कानपुर खतरनाक बीमारियों के मुहाने पर
'इकोलाई' 'क्लैबसिला' 'प्रोट्यूअस' 'सियूडोमोनास' 'एसीनेटोवेक्टर' 'कोलेरा' 'कैंडिड (फफूंद)' 'स्टेफिलोकाकस' 'सिट्रोबैक्टर' 'लेप्टोस्पायरा'। ये नाम हैं उन खतरनाक बैक्टीरिया के, जिन पर चिकित्सा विज्ञान भी काबू नहीं पा सका। इनका नाम सुनते ही चिकित्सकों के भी हाथ-पांव फूल जाते हैं। इनका संक
कानपुर, जागरण संवाददाता। 'इकोलाई' 'क्लैबसिला' 'प्रोट्यूअस' 'सियूडोमोनास' 'एसीनेटोवेक्टर' 'कोलेरा' 'कैंडिड (फफूंद)' 'स्टेफिलोकाकस' 'सिट्रोबैक्टर' 'लेप्टोस्पायरा'। ये नाम हैं उन खतरनाक बैक्टीरिया के, जिन पर चिकित्सा विज्ञान भी काबू नहीं पा सका। इनका नाम सुनते ही चिकित्सकों के भी हाथ-पांव फूल जाते हैं। इनका संक्रमण शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है और वे धीरे-धीरे अंग काम करना बंद कर देते हैं। मरीज 'मल्टी ऑर्गन फेल्योर' में चला जाता है और उसकी मौत निश्चित। इनमें से एक लेप्टोस्पायरा नामक बैक्टीरिया का कहर तमिलनाडु में सुनामी के बाद देखा गया है जब लेप्टोस्पायरोसिस नामक बीमारी से सैकड़ों मौतें हुई थीं।
सवाल उठता है जब महज एक बैक्टीरिया तूफान खड़ा कर सकता है तो बैक्टीरिया की ये फौज समाज के लिए कितनी घातक है। 'दैनिक जागरण' एक ऐसे सच से पर्दा उठा रहा है जिसे पढ़कर आपके भी पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। मौत का टिकट काटने वाले ये सभी बैक्टीरिया गंगा के पानी में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और इनकी संख्या मानक से कई गुना ज्यादा हो गई है। यह सनसनीखेज खुलासा बनारस की पंच गंगा फाउंडेशन की एक रिपोर्ट से हुआ है। 16 जुलाई को फाउंडेशन की टीम ने कानपुर के भैरोघाट, गंगा बैराज, रिवर साइड पावर हाउस और बुढि़या घाट जाजमऊ से गंगाजल के नमूने लिए थे। जब लैब में इसकी बैक्टीरियल जांच की गई तो हैरतअंगेज परिणाम सामने आये। सभी नमूनों में खतरनाक बैक्टीरिया टीवीसी (टोटल वायेविल बैक्टीरियल काउंट) 100 मिली में 5.40 लाख से 12.40 लाख तक मिले, जबकि डब्ल्यूएचओ का मानक है कि नहाने योग्य पानी में यह मात्रा प्रति 100 मिली में पांच सौ से 2500 तक होनी चाहिए।
सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का सचइस रिपोर्ट ने गंगा प्रदूषण को रोकने के लिए सरकारी कवायद के काले सच को भी उजागर किया है। अप स्ट्रीम गंगा बैराज पर टीवीसी प्रति 100 मिली में 5.40 लाख पाया गया जबकि बुढि़या घाट जाजमऊ में टीवीसी सबसे अधिक 12.40 लाख पाया गया। यहां टेनरियों का पानी सीधा गंगा में जा रहा है कि जबकि करोड़ों रुपया खर्च करके यहां ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया और पानी को ट्रीट करने में करोड़ों रुपये सालाना खर्च हो रहे हैं। चौंकाने वाला तथ्य तो यह भी है कि अब तक गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए करीब आठ अरब रुपये खर्च हो चुके हैं।
पंचगंगा फाउंडेशन की पहलफाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. हेमंत गुप्ता बताते हैं कि जब अस्पतालों में गंभीर संक्रमण के मरीज आने लगे और उन पर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर होने लगीं तब इस दिशा से संस्था ने काम शुरू किया। पहले बनारस के घाटों से पानी लेकर जांच की तो वहां भी खतरनाक बैक्टीरिया पाए गये। बनारस में टीवीसी प्रति 100 मिली में दो से आठ लाख के बीच मिले थे। केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने जब दिल्ली में गंगा मंथन किया था, तब बनारस की रिपोर्ट उन्हें दी गई थी। कानपुर की स्थिति विस्फोटक है। यह रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी।
ये बीमारियां हो रहींटाइफाइड, खूनी पेचिस, पेशाब का इंफेक्शन, स्किन इंफेक्शन, किडनी, लिवर इंफेक्शन और लेप्टोस्पायरोसिस।