद हुई है। पूरी तरह व्यक्ति केंद्रित चुनाव प्रचार हो रहा है। यह एक हौव्वा है जो विपक्ष बार-बार मोदी का नाम लेने से खड़ा हो गया है।
तो विपक्ष मोदी का नाम क्यों ले रहा है?
इसलिए कि उन्हें पीएम का दावेदार बनाया गया है।
अबकी बार मोदी सरकार, नारा कितना असरदार होगा?
नारा तो पहले भी दिया कि अबकी बारी-अटल बिहारी, लेकिन तब नारा इतना व्यक्तिवादी नहीं था, जितना मोदी के साथ है।
मोदी की प्रचार शैली पर इतना हमला क्यों?
यह देशी-विदेशी कंपनियों के माध्यम से बहुराष्ट्रीय ब्रांडिंग शैली है। कारपोरेट शैली में रैलियों का आयोजन हो रहा है। सबसे नोटिस लेने की बात यह है कि पहली बार सत्ताधारी दल से कई गुना ज्यादा पैसा मोदी और उनकी पार्टी प्रचार पर कर रही है। बेतहाशा खर्च ने सभी दलों को हमला करने पर मजबूर किया है। इसका आकलन होना चाहिए कि आखिर ये पैसे कहां से आ रहे हैं।
शरद पवार कभी मोदी को लेकर दो टूक राय नहीं रख सके। जब अदालत ने उन्हें क्लीन चिट दी तो सबसे पहले पवार ने ही उनका स्वागत किया?
उन्होंने मोदी का नहीं अदालत के फैसले का स्वागत किया। लेकिन 24 घंटे के भीतर उन्होंने मोदी पर जितना करारा प्रहार किया, शायद किसी ने किया हो। पवार ने साफ कहा कि यह देश कभी मोदी को पीएम स्वीकार नहीं करेगा। मोदी राजनेता भले हो गए, लेकिन वह टीम मैन नहीं हैं।
यूपीए-तीन को लेकर आपकी उम्मीद और आशंकाएं क्या हैं?
एक बात तो साफ है कि एनडीए को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने वाला है। वह सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभर सकते हैं। आशय कि नई लोकसभा में गैर एनडीए सदस्यों की संख्या एनडीए से ज्यादा होगी। अगर यूपीए को सरकार बनाने में कमी आयी तो उनके बीच से बहुमत जुटाने की पहल होनी चाहिए। मसलन जयललिता और ममता बनर्जी मददगार हो सकती हैं।
एनसीपी और कांग्रेस के रिश्तों में कितनी मजबूती है?
राजनीतिक व्यवहार को देखें तो केंद्र में दस और महाराष्ट्र में 15 वर्ष पूरी जिम्मेदारी से साथ रहे। छोटे-बड़े मतभेद को छोड़ दें तो हर नीतिगत मुद्दे पर हम कांग्रेस के साथ खड़े हैं।
तो फिर अक्सर रार-तकरार क्यों?
हमने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में समन्वय के लिए बराबर दबाव बनाया। बाकी कोई ऐसी बात नहीं रही।
लेकिन मंत्रियों की सूची में शरद पवार का नाम दूसरे नंबर से हटाकर नीचे करना ..?
छोटी-छोटी बातें नहीं होनी चाहिए।
राबर्ट वाड्रा पर लगाए जा रहे आरोप और प्रियंका के बचाव से आप कहां तक सहमत हैं?
प्रियंका की बात से सहमत हूं। वाड्रा पर आरोप नहीं लगाए गए, सवाल उठाए गये हैं। सवाल उठाने से आरोप नहीं बनता। जबकि मोदी ने येद्दियुरप्पा और रेड्डी बंधुओं जैसे आरोपशुदा लोगों को गले लगा लिया है।
संजय बारू और एक्सीडेंटल पीएम पर आप क्या कहेंगे?
किसी को भी पुस्तक लिखने का अधिकार है। बारू पीएम के भरोसेमंद सलाहकार थे और उन्होंने उनके विश्वास को भंग कर सर्वथा मर्यादाहीन काम किया। बारू ने जो लिखा वह गरिमामय नहीं है।
अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी .?
दिल्ली को केजरीवाल से बहुत आशाएं और उम्मीदें थीं। जिस तरह का आचरण केजरीवाल की पार्टी ने किया उससे सिद्ध हुआ कि आप भारत के लिए शाप है। केजरीवाल ने तो अहंकार की हद कर दी है।
व्यक्तिगत तौर पर आप मोदी को किस तरह देखते हैं?
देखिए मोदी और मुझमें बहुत सी समानताएं हैं। वह भी चाय बेचते थे और मेरे पिता भी हावड़ा में चाय बेचते थे। उनकी चाय जहरीली हो गयी है, लेकिन मेरे पिता की चाय की मिठास आज भी कायम है। मोदी 1950 में जन्मे और मेरा भी जन्म वर्ष 1950 है। मोदी राजनीति शास्त्र में एमएम हैं और मैं भी। मैं तो इस विषय का प्राध्यापक भी हूं। मोदी का बाल विवाह हुआ और मेरा भी। फर्क बस इतना है कि मैं जोड़ने में विश्वास रखता हूं और वह बांटने में।
पढ़ें: मोदी सरकार भारत-पाक रिश्तों को देगी मजबूती: बासित
पढ़ें: जी हां! नरेंद्र मोदी से ज्यादा अमीर हैं 'आप' के नेता केजरीवाल