न्याय की धीमी रफ्तार पर सुप्रीमकोर्ट चिंतित
सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को न्याय की धीमी गति पर चिंता जताते हुए कहा कि लोकतंत्र-सुशासन के लिए यह अच्छा नहीं है। सरकार को न्यायिक तंत्र मजबूत करना चाहिए ताकि न्याय को गति मिले। कोर्ट ने केंद्र से त्वरित न्याय के लिए राज्यों संग मिलकर चार हफ्ते में समग्र नीति बनाने को कहा है। न्याय की धीमी गति पर मुख्य न्या
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को न्याय की धीमी गति पर चिंता जताते हुए कहा कि लोकतंत्र-सुशासन के लिए यह अच्छा नहीं है। सरकार को न्यायिक तंत्र मजबूत करना चाहिए ताकि न्याय को गति मिले। कोर्ट ने केंद्र से त्वरित न्याय के लिए राज्यों संग मिलकर चार हफ्ते में समग्र नीति बनाने को कहा है। न्याय की धीमी गति पर मुख्य न्यायाधीश की ये टिप्पणियां, मोदी सरकार की उस घोषणा के मद्देनजर अहम हैं जिसमें सरकार ने न्यायापालिका से सांसदों-विधायकों के लंबित मुकदमे एक वर्ष में निपटाने की अपील की है।
मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वर्षो से जेल में बंद पाकिस्तानी कैदियों रिहाई की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई के दौरान ये बात कही। लोढ़ा ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि मुकदमों की सुनवाई की धीमी रफ्तार की समस्या लगातार चली आ रही है। समय आ गया है कि त्वरित अदालत बने। न्याय को गति प्रदान की जाए और मुकदमों का ट्रायल एक वर्ष में पूरा हो, लेकिन मौजूदा तंत्र में ये संभव नहीं है। क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम उस गति से नहीं चल रहा जैसा कि वे चाहते हैं। लेकिन वे अदालतें नहीं गठित कर सकते क्योंकि उनकी अपनी सीमाएं हैं। उन्होंने अटॉर्नी जनरल से कहा, वे ही इस बारे में कुछ करें।
अदालत में सरकार के लिए बहस करने के अलावा भी न्यायिक प्रशासन में अटार्नी जनरल की अहम भूमिका है। कोर्ट ने रोहतगी से कहा, वे सरकार से कहें कि सरकार तत्काल राज्यों के मुख्य और विधि सचिवों की बैठक बुलाए और त्वरित न्याय प्रदान करने के वैधानिक तौर तरीके की नीति तैयार करे। जिससे कि न्यायिक तंत्र मजबूत हो और जल्दी ट्रायल पूरा हो। राज्य सरकारें पैसे की कमी के कारण इस ओर ध्यान नहीं देतीं अगर केंद्र सरकार वित्तीय मदद देगी तो चीजें सुधरेंगी।
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