आज देश परंपरागत ढंग से मना रहा गोवर्धन पर्व, श्रीकृष्ण ने शुरू कराई थी पूजा
भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी।
नई दिल्ली प्रेट्र। दिवाली के अगले दिन मनाए जाने वाले गोवर्धन त्योहार को अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है। इस दिन मंदिरों में कई तरह के खाने-पीने के प्रसाद बनाकर भगवान को 56 भोग लगाए जाते हैं। इस दिन खरीफ फसलों से प्राप्त अनाज के पकवान और सब्जियां बनाकर भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी। ऐसा करके श्रीकृष्ण ने इंद्र के अहंकार को भी चूर-चूर किया था। गोवर्धन पूजा का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल में माना गया है।
यह उत्सव कार्तिक माह की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोबर्धन बनाते हैं। इसका खास महत्व होता है। गोबर्धन तैयार करने के बाद उसे फूलों से सजाया जाता है। शाम के समय इसकी पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, दूध नैवेद्य, जल, फल, खील, बताशे आदि का इस्तेमाल किया जाता है। कहा जाता है कि गोवर्धन पर्व के दिन मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन लोग घरों में प्रतीकात्मक तौर पर गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं और उसकी परिक्रमा करते हैं।
इस दिन व्यापारी लोग अपनी दुकानों, औजारों और बहीखातों की भी पूजा करते हैं। जिन लोगों का लौहे का काम होता है वो विशेषकर इस दिन पूजा करते हैं और इस दिन कोई काम नहीं करते हैं। काफी फैक्ट्रियां बंद होती हैं। मशीनों की पूजा होती है। अन्न की पूजा के साथ इस दिन कई जगह लंगर लगाए जाते हैं। लंगर में पूड़ी, बाजरा, मिक्स सब्जी, आलू की सब्जी, चूर्मा, खीर, कड़ी आदि प्रमुख होते हैं। गोवर्धन पूजा शुक्रवार को परंपरागत ढंग से की जाएगी।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती थी। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोवर्धन पूजा आरंभ कराई थी।
मान्यता है, कि अच्छी फसल के लिए इंद्रदेव की पूजा लोग करते थे। इस दिन उत्सव भी आयोजित किया जाता था। जब भगवान कृष्ण को पता चला कि देवताओं का राजा होने से इंद्र अहंकारी होते जा रहे हैं, तब उन्होंने वृंदावन के निवासियों को समझाया कि गोवर्धन की उपजाऊ मिट्टी के कारण यहां घास उगती है और इस हरी घास को गाया व बैल चरते हैं।
गाय हमें दूध देती है, जबकि बैल खेतों की जुताई में मदद करते हैं। जिससे फसल पैदा होती है। इसलिए इन्द्र देवता की नहीं गोवर्धन पर्वत को पूजना चाहिए। यह जानकर इन्द्र क्रोधित हो उठे और मूसलाधार बारिश कराने लगे।
बारिश सब तहस-नहस करने लगी। इन्द्र के प्रकोप से वृंदावन वासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली पर उठा लिया जिसके नीचे सभी ने शरण ली।
यह बरसात लगातार सात दिनों तक चलती रही। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की महिमा के आगे इन्द्र देव हार गए और माफी मांगने के लिए स्वर्ग से नीचे उतरे और तब उन्हें अहसास हुआ कि वे इस जगत के राजा नहीं बल्कि त्रिदेवों के सेवक हैं।
इस त्यौहार को मनाने के लिए पहले गोधन कूटकर गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है। महिलाएं थाली में रुई की माला, चना, घरिया, मिठाई, लाई धतूरा आदि पूजा संबंधी सामग्री लेकर यहां गोधन गीत गाती हैं, फिर पूजा की परंपरा का निर्वहन करती हैं। गोधन पर चढ़ाई जाने वाली मिठाई केवल लड़के ही खा सकते हैं, ऐसी मान्यता है।