Move to Jagran APP

दिव्यांग बच्चों की शिक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर

अपने खर्च पर आवासीय विद्यालय खोल मंगलदेव संवार रहे बच्चों का भविष्य...

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 27 Jul 2017 09:29 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jul 2017 09:29 AM (IST)
दिव्यांग बच्चों की शिक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर
दिव्यांग बच्चों की शिक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर

रांची (पूनम जायसवाल)। वंचितों के सब कुछ अर्पण कर देने का जुनून देखना हो, तो रांची से 25 किमी दूर अनगड़ा के मंगलदेव महतो से मिलिए। खुद दिव्यांग होने की पीड़ा झेल रहे मंगलदेव अब क्षेत्र के अपने जैसे व अनाथ बच्चों के सबकुछ हैं। जैसे-तैसे इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने ठान लिया कि दिव्यांग बच्चों की नींव को इतना मजबूत कर दूंगा जिससे वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। सोच को साकार करने के लिए उन्होंने महर्षि बाल्मीकि विकलांग सह अनाथ स्कूल शुरू किया। आर्थिक समस्या सामने आने पर धान बेचकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इससे भी हालात नही सुधरे, तो पत्नी कुसमी देवी व तीन बच्चों के साथ घर छोड़कर बच्चों के साथ ही रहने लगे। बच्चों को वे खुद पढ़ाते हैं, पत्नी भोजन तैयार करती हैं और बच्चे साफ-सफाई सहित अन्य काम करते हुए खुद भी पढ़ाई करते हैं।

loksabha election banner

स्कूल के लिए उन्होंने अपनी 45 डिसमिल (0.45 एकड़) जमीन दान कर दी। आज इस जमीन की कीमत करीब 40 लाख रुपये है। स्कूल भवन बनाने के पैसे नहीं हैं लेकिन यहां रह रहे बच्चों के चेहरे पर खुशी देख वे अपना दुख-दर्द भूल जाते हैं। उनके इस जुनून को देख पिछले दो साल से स्कूल चलाने में समाज के कई लोगों का महत्वपूर्ण योगदान मिलने लगा है।स्कूल के संस्थापक मंगलदेव महतो कहते हैं कि मैं खुद दिव्यांग हूं। इस कारण काफी कुछ झेला है। पांच साल से उनके स्कूल में अनाथ व दिव्यांग बच्चों को निशुल्क आवासीय शिक्षा दी जा रही है। यह सब बिना किसी सरकारी मदद के किया जा रहा है। स्कूल के प्रधान शिक्षक संजीव कुमार महतो के अनुसार बच्चों और उनके परिवार की दयनीय हालत देख ऐसा लगता है कि इस समाज की बेहतरी के लिए कुछ करना है।

नामांकन प्रक्रिया
अभिभावक बच्चों के नामांकन के लिए जब स्कूल आते हैं, तो नाम पता लेकर इन्हें वापस भेज दिया जाता है। इसके बाद मंगलदेव महतो खुद संबंधित पते पर छानबीन करते जाते हैं। इसमें बच्चों के माता-पिता की आर्थिक-मानसिक स्थिति की वास्तविक तस्वीर सामने आ जाती है। नामांकन होते ही बच्चों के रहने, ड्रेस, भोजन, पाठय सामग्री आदि की निशुल्क व्यवस्था की जाती है। स्कूल में पढ़ाने के बाद शाम में बच्चों को ट्यूशन भी दिया जाता है।

हमारा मकसद दिव्यांग बच्चों को ऐसी शिक्षा देना है जिससे वे सामान्य बच्चों से मुकाबला कर सकें। हम अंग्रेजी और हिंदी दोनों माध्यमों से नर्सरी से मैट्रिक तक की शिक्षा दे रहे हैं। वर्तमान में स्कूल में 50 बच्चे पढ़ रहे हैं। इसमें आठ आदिम जनजाति बिरहोर, 27 आदिवासी, 5 अनुसूचित जाति व 18 बच्चे ओबीसी हैं। पढ़ाने के लिए आठ शिक्षक हैं, जो आसपास के बेरोजगार हैं। ये भी मानवीय आधार पर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इन्हें नाममात्र का भत्ता दिया जाता है, फिर भी ये खुश हैं।- मंगलदेव महतो, संस्थापक, महर्षि बाल्मीकि विकलांग सह अनाथ स्कूल

यह भी पढ़ें : पर्यावरण प्रेमी ने नौकरी छोड़ अपनाया ये रास्ता


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.