कांग्रेस को भारी पड़ेगा पालिटिकल पाखंड और जिद : मुख्तार अब्बास नकवी
केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने नोटबंदी पर 'दैनिक जागरण' के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से बात की।
नई दिल्ली, जेएनएन। शीतकालीन सत्र का लगभग आधा हिस्सा शोर शराबे की भेंट चढ़ चुका है। विपक्षी एकजुटता चरम पर और पिछले सत्र में बड़ी मुश्किल से हासिल हुआ संवाद का धागा भी फिलहाल टूटा हुआ है। इसे जोड़ने की पुरजोर कोशिश हो भी रही हो तो वह दिख नहीं रही है। यह सवाल उठने लगा है कि क्या राजनीतिक रूप से यह स्थिति हर किसी को रास आ रही है? केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने इस बाबत 'दैनिक जागरण' के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से बात की। पेश है एक अंश:
नोटबंदी के असर से संसद पीडि़त है। लगातार बाधित है। यह सरकार की विफलता है या विपक्ष की आक्रामकता?
आप इसे गलत तरीके से देख रहे हैं। यह न तो सरकार की विफलता है और नही विपक्ष की आक्रामकता। यह विपक्ष का जिद्दीपन और स्वार्थ है। स्वार्थ इसलिए क्योंकि वह नोटबंदी जैसे बड़े मुद्दे को अपने राजनीतिक चश्मे से देख रही है। कांग्रेस को पता है कि जनता सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले के साथ खड़ी है। यही कारण है कि कांग्रेस का कोई बड़ा नेता इस फैसले पर उंगली उठाने से बच रहा है। पर विरोध का दूसरा बहाना ढूंढ लिया है। राजनीति हावी है। आम जनता के मूड के खिलाफ यह जिद उन्हें भारी पड़ने वाली है।
- लेकिन पहले दिन तो राज्यसभा सुचारू थी। विपक्ष ने संयत व्यवहार किया, चर्चा में भाग लिया। दूसरे दिन से बाधित हो गई तो क्या संसदीय प्रबंधन की विफलता नहीं मानेंगे?
- बिल्कुल नहीं। यह हमारी सरलता है। बल्कि यह सवाल तो आपको विपक्ष से पूछना चाहिए कि अगर पहले दिन सबकुछ ठीक था तो दूसरे दिन से क्या खास हो गया। कांग्रेस ने पालिटिकल पाखंड रच लिया और उसमें दूसरे छोटे राजनीतिक दलों को भी जोड़ लिया। उसके बाद से रोज उनकी मांग भी बदलती जा रही है। अनौपचारिक रूप से हम रोजाना उनसे चर्चा में हैं। हमने यह भी आश्वासन दिया है कि प्रधानमंत्री चर्चा में हस्तक्षेप करेंगे। लेकिन उन्हें सिर्फ राजनीति करनी है। हम संवाद कर सकते हैं और कर रहे हैं। लेकिन जमीनी हकीकत तो विपक्ष को भी समझनी होगी।
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नई मांग यह है कि सदन के बाहर विपक्ष पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने के लिए प्रधानमंत्री माफी मांगें.?
- माफी किस चीज के लिए मांगे- क्या इसलिए कि कालेधन के कुबेर कंगाल हो गए। या इसलिए कि बेईमानों का बंटाधार हो रहा है और लूट लाबी पर तालाबंदी हो गई है? प्रधानमंत्री ने कुछ गलत तो नहीं कहा कि जिसे काला धन खपाने के लिए तैयारी का मौका नहीं मिला वह परेशान हैं।
विपक्ष का तो कहना है कि गरीबी और भ्रष्टाचार के खिलाफ वह है लेकिन जनता को परेशानी हो रही है.?
- मुझे तो कांग्रेस की इस दलील पर हंसी आती है। नरेंद्र मोदी सरकार ने यह ऐतिहासिक फैसला क्या सिर्फ इसलिए उठाया है क्योंकि हम पूर्ण बहुमत में है.? यह इसलिए हुआ है क्योंकि मोदी सरकार की मंशा है भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई। वरना बहुमत की सरकार तो कांग्रेस की कई बार रही है। गरीबी हटाओ, भ्रष्टाचार मिटाओ का नारा देकर कांग्रेस 11 बार सत्ता में आई। मैं आंकड़े बताऊं तो 1980 में 351 सीट और 1984 में 404 के प्रचंड बहुमत के बावजूद कभी कांग्रेस नेताओं में इच्छाशक्ति नहीं दिखी। कारण स्पष्ट था। मोदी सरकार ने कालेधन के कुबेरों के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है तो कांग्रेस में कोलाहल है। वह बताएं ऐसा क्यों है? आम जनता का नाम लिया जा रहा है लेकिन बेचैनी कुछ और बयां करती हैं।
- हजार रुपये का नोट एक्ट में संशोधन के बाद लाया गया था। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि उसे बंद करने के लिए क्या संसद में संशोधन कानून लाया जाएगा?
- नोट बंद करने का जो प्रावधान है उसे अपनाया गया है। आरबीआइ के नोटिफिकेशन से ऐसा हुआ है। हम तो कानून के हिसाब से ही चलते हैं। संविधान हमारे के लिए धर्मग्रंथ है। अगर आगे कोई कानूनी बाध्यता होगी तो उसे भी पूरा किया जाएगा।
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- कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार को भी फिलहाल यह स्थिति रास आ रही है? प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के बाद स्थिति दुरुस्त करने के लिए 50 दिन का वक्त मांगा है?
- बिल्कुल नहीं। सरकार सदन चलाने के लिए गंभीर है। हमारे पास कई जरूरी विधायी कार्य हैं जो देश के लिए आवश्यक है। यह विपक्ष को समझना होगा कि उनकी जिद देशहित के आड़े नहीं आनी चाहिए। जीेसटी हमारे एजेंडा में है और आशा है कि वह पारित होगा। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि उनके कारण अब तक अकेले राज्यसभा में 35 घंटे बर्बाद हो चुका है। राज्यसभा में एक घंटे की कार्यवाही के लिए 1.5 करोड़ रुपये का खर्च आता है और राज्यसभा में 1.1 करोड़। विपक्ष जनता को इसका जवाब देगी।