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उपभोक्‍ता आयोग ने कहा- दुर्घटना है मच्छर के काटने से हुई मौत

राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने कहा है कि मच्छर काटने से मलेरिया के शिकार व्यक्ति की मौत एक दुर्घटना है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Mon, 02 Jan 2017 08:55 AM (IST)Updated: Mon, 02 Jan 2017 09:51 AM (IST)

नई दिल्ली (पीटीआई)। मच्छर के काटने से मलेरिया के चलते होने वाली मौत पर भी बीमा राशि मिलने का रास्ता खुल गया है। इस बारे में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने एक अहम फैसला सुनाया है। उसने मच्छर के काटने से हुई मौत को एक दुर्घटना करार दिया है। इस फैसले से जीवन बीमा कराने वाले लोगों के परिजनों को बड़ी राहत मिलेगी।

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आयोग के सदस्य जस्टिस वीके जैन ने उपरोक्त फैसला सुनाया। उन्होंने कहा, ‘हमें इस दलील को स्वीकार करने में कठिनाई हो रही है कि मछर के काटने से हुई मौत को हादसे के चलते होने वाली मौत नहीं माना जाए।’ बकौल जस्टिस जैन, ‘मछर का काटना कुछ वैसा ही है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं रहती है, यह अचानक हो जाती है। इस कारण इससे हुई मौत एक हादसा है।’ आयोग ने यह फैसला पश्चिम बंगाल की मौसमी भट्टाचार्य द्वारा दाखिल दावा याचिका पर सुनाया।

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मौसमी ने जनवरी, 2012 में अपने पति देबाशीष की मौत मामले में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ दावा दाखिल कर रखा था। फैसले में जस्टिस जैन ने कहा, ‘इंश्योरेंस कंपनी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर सांप और कुत्ते के काटने और ठंड लगने से हुई मौत को दुर्घटना माना गया है। लिहाजा इस दलील को माना नहीं जा सकता कि मछर के काटने से मलेरिया का होना एक रोग है, दुर्घटना नहीं।’

क्या है मामला

याचिकाकर्ता मौसमी के पति देबाशीष ने बैंक ऑफ बड़ौदा से आवास ऋण लिया था। उन्होंने इसका बीमा नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से कराया था। मौत होने की स्थिति में बीमा राशि प्रदान किए जाने की बात थी। जनवरी 2012 में देबाशीष की मौत हो जाने पर जब मौसमी ने बीमा कंपनी का दरवाजा खटखटा कर आवास ऋण की राशि खत्म कराने की गुजारिश की तो उसकी अर्जी ठुकरा दी गई। इसके खिलाफ 2014 में वह जिला उपभोक्ता अदालत गई।

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यहां बीमा कंपनी की ओर कहा गया कि देबाशीष की मौत किसी दुर्घटना नहीं बल्कि मछर काटने से हुई है। लेकिन अदालत ने मौसमी के पक्ष में निर्णय सुनाया। बीमा कंपनी फिर पश्चिम बंगाल उपभोक्ता आयोग पहुंची, लेकिन यहां भी उसकी अपील खारिज कर दी गई। अंत में यह मामला राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग पहुंचा।


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