पीएफ की पेंशन स्कीम में हो सकता है बदलाव
पीएफ निकासी की अधिसूचना रद होने के बाद कर्मचारी पेंशन योजना में बदलाव की उम्मीदें तेज हो गई हैं।
संजय सिंह, नई दिल्ली। कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) से निकासी को लेकर फरवरी की अधिसूचना रद होने के साथ ही कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में संशोधन की उम्मीदों को बल मिला है। कर्मचारी संगठनों ने 15,000 रुपये से अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों की पेंशन बढ़ाने के लिए ईपीएस में नियोक्ताओं के योगदान को 8.33 फीसद से बढ़ाकर 9.99 फीसद करने का सुझाव दिया है।
पेंशन का फॉर्मूला
ईपीएस का संचालन ईपीएफ के पैसे से ही होता है। ईपीएफ में कर्मचारी और नियोक्ता दोनों का योगदान होता है। ईपीएफ के लिए प्रत्येक नियोक्ता को कर्मचारी के वेतन से 12 फीसद राशि काटकर कर्मचारी के ईपीएफ खाते में जमा करानी पड़ती है। साथ ही इतनी ही राशि वह अपनी ओर से भी जमा करता है। नियोक्ता की ओर से जमा कराई जाने वाली इस राशि में से 3.67 फीसद राशि ईपीएफ में जाती है। जबकि शेष 8.33 फीसद पैसा ईपीएस के खाते में जाता है।
ज्यादा वेतन होने पर परेशानी
अभी 15 हजार रुपये तक वेतन पाने वाले कर्मचारियों के पेंशन खाते में 1.66 फीसद राशि का योगदान सरकार की ओर से भी किया जाता है। लेकिन इससे अधिक वेतन पाने वालों को सरकार कोई मदद नहीं देती। हालांकि ईपीएस में योगदान के लिए सभी कर्मचारियों का अधिकतम वेतन 15,000 रुपये ही माना जाता है। नतीजा यह है कि कम वेतन वालों को तो बेहतर पेंशन (न्यूनतम 1000 रुपये मासिक) मिलने लगी है। लेकिन इससे अधिक वेतन पाने वाले लाखों कर्मचारियों को कम पेंशन के हकदार हैं। ईपीएस का आकर्षण कम होने से अगर सदस्य पैसा निकाल लेते हैं तो वे पेंशन पाने का हक भी खो बैठते हैं। कर्मचारी संगठनों ने इस विषमता को दूर करने के लिए सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं।
स्कीम में सुझाव के लिए सुधार
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने इनमें से एक सुझाव का जिक्र किया। इसके अनुसार 15 हजार रुपये से अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों की पेंशन बढ़ाने के लिए उनके ईपीएस खाते में नियोक्ता के 8.33 फीसद योगदान के साथ ईपीएफ के शेष 3.67 फीसद योगदान से ही 1.66 फीसद काटकर ईपीएस खाते में डाला जाना चाहिए। इससे सरकार के योगदान के बगैर ही इन कर्मचारियों की पेंशन भी बढ़ जाएगी। कर्मचारी भी इसका शायद ही विरोध करेंगे।
पेंशन के लिए बदले गए थे ईपीएफ नियम
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के महासचिव विरजेश उपाध्याय की मानें तो ईपीएफ निकासी पर फरवरी की अधिसूचना अधकचरी थी। इसी कारण सरकार को इसे रद करना पड़ा। इसे ईपीएफओ के उन अफसरों ने तैयार किया था जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं जबकि हमने ईपीएफ नियमों में बदलाव का सुझाव निजी क्षेत्र के लाखों कर्मचारियों की ईपीएफ सदस्यता को नौकरी बदलने के बाद भी बनाए रखने के लिए दिया था। ताकि उन्हें पेंशन का लाभ दिलाया जा सके। हकीकत यह है कि निजी क्षेत्र के कर्मचारी चार-पांच साल में नौकरी बदलते रहते हैं। पूरा ईपीएफ निकालने पर उनका ईपीएफ खाता बंद हो जाता है। और इसी के साथ पेंशन की संभावना भी समाप्त हो जाती है क्योंकि ईपीएस की पेंशन पाने के लिए 10 साल तक लगातार नौकरी की शर्त है।
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