हैदराबाद के अंतिम निजाम के वंशज ने मांगी शाही घराने की औरंगाबाद में 227 एकड़ जमीन
हैदराबाद के सातवें और अंतिम निजाम नवाब सर मीर उस्मान अली खान बहादुर के वंशजों ने सरकार से 277 एकड़ जमीन सौंपने का आग्रह किया है।
औरंगाबाद, प्रेट्र। हैदराबाद के सातवें और अंतिम निजाम नवाब सर मीर उस्मान अली खान बहादुर के वंशजों ने सरकार से 277 एकड़ जमीन सौंपने का आग्रह किया है। निजाम के वंशजों का दावा है कि यह जमीन उनके शाही घराने की है।
सातवें नवाब के पोते नवाब नजफ अली खान ने औरंगाबाद में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उन्होंने जिले के कलेक्टर से संपत्ति में उनका और उनके परिवार के सदस्यों का नाम शामिल करने का आग्रह किया है। उन्होंने जमीन पर कब्जा या मुआवजा दिलाने के लिए कहा है।
उन्होंने बताया, '25 जनवरी 1950 को सर उस्मान अली खान ने अपनी सभी अचल संपत्तियों की सूची सौंपी थी। निजाम और केंद्र सरकार के बीच हुए समझौते के तहत यह सूची सौंपी गई थी। वंशज होने के नाते अपने दादा के नाम की संपत्ति साझा करने के सभी कानूनी अधिकार में हम हासिल हैं।' वर्तमान में ऐसी भूमि पर कई सरकारी कार्यालय और अन्य संपत्तियां हैं।
उस्मान अली खान 911 से 1948 तक वे हैदराबाद रियासत के निज़ाम (शासक) रहे और उसके पश्चात 1956 तक उसके संवैधानिक प्रमुख। एक समय में विश्व के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक उस्मान ने इटली के बराबर रियासत पर राज्य किया।
राजनीतिक जीवन
निजी तौर पर शिक्षा ग्रहण करने के बाद उस्मान अली ने 29 अगस्त 1911 को छठे निज़ाम महबूब अली खान से पदभार सँभाला। वित्तीय सुधारों को बढ़ावा देते हुये हैंदरावाद रियासत को वांछनीय वित्तीय रूप से सशक्त स्थिति में लाने का श्रेय उन्हें जाता है। रियासत ने अपनी मुद्रा और सिक्के जारी किए और एक प्रमुख रेल कंपनी का स्वामित्व ग्रहण किया। 1918 में उनकी संरक्षण में उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद की स्थापना की गयी। कुछ पड़ोसी राजकुमारों के बिपरीत उन्होने अपनी रियासत का सामंतवादी स्वरूप बनाए रखा और अपनी जनता के बीच बहुसंख्यक हिंदुओं की निरंतर बढ़ती आवाज़ की तरफ खास ध्यान नहीं दिया, हालांकि उनका जीवन-स्तर सुधारने पर काफी खर्च किया। द्वितीय विश्वयुद्ध में उनकी रियासत ने नौसैनिक जहाज और दो रॉयल एयरफोर्स स्क्वाड्रन उपलब्ध कराये। 1946 में उन्हें रॉयल विक्टोरिया चेन से सम्मानित किया गया।
साम्राज्य के अवसान के बाद का जीवन
अपनी निजी सेना, रजाकार सहित मजलिसे इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (मुस्लिम एकता के लिए आंदोलन) से समर्थन पाकर उस्मान अली ने अंग्रेजों के चले जाने के बाद 1947 में भारतीय संप्रभुता के समक्ष समर्पण करने से इंकार कर दिया। अंग्रेजों के साथ विशेष गठबंधन की दुहाई देते हुये उन्होने संयुक्त राष्ट्र संघ में हैदराबाद की पूर्ण स्वतन्त्रता का अपना मामला रखा। उन्होने अपनी सत्ता का समर्पण करने की भारत की चेतावनी को अस्वीकार कर दिया, परंतु सितंबर 1948 में भारतीय सैनिकों की शक्ति के सामने उन्हें झुकना पड़ा। उन्हें रियासत का राजप्रमुख बनाया गया, परंतु उन्हें निर्वाचित विधायिका के प्रति जबाबदेह कैबिनेट मंत्रियों की सलाह पर चलना था। यह व्यवस्था 1956 के सामान्य सीमा पुनर्गठन के कारण उनकी रियासत के पड़ोसी राज्यों में विलय होने तक कायम रही। इसके बाद वे तीन पत्नियों, 300 नौकरों, वृद्ध आश्रितों और निजी सेना सहित वैभवशाली सेवानिवृत्ति का जीवन व्यतीत करने लगे। उन्होने अपने पूर्व समय के लगभग 10,000 राजकुमारों और दास-दासियों को पेंशन प्रदान की और फिलिस्तीन के मुस्लिम शरणार्थियों को सहायता दी।
हैदराबाद के निज़ाम-उल-मुल्क
हैदराबाद रियासत की एक पूर्व राजशाही थी, जिसका विस्तार तीन वर्तमान भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में था। निज़ाम-उल-मुल्क जिसे अक्सर संक्षेप में सिर्फ निज़ाम ही कहा जाता है और जिसका अर्थ उर्दू भाषा में क्षेत्र का प्रशासक होता है, हैदराबाद रियासत के स्थानीय संप्रभु शासकों की पदवी को कहा जाता था। निज़ाम 1719 से हैदराबाद रियासत के शासक थे और आसफ़ जाही राजवंश से संबंधित थे। इस राजवंश की स्थापना मीर क़मर-उद-दीन सिद्दीकी, ने की थी जो 1713 से 1721 के बीच मुग़ल साम्राज्य के दक्कन क्षेत्र का सूबेदार था। क़मर-उद-दीन सिद्दीकी ने असंतत रूप से 1724 में आसफ जाह के खिताब के तहत हैदराबाद पर शासन किया और 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद जब मुगल साम्राज्य कमज़ोर हो गया तो युवा आसफ जाह ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। 1798 से हैदराबाद, ब्रिटिश भारत की रियासतों में से एक था, लेकिन उसने अपने आंतरिक मामलों पर अपना नियंत्रण बनाए रखा था।
भारतीय सेना व पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण
सात निजामों ने लगभग दो शताब्दियों यानि 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक हैदराबाद पर शासन किया। आसफ जाही शासक साहित्य, कला, वास्तुकला, संस्कृति, जवाहरात संग्रह और उत्तम भोजन के बड़े संरक्षक थे। निजाम ने हैदराबाद पर 17 सितम्बर 1948 तक शासन किया, जब इन्होने भारतीय बलों के समक्ष आत्मसमर्पण किया और इनके द्वारा शासित क्षेत्र को भारतीय संघ में एकीकृत किया गया।