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यात्री बूढ़े हुए पर यह ट्रेन अब भी जवां... 86 वर्ष हुए पूरे

1930 में ब्रिटिश ग्रेट पेनिनसुला द्वारा लांच ट्रेन ‘डेक्‍कन क्रोनिकल’ 1 जून को सर्विस के 86 वर्ष पूरे कर रही है। इस दिन इसकी उम्र के बराबर वजन वाले केक काटने की योजना है।

By Monika minalEdited By: Published: Mon, 30 May 2016 10:10 AM (IST)Updated: Mon, 30 May 2016 10:13 AM (IST)
यात्री बूढ़े हुए पर यह ट्रेन अब भी जवां... 86 वर्ष हुए पूरे

मुंबई। कुछ लोगों के लिए क्वीन में सफर करना प्रतिदिन की दिनचर्या होगी। काफी कम ऐसा होता है कि मुंबई पुणे एक्सप्रेस देर होती हो इसलिए हर शाम 5 बजकर दस मिनट पर ट्रेन की सीटी सुनाई देते ही छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर लोग ट्रेन में पहले चढ़ अपनी सीट लेने के लिए आपाधापी करने लग जाते हैं।

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प्रतिदिन शाम के बिल्कुल 5.10 बजे दरवाजे बंद होते हैं और साढ़े तीन घंटे की यात्रा शुरू हो जाती है। 17 कोच वाली यह ट्रेन प्रतिदिन 700 से अधिक यात्रियों को शाही यात्रा की यादें देती है और लोगों की मनपसंद ट्रेन ‘डेक्कन क्वीन’ 1 जून को 86 साल की हो जाएगी।

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इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव्स पर चलने वाली यह ट्रेन भारतीय रेलवे की सबसे लंबी ट्रेन है। 1930 में ब्रिटिश ग्रेट पेनिन्सुला के द्वारा महाराष्ट्र के दो शहरों के बीच शुरू की गयी यह ट्रेन आरंभ में केवल सप्ताहांत पर चलती थी। बाद में मांग बढ़ने पर इसे प्रतिदिन कर दिया गया। सर्विस के 86 वर्ष पूरे होने के दौरान एक बार भी इसके बारे में किसी तरह की शिकायत नहीं आयी। लोग इसके समय की पाबंदी व स्पीड की प्रशंसा करते हैं।

इस ट्रेन ने अनगिनत चेहरे देखे हैं, ढेरों कहानियां सुनी और हर यात्री को बिना शिकायत अपने गंतव्य तक पहुंचाया है। क्वीन के वफादार सहायकों में से एक हेड कैटरर, एस. जगन्नाथ हैं , जिन्होंने 40 साल तक प्यार के साथ यात्रियों को खाना खिलाया है।

उन पलों को याद करते हुए जगन्नाथ कहते हैं, ’40 साल से अधिक मैं इसके साथ रहा। पहले मैं ट्रेन से सामान उतारने का काम करता था और बाद में कैटरिंग में शिफ्ट हो गया। यह ट्रेन मेरे लिए स्पेशल है क्योंकि मेरी ढेर सारी यादें इससे जुड़ी है।‘

इस ट्रेन की पेंट्री काफी भव्य है। अपने यात्रियों के लिए डाइनिंग कार की सुविधा देने वाली डेक्कन क्वीन एकमात्र ट्रेन है। 'पैंट्री कार' के तौर पर नामित ट्रेन का यह डिपार्टमेंट, ऐसे अनेकों यात्रियों से मिल चुका है जो अपनी सीट की अपेक्षा डाइनिंग हब में खाना पसंद करते हैं। अंग्रेजों के नाश्ते से प्रेरित होकर, किफायती कीमत पर यात्रियों को ऑमलेट और टोस्ट ब्रेड की तरह सरल व्यंजन दिए जाते हैं ।

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क्वीन के लिए पांच साल से कैटरिंग इंस्पेक्टर की तरह काम करने वाले अरुमुगिम कहते हैं, ‘मैंने ऐसे यात्रियों को देखा है जो इस ट्रेन के अच्छे भोजन के लिए छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से कजरत तक आते हैं। हम यात्रियों को सुबह में ब्रेकफास्ट देते हैं और ऑफिस जाने वालों को शाम में स्नैक्स् देते हैं। इस ट्रेन की तीन घंटे की यात्रा के दौरान यात्रियों को ‘फूड फन’ के साथ यात्रा कराना हमारा लक्ष्य होता है।‘

पहले ब्रिटिश के लोगों के लिए रिजर्व रहने वाली ट्रेन अब मुंबई-पुणे के बीच यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए हो गया है। इस ट्रेन की भीड़-भाड़ को देखते हुए यात्रियों को एक-दो दिन पहले ही टिकट बुक कराना होता है।

पिछले 25 सालों से डेक्कन क्वीन की यात्रा कर रहे शरद गोडसे ने कहा, ‘प्रतिदिन यह ट्रेन पूरी तरह भरी होती है। वे और उनके यूनियन मेंबर्स हर महीने मुबई में एक मीटिंग के लिए इसी ट्रेन से जाते हैं। अन्य गाड़ियों की तुलना में हम इस ट्रेन को ही प्राथमिकता देते हैं क्योंकि यह काफी आरामदेह और समय की पाबंद है।‘

कार्ड्स खेलना, गाने गाना और खिड़की से प्रकृति को निहारना यात्रियों का मनपसंद शगल बन गया है। केवल यही नहीं प्रतिदिन यात्रा करने वाले यात्रियों की आपस में तो दोस्ती है ही साथ ही वे इससे इस तरह जुड़ गए हैं कि विशेष त्योहारों के अवसर पर अपने बोगियों को फूलों से सजाते हैं।

ट्रेन के एक कर्मचारी ने कहा ‘हम 1 जून को इसका 86वां जन्मदिन मनाएंगे और इस अवसर पर 86 किलो का केक काटेंगे। इस दिन ट्रेन को खूब सजाया जाएगा ताकि यह अपने नाम के अनुरूप ‘क्वीन’ की भांति दिखे। वो क्या है ना, हम बूढ़े हो गए पर ट्रेन तो अब भी जवान है।‘


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