लोकपाल की नियुक्ति का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने रखा सुरक्षित
कानून के प्रावधानों के अनुसार संसद में प्रतिपक्ष के नेता पद का दावा करने के लिये सबसे बड़े विपक्षी दल के पास एक निश्चित संख्या में सांसद होने चाहिए।
नई दिल्ली (एजेंसी)। देश में लोकपाल की नियुक्ति की मांग संबंधी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'हमने सभी पक्षों की दलीलों को सुन लिया है।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में लोकपाल की नियुक्ति नहीं की जा सकती क्योंकि लोकपाल अधिनियम में नेता प्रतिपक्ष की परिभाषा संबंधी संशोधन अभी संसद में लंबित है। लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 के मुताबिक लोकपाल चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष भी शामिल होगा। वर्तमान में लोकसभा में कोई भी नेता प्रतिपक्ष नहीं है। उन्होंने बताया कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के पास पर्याप्त संख्या में सांसद नहीं हैं, इसलिए नेता प्रतिपक्ष का पद उसे नहीं दिया गया है।
नियमों के मुताबिक, नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए सबसे बड़े विपक्षी दल की सदस्य संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या (545) का कम से कम दस फीसद होना चाहिए। लेकिन, लोकसभा में कांग्रेस के सिर्फ 45 ही सदस्य हैं। रोहतगी ने कहा कि जब तक सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने संबंधी प्रस्तावित संशोधन संसद में पारित नहीं हो जाता, तब तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं की जा सकती।
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) 'कॉमन कॉज' की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शांति भूषण ने कहा कि संसद ने 2013 में ही लोकपाल विधेयक को पारित कर दिया था और यह 2014 में प्रभावी हो गया था। इसके बावजूद सरकार जानबूझ कर लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि लोकपाल अधिनियम में बाध्यता है कि लोकपाल की नियुक्ति जल्द से जल्द हो जानी चाहिए।
बता दें कि कानून में लोकपाल के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति एक समिति के माध्यम से करने का प्रावधान है। इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, प्रधान न्यायाधीश या उनकी ओर से नामांकित सुप्रीम कोर्ट का कोई जज और उक्त चारों के परामर्श पर राष्ट्रपति की ओर से नामांकित प्रख्यात ज्यूरिस्ट शामिल हैं।