नाते-रिश्तों से आहत पूर्व प्रथम श्रेणी अधिकारी बना भिखारी
नई दिल्ली [सुधीर कुमार]। नौकरी में थे तो आन-बान थी और ठसक भी। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय में प्रथम श्रेणी अधिकारी थे सुशील कुमार। चाहते तो लाखों के वारे-न्यारे कर सकते थे, लेकिन ईमानदारी और इज्जत अधिक प्यारी थी। पूरी दुनिया उनकी जिस अच्छाई की मुरीद थी, परिवार वाले उसे अपने लिए मुसीबत मानते रहे। बीते 2
नई दिल्ली, [सुधीर कुमार]। नौकरी में थे तो आन-बान थी और ठसक भी। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय में प्रथम श्रेणी अधिकारी थे सुशील कुमार। चाहते तो लाखों के वारे-न्यारे कर सकते थे, लेकिन ईमानदारी और इज्जत अधिक प्यारी थी। पूरी दुनिया उनकी जिस अच्छाई की मुरीद थी, परिवार वाले उसे अपने लिए मुसीबत मानते रहे। बीते 28 सितंबर को रिटायर होकर घर पहुंचे, तो पैसों को लेकर किच-किच इतनी बढ़ी कि घर छोड़ देना ही बेहतर समझा। नाते-रिश्तों से मन इस कदर टूटा कि बेनाम जिंदगी अपना ली और बस स्टॉप को ठिकाना बना लिया। कहते हैं कि यह उनका प्रायश्चित है। शायद उनकी परवरिश का ही खोट है कि उन्हें यह दिन देखना पड़ रहा है।
आठ माह से सर्दी, गर्मी व बरसात झेलते हुए सुशील कुमार सरोजनी नगर बस स्टॉप पर रह रहे हैं। लंबे समय तक लोग उन्हें भिखारी समझते रहे। कोई कुछ दे देता तो खा लेते नहीं तो भूख लगने पर रेहड़ी-खोमचे या होटल वालों से कुछ मांग लेते। अगर वह भी नहीं मिला तो भूखे सो जाते। दाढ़ी इतनी बढ़ गई कि कोई पहचान न सके। करीब एक सप्ताह पहले सरोजनी नगर मिनी मार्केट के प्रधान अशोक रंधावा को उनकी जानकारी मिली तो पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। सुशील कुमार से मिलने पहुंचे और बात की तो व्यथा का सागर उमड़ पड़ा। रंधावा ने आसपास के लोगों को इकट्ठा किया और उनके सरोजनी नगर स्थित निवास पर पहुंचे। लेकिन उनकी पत्नी व बच्चे इतने निर्दयी निकले कि उन्होंने बात करना तो दूर, घर का दरवाजा तक नहीं खोला।
सुशील कुमार का कहना है कि घर छोड़ने का फैसला उनका अपना है। कहते हैं कि उनके परिवार में 30 वर्षीय बेटा, 32 वर्षीय बेटी और पत्नी हैं। उन्होंने पूरी नौकरी ईमानदारी से की। नौकरी के अंतिम दिनों में पैसों को लेकर परिवार में रोजाना झगड़ा होने लगा। बीवी बच्चे कहते थे कि तुमने पूरी जिंदगी हमारे लिए क्या किया है। सेवानिवृत्त होकर जिस दिन घर पहुंचा उस दिन बहुत क्लेश हुआ और रात में मैंने घर छोड़ दिया। कुमार ने कहा कि महीनों इतनी दिक्कतें झेलने के बावजूद घर जाने की इच्छा नहीं हुई। न ही परिवार का कोई सदस्य देखने आया।
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