कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर रार
चुनावी समर में भाजपा के हाथों लगातर पराजय के बाद कांग्रस में उपाध्यक्ष राहुल को लेकर एक बार फिर रार ठन गई है। अपनी नेतृत्व क्षमता को लेकर सवालों में रहे राहुल पर इस बार पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने सवाल उठाए हैं।
नई दिल्ली। चुनावी समर में भाजपा के हाथों लगातर पराजय के बाद कांग्रस में उपाध्यक्ष राहुल को लेकर एक बार फिर रार ठन गई है। अपनी नेतृत्व क्षमता को लेकर सवालों में रहे राहुल पर इस बार पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने सवाल उठाए हैं। सहाय ने राहुल में 'लीडर' की बजाय समाज सुधारक के गुण होने की बात कहते हुए सोनिया गांधी से कमान अपने हाथों में लेने की बात कही है।
सहाय ने राहुल गांधी की रणनीति स्पष्ट न होने की बात करते हुए कहा कि उनकी भूमिका स्पष्ट नही है। उन्होंने वर्तमान राजनीतिक परिस्थति के मद्देनजर सोनिया गांधी को पार्टी का सबसे बड़ा नेता बताते हुए उनसे आगे आने का अनुरोध किया। सहाय ने राहुल के राजनीति में आने को लेकर तंज कसते हुए कहा कि वह अभी राजनीतिक धरातल पर आए ही नहीं हैं। वे तो 'ब्रांड पॉलिटिक्स' पर काम कर रहे हैं और 'सोशल ब्रिजिंग' के जरिए गरीबों से पार्टी के टूटे रिश्ते जोड़ने का काम कर रहे हैं। झारखण्ड के चुनावों से पहले उपेक्षित चल रहे सहाय का रुख पार्टी के लिए चिंता का सबब बन सकता है। हालांकि, कांग्रेस ने इसे समग्रता में देखने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया है।
इस बीच, कांग्रेस में परिवार की विरासत को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं। पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम के इस बयान पर कि पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर से भी हो सकता है, कांग्रेस में वफादारों की लामबंदी शुरू हो गई है। चिदंबरम के बयान को सिरे से खारिज करते हुए एक अन्य नेता जीके वासन ने कहा है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता गांधी परिवार के सदस्य को ही पार्टी प्रमुख के रूप में देखना चाहता है।
वासन गांधी परिवार के पुराने वफादार माने जाते हैं। वे तमिलनाडु की राजनीति का जाना-पहचाना चेहरा हैं। वासन के बयान को कमजोर हो रहे पार्टी नेतृत्व के समर्थन के रूप में देखा जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि पार्टी में अन्य राज्यों से भी इस तरह के समर्थन के सुर सामने आएंगे। वासन ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ता गांधी परिवार से इतर किसी को पार्टी प्रमुख बनाने के पक्ष में नहीं हैं।
गौरतलब है कि कांग्रेस में इस समय आंतरिक सत्ता संघर्ष चल रहा है। जहां पार्टी उपाध्यक्ष के करीबी लगातार असफल प्रयोगों के बावजूद सत्ता राहुल को हस्तांरित करने की वकालत कर रहे हैं। जबकि, पार्टी के वरिष्ठ नेता पार्टी की बुरी दशा का जिम्मेदार राहुल के सहयोगियों को मान कर उपाध्यक्ष के पारंपरिक राजनीति के रास्ते पर लौटने का इंतजार कर रहे हैं।
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