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कांग्रेसी शोर में दबी जन-प्रतिनिधियों की आवाज

लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्यों की नारेबाजी और हंगामे की वजह से न तो विधायी कामकाज हुआ और न ही जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की समस्याएं उठा सके।

By Test1 Test1Edited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 09:58 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 10:15 PM (IST)
कांग्रेसी शोर में दबी जन-प्रतिनिधियों की आवाज

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा और राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्यों की नारेबाजी और हंगामे की वजह से न तो विधायी कामकाज हुआ और न ही जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की समस्याएं उठा सके। बहुत से सांसद अपने क्षेत्र की समस्याएं उठाना चाहते थे, राज्य और देश से जुड़े राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार से सवाल पूछना चाहते थे, लेकिन कांग्रेसी सदस्यों के विरोध और व्यवधान के चलते उन्हें मौका नहीं मिला। अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी वस्तु एवं सेवा (जीएसटी) जैसे विधेयकों पर भी विपक्ष की राजनीति हावी रही।

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मानसून सत्र में अब तक संसद के दोनों सदनों की 9 बैठकें हो चुकी हैं। इस दौरान लोकसभा जहां अपने निर्धारित समय में से मात्र 14 प्रतिशत और राज्यसभा सिर्फ 8 प्रतिशत ही चल सकी है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने हंगामे के बीच सदन चलाने की कोशिश भी की जो नाकाम रही। लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस के सदस्य बड़ी-बड़ी तख्तियां लेकर उन सदस्यों का चेहरा कैमरे की पहुंच से छुपाते नजर आए जो सवाल पूछने की कोशिश कर रहे थे। कुछ ऐसा ही उन्होंने उन मंत्रियों के साथ भी किया जो सवालों का जवाब दे रहे थे। प्रश्नकाल कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि बजट सत्र के दौरान मंत्रियों ने 139 प्रश्नों के मौखिक उत्तर दिए। इस सत्र में सदस्यों ने 7118 लिखित सवाल इस सत्र में पूछे थे।

सदस्यों के पास अपनी बात रखने का दूसरा महत्वपूर्ण मौका शून्यकाल होता है जिसमें वे अपने क्षेत्र की समस्याएं उठा सकते हैं। लेकिन मानसून सत्र में सदन न चलने के कारण सदस्यों को यह मौका नहीं मिला। बजट सत्र में सदस्यों ने 1036 मामले शून्यकाल के दौरान उठाए थे।

इस बीच जेटली ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी राजनीतिक वजहों के चलते टैक्स सुधार की राह में बाधा खड़ी कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार एक अप्रैल 2016 से जीएसटी लागू करना चाहती है। जीएसटी विधेयक आगे चलकर पारित हो भी जाएगा लेकिन इससे कुछ व्यवधान डालने वालों की वजह से देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। जेटली ने कहा कि अगर कोई पार्टी सिर्फ इस पहले जिस विधेयक को पेश कर चुकी है और अब उसी का विरोध कर रही है तो यह विरोध तथ्यों के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक आधार पर किया जा रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि मामूली अल्पमत की संसद को बंधक बनाना और कार्यवाही में बाधा डालना शोभा नहीं देता। कांग्रेस पार्टी ने देश पर बहुत लंबे समय तक राज किया और हम उससे एक हद तक राजनीतिक परिपक्वता की उम्मीद करते हैं।

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