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सोशल मीडिया से आतंक पर नकेल

भारत में आइएस का ट्विटर अकाउंट चलाने वाले मेहदी मसरूर बिस्वास की गिरफ्तारी के बाद सरकार सोशल मीडिया के सहारे हो रहे आतंकी प्रचार पर नकेल कसने में जुट गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपकर इस संबंध में

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 05:36 AM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 05:57 AM (IST)
सोशल मीडिया से आतंक पर नकेल

नई दिल्ली, [प्रणय उपाध्याय]। भारत में आइएस का ट्विटर अकाउंट चलाने वाले मेहदी मसरूर बिस्वास की गिरफ्तारी के बाद सरकार सोशल मीडिया के सहारे हो रहे आतंकी प्रचार पर नकेल कसने में जुट गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपकर इस संबंध में कई उपाय सुझाए हैं। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक डोभाल ने प्रधानमंत्री को सौंपी रिपोर्ट में राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) समेत सूचना प्रौद्योगिकी तंत्र की कमजोर कडिय़ों का मामला भी उठाया है। महत्वपूर्ण है कि बेंगलुरु से पकड़े गए मेहदी के मामले को एनटीआरओ की चूक के तौर पर भी देखा जा रहा है।

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सूत्रों के अनुसार, स्मार्टफोन व इंटरनेट के जरिए मुसीबत बन रही इस बीमारी पर नियंत्रण के लिए एक विशेष कार्यबल बनाया जा रहा है। इसके तहत खुफिया ब्यूरो और एनटीआरओ के तकनीकी जानकारों की एक विशेष टीम मुल्क के बाहर से चल रही सोशल नेटवर्किंग साइट, माइक्रो ब्लॉगिंग साइट व मल्टी प्लेटफार्म कंटेट शेयरिंग की निगरानी करेगी। रिपोर्ट में प्रॉक्सी इंटरनेट सर्वर और वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआइपी) जैसी तकनीकों पर निगरानी का मुद्दा भी शामिल है। वीओआइपी को पकडऩा और इसकी व्याख्या करना मुश्किल काम है। ऐसे में आतंकियों की जगह का पता लगाने में खासी दिक्कत होती है।

क्यों पड़ी जरूरत

मेहदी की गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया में उसके समर्थन और बचाव में उठे सुरों को सरकार ने गंभीरता से लिया है। सोशल मीडिया के सहारे लोगों तक पहुंच रही आतंकी प्रचार सामग्री सरकार की फिक्र बढ़ा रही है। इसलिए वह इस पर लगाम लगाना चाहती है।

26/11 में वीओआइपी

26/11 को मुंबई में हुए आतंकी हमले के दौरान भी आतंकियों ने वीओआइपी तकनीक का इस्तेमाल किया था। अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआइ के सुबूतों के बाद ही पाकिस्तान ने इस हमले की साजिश अपने यहां रचने की बात स्वीकार की थी।

साइबर निगरानी की दिक्कतें

* वॉइस इंटरनेट प्रोटोकॉल सेवा प्रदाताओं के सर्वरों का विदेश में होना।

* विदेशी मूल की सोशल साइट से उपयोगकर्ता के स्थान का पता लगाना।

* इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के पास मौजूद सूचना साझा करने के लिए मान्य अंतरराष्ट्रीय ढांचे की कमी।

* विवाद की स्थिति में न्यायिक क्षेत्राधिकार का मसला स्पष्ट नहीं।

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