प्रतिबंध के बावजूद जारी है देवदासी प्रथा
पत्रकार अरुण एजुथाचन ने अपनी मलयाली किताब 'विसुधा पापनगालुदे इंडिया' में देवदासियों के जीवन के कटु सत्यों का जिक्र किया है।
तिरुअनंतपुरम, प्रेट्र। एक मलयाली किताब में दावा किया गया है कि महिलाओं को देवदासी बनाने की प्रथा प्रतिबंध के बाद भी देश के कई हिस्सों में जारी है। इस प्रथा में महिलाओं को स्थानीय मंदिरों में पहले भगवान की सेवा के लिए समर्पित किया जाता है और फिर देह व्यापार के लिए कथित तौर पर बाध्य किया जाता है।
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मलयाली पुस्तक 'विसुधा पापनगालुदे इंडिया' (भारत : पवित्र पापों की भूमि) में कहा गया है कि देवदासियों को आम पारिवारिक जीवन जीने की मनाही होती है। पेट के लिए रोटी जुटाने की खातिर वह देह व्यापार करने के लिए बाध्य होती हैं। पत्रकार अरुण एजुथाचन ने समाज के हाशिये पर मौजूद महिलाओं के पीड़ादायी संघर्ष तथा देवदासियों की व्यथा पर यह पुस्तक लिखी है।
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किताब में उन्होंने बताया है कि कर्मकांडों और धार्मिक चलन के नाम पर किस तरह देवदासियों को शोषण का शिकार होना पड़ता है। अरुण ने कहा, 'हम महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग तरह के शोषण और प्रताड़ना के बारे में बात करते हैं। लेकिन देवदासी जैसे हाशिये पर रहने वाले समूहों की समस्याएं अलग हैं। यह जान कर सचमुच हैरत होती है कि सदियों पुराने रीति-रिवाजों और धार्मिक परंपराओं के नाम पर 21 वीं सदी में भी महिलाओं का शोषण होता है।
उत्तर प्रदेश में वृन्दावन की विधवाओं की दुखदायी गाथा भी अलग नहीं है, जिन्हें श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा की तरह रहना होता है।' डीसी बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब में कमाठीपुरा और सोनागाछी सहित देश के विभिन्न रेडलाइट इलाकों की देह व्यापार करने वाली महिलाओं की समस्याओं पर भी प्रकाश डाला गया है।