सीमा विवाद सुलझाने के लिए भारत को अपनी जमीन देने को तैयार है चीन?
चीन ने संकेत दिया है कि भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जमीन की अदला-बदली का फॉर्मूला अपनाया जा सकता है।
By Kishor JoshiEdited By: Published: Fri, 03 Mar 2017 10:46 AM (IST)Updated: Fri, 03 Mar 2017 03:43 PM (IST)
बीजिंग (जेएनएन)। चीन के एक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक दाई बिंगुओं ने कहा है कि भारत के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए चीन अपने कब्जे वाला एक बड़ा हिस्सा (अक्साई चीन) भारत को दे सकता है और बदले में चीन भारत से अरुणाचल प्रदेश में स्थित तवांग की मांग कर सकता है।
अंग्रेजी अखबार टीओआई के मुताबिक, यह सुझाव तब सामने आया है जब चीन के पूर्व राजनयिक और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता ने बींजिग की एक पत्रिका को इंटरव्यू दिया। दाई बिंगुओ 2013 में सेवानिवृत्त हुए थे और इससे पहले उन्होंने एक दशक से भी अधिक समय तक भारत के साथ चीन की विशेष प्रतिनिधि का वार्ता का नेतृत्व किया था। लेकिन भारत सरकार के लिए तवांग की अदला-बदली करना आसान नहीं होगा क्योंकि यहां स्थित तवांग मठ भारत के साथ-साथ तिब्बत के बौद्ध अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है। लेकिन दाई के बारे में कहा जाता है कि वह बिना चीनी सरकार की सहमति के कोई भी बयान नहीं देते हैं।
दाई अभी भी चीनी सरकार के करीबी है और रणनीतिक समुदाय में उनकी टिप्पणी को गंभीरता से लिया जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो चीन में सत्तासीन कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं की अनुमति के बिना ना कोई टिप्पणी करते हैं और ना ही कोई इंटरव्यू देते हैं। दाई ने साक्षात्कार के दौरान कहा कि सीमा को लेकर विवाद अभी तक जारी रहने का बड़ा कारण यह है कि चीन की वाजिब मांगों को अभी तक माना नहीं गया। उन्होंने आगे कहा कि अगर पूर्वी क्षेत्र में भारत चीन का ख्याल रखता है तो चीन भी उसी तरह से भारत की चिंताओं का खयाल रखेगा और किसी अन्य क्षेत्र (अक्साई चिन) में भारत के लिए सोचेगा।'
आपको बता दें कि दाई बिंगुओ ने कुछ इसी तरह की बातें पिछले साल आई अपनी एक किताब में भी कही थी। चीनी मामलों के जानकार श्रीकांत कोंडापल्ली बताते हैं कि 2005 से ही चीन की दिलचस्पी भारत के पूर्वी क्षेत्र के साथ ज्यादा गहरी हुई है। इसी साल दोनों देशों ने सीमा विवाद के हल के लिए नियम और राजनीतिक मानदंड तय किए गए थे। तवांग पर चीन की नज़र इसलिए है क्योंकि वह इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है और 15वीं शताब्दी के दलाई लामा का जन्म भी यहीं हुआ था। बता दें कि 1962 के युद्ध के बाद चीन ने इस क्षेत्र से पीछे हट गया था।
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