... दक्षिण चीन सागर नहीं बल्कि इस वजह से भारत से खफा है चीन
अक्सर ये माना जाता है कि दक्षिण चीन सागर पर भारत के रुख से चीन परेशान रहता है। लेकिन चीन की नाराजगी के पीछे एक बड़ी वजह 14वें दलाई लामा भी हैं।
नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क] । पंचशील सिद्घांत के तहत चीन और भारत में एक दूसरे की एकता-अखंडता का में किसी तरह का खलल न डालने पर सहमति बनी। लेकिन तिब्बत के मुद्दे पर चीन की नापाक चाल ने भारत समेत दुनिया के दूसरे मुल्कों को भी हैरान कर दिया। तिब्बत के बारे में चीन की तरफ से ये बयान आने लगा कि वो उसका अभिन्न हिस्सा है। तिब्बत के मूल लोगों ने जब चीनी नीति का विरोध करना शुरू किया तो उसने तिब्बती आवाज को बेरहमी से कुचलने का फैसला किया। चीनी दमन के अनगिनत शिकारों में से एक शख्स थे जिनका नाम तेजिंन ग्यात्सो था, जिन्हें पूरी दुनिया 14वें दलाई लामा के तौर पर जानती है। दलाई लामा चीनी फौज से बचते हुए भारत आए जहां सरकार ने उन्हें धार्मिक नेता के तौर पर शरण दी। लेकिन चीन को लगने लगा कि उसके एक विद्रोही को शरण देकर भारत ने छल किया है। इस पृष्ठभूमि में भारत को चीन अपना स्वभाविक दुश्मन मान बैठा।
दलाई लामा = ज्ञान का महासागर
मंगोलिया भाषा में दलाई लामा मतलब ज्ञान का महासागर है। ये कोई नाम नहीं है बल्कि दलाईलामा के अवतार के रूप में जन्म लेने वाले को मिलने वाली एक पहचान है। दलाईलामा की पदवी सबसे पहले तिब्बत के तीसरे सर्वोच्च धर्मगुरु सोनम ज्ञाछो को मंगोलिया ने दी थी।
चीन तय करेगा दलाई लामा
चीन ने इस बार खुद अगला दलाईलामा तय करने का दावा किया हो, लेकिन तिब्बती परंपरा के आगे यह फीका पड़ जाएगा क्योंकि दलाईलामा के हर अगले अवतार को दलाईलामा खुद तय करते आए हैं। हर दलाईलामा अपनी मौत से पहले ऐसे संकेत वरिष्ठ लामाओं को देकर जाते हैं, जिससे उनके अगले अवतार की पहचान आसानी से की जा सके। मौजूदा समय में यह परंपरा 14वें दलाईलामा तक पहुंची है।
कम रोचक नहीं है 14वें दलाईलामा की पहचान
मौजूदा दलाईलामा का असली नाम तेजिंन ग्यात्सो है। तेजिंन ग्यात्सो बनने से उनका नाम ल्हामो थोंडुंप था।ल्हामो थोंडुंप का तिब्बती भाषा में अर्थ मनोकामना करने वाला होता है। छह जुलाई, 1935 को उत्तरी तिब्बत में आमदो के छोटे से गांव तकछेर में एक किसान परिवार में एक बालक का जन्म हुआ। उस समय बच्चे के व्यवहार को देखते हुए माता-पिता ने ल्हामो थोंडुप नाम दिया। दो वर्ष की आयु में ल्हामो थोंडुप की पहचान तिब्बत के वरिष्ठ लामाओं ने 13वें दलाईलामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की। थुबतेन ग्यात्सो ने जो संकेत अपनी मौत से पहले दिए थे, उन संकेतों से ही 14वें दलाईलामा की पहचान हुई थी।
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जानकार की राय
Jagran.com से खास बातचीत में रक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार पी के सहगल ने बताया कि चीन कभी भी उभर रहे भारत को स्वीकार नहीं कर सका। चीन को इस बात का डर हमेशा रहता है कि सशक्त भारत उसकी राह को कठिन बना देगा। पश्चिमी देशों के साथ भारत की बढ़ती नजदीकियां भी चीन को नागवार गुजरती है। लिहाजा वो कभी घुसपैठ करता है तो कभी दलाई लामा का मुद्दा उठाता है। जहां तक दलाई लामा की बात है तो भारत सरकार का रुख साफ है कि उन्हें राजनीतिक शरण नहीं दी गई थी।
2011 में लिया था बड़ा फैसला
2011 में मौजूदा दलाईलामा ने एक बड़ी परंपरा को तोड़ दिया था। दलाईलामा ही तिब्बत के सर्वोच्च राजनीतिक प्रमुख होते थे। यानी राजनीति से धर्म तक सभी निर्णय दलाईलामा ही लेते थे, लेकिन 29 मई, 2011 को दलाईलामा ने राजनीतिक अधिकार खुद एक प्रक्रिया के तहत निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रमुख को सौंप दिए थे। अब दलाईलामा केवल सर्वोच्च धर्मगुरु ही हैं।
1959 में दलाईलामा को अपने कई अनुयायियों के साथ देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। दलाईलामा बेहद जोखिम भरे रास्तों को पारकर भारत पहुंचे थे। कुछ दिन उन्हें देहरादून में ठहराया गया था। उसके बाद उन्हें धर्मशाला के मैक्लोडगंज में रहने की सुविधा दी गई है। यहां उनका पैलेस, बौद्ध मंदिर है। इसके कुछ फासले पर ही निर्वासित तिब्बत सरकार भी कार्य करती है।
तवांग पर तनातनी
चीन हमेशा कहता है कि भारत का अरुणाचल प्रदेश उसका अभिन्न अंग है। हाल ही में चीन ने अरुणाचल के 6 जिलों के नाम तक बदल दिये थे। इसके अलावा चीन की तरफ से भारतीय इलाकों में (लद्दाख और अरुणाचल में) घुसपैठ की खबरें आती ही रहती हैं। लेकिन तवांग के मुद्दे पर चीन की त्यौरी चढ़ जाती है। चीनी सरकार को लगता है कि तवांग के जरिए भारत चीन की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है। दलाई लामा, भारत के हाथों में खेल रहे हैं जिनके जरिये चीन को अस्थिर करने की साजिश रची जा रही है। लेकिन भारत सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि दलाई लामा और उनके अनुयायियों को न तो राजनीतिक शरण दी गई थी न ही तिब्बत के अंदर भारत की तरफ से किसी तरह की राजनीतिक पहल को भारत बढ़ावा दे रहा है।
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