साइप्रस के राष्ट्रपति ने कहा मानवता के लिए आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा
दोनों नेताओं ने उन देशों की कड़ी निंदा की है जो अपने क्षेत्रों में 'हिंसा की फैक्ट्री' बने हुए हैं और हिंसक वारदातों को बढ़ावा व प्रश्रय दे रहे हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली । दुनिया के दो धुर विरोधी देश तुर्की और साइप्रस के बीच तालमेल बनाना कई देशों के लिए कूटनीतिक चुनौती होती है और भारतीय कूटनीति भी इस चुनौती से दो-चार है। साइप्रस और तुर्की आतंकवाद से लेकर कश्मीर मुद्दे पर बिल्कुल अलहदा राय रखते हैं। शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने भारत की यात्रा पर आये साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस एनास्टासिएडस के साथ मुलाकात की और आतंकवाद के मुद्दे पर उन्होंने पूरी तरह से भारतीय हितों के मुताबिक बातें की है।
दोनों नेताओं ने उन देशों की कड़ी निंदा की है जो अपने क्षेत्रों में 'हिंसा की फैक्ट्री' बने हुए हैं और हिंसक वारदातों को बढ़ावा व प्रश्रय दे रहे हैं। लेकिन पीएम मोदी अगले सोमवार को जब तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यीप इर्डोगन से द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे तो शायद आतंकवाद पर इस तरह का समर्थन नहीं मिले। पाकिस्तान के बेहद करीबी देश तुर्की लगातार भारत के हितों के खिलाफ बातें करता है।
भारतीय पीएम और साइप्रस के राष्ट्रपति के बीच शुक्रवार को तमाम क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों पर बात हुई है। दोनों नेताओं की अगुवाई में चार समझौते पर हस्ताक्षर हुए। भारत ने साइप्रस की सार्वभौमिकता और अखंडता का भरपूर समर्थन किया है। मोदी ने आज राष्ट्रपति एनास्टासिएडस को इस बात का पूरा भरोसा दिलाया कि जब भी साइप्रस की अखंडता को लेकर कोई अंतरराष्ट्रीय बहस होगी तो उसमें भारत हमेशा साइप्रस के हितों के साथ रहेगा। साइप्रस ने भी संयुक्त राष्ट्र के विस्तार और भारत के उसके स्थाई सदस्य बनने के प्रस्ताव का स्वागत किया है।
मोदी ने संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में कहा भी कि, 'हमारे बीच इस बात की सहमति बनी है और हम आतंक की फैक्टि्रयों का समर्थन करने वाले और उन्हें प्रश्रय देने वाले सभी देशों से आग्रह करते हैं कि वे ऐसा करना बंद करे।' कहने की जरुरत नहीं कि मोदी का इशारा पाकिस्तान की तरफ था।
लेकिन मोदी को तुर्की के राष्ट्रपति इर्डोगन से सीमा पार आतंक के मुद्दे पर समर्थन हासिल करने के लिए काफी जबरदस्त कूटनीति दिखानी होगी। तुर्की दुनिया में पाकिस्तान का सबसे करीबी देशों में से है। कश्मीर के मुद्दे पर वह हमेशा से पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाता रहा है। इस्लामिक देशों के संगठन में पाकिस्तान तुर्की के साथ मिल कर ही भारत के खिलाफ प्रस्ताव पारित करवाते रहते हैं। यही नहीं परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह (एनएसजी) में शामिल होने के भारत का जिन देशों ने सबसे ज्यादा विरोध किया उसमें तुर्की भी है। ऐसा उसने पाकिस्तान की शह पर ही किया है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक हालात पहले से बदले हुए हैं। अपने तानाशाही रवैये की वजह से इर्डोगन अभी वैश्विक स्तर पर अलग थलग पड़ रहे हैं और ऐसे में उन्हें भारत जैसे देशों का समर्थन चाहिए। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी और इर्डोगन के बीच द्विपक्षीय वार्ता आपसी रिश्तों को किस तरफ ले जाती है।
क्यों धुर विरोधी है साइप्रस व तुर्की
पड़ोसी देश तुर्की व साइप्रस के बीच वैमनस्यता और रंजिश का हजारों साल पुराना रिश्ता है। आधुनिक काल में वर्ष 1920 में इनके बीच भयानक युद्ध हुआ था। दोनों देशों के मूल निवासियों के बीच झगड़े की आड़ में वर्ष 1974 में तुर्की ने साइप्रस के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया था। बल्कि साइप्रस के उत्तरी हिस्से को एक अलग देश का दर्जा भी दे दिया। इससे इस हिस्से के ढ़ाई लाख ग्रीक मूल के निवासियों को साइप्रस में शरण लेना पड़ा। यह मुद्दा आज भी अनसुलझा है और दोनों देशों के बीच मतभेद बना हुआ है।