हुर्रियत-पाक बातचीत पर केंद्र का यू टर्न, सरकार को अब नहीं है ऐतराज
जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं और पाकिस्तान से बातचीत पर केंद्र सरकार ने यू टर्न लिया है। सरकार को अब ऐतराज नहीं है। केंद्र के फैसले का नेशनल कॉन्फ्रेंस ने स्वागत किया है।
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं द्वारा पाकिस्तान के साथ बातचीत पर केंद्र सरकार के रुख में नरमी देखने को मिल रही है। बतााया जा रहा है कि केंद्र सरकार को हुर्रियत नेताओं और पाकिस्तान के साथ बातचीत करने में ऐतराज नहीं। लोकसभा में एक जवाब में विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। और हुर्रियत नेता भारत के नागरिक हैं। लिहाजा वो किसी से भी बातचीत कर सकते हैं। लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत में तीसरे पक्ष की भूमिका का कोई मतलब नहीं है।
हुर्रियत को लेकर पाक नीति में बदलाव नहीं-अब्दुल बासित
भारत सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि मौजूदा सरकार दिशाहीन और अदूरदर्शी है। हुर्रियत नेताओं और पाकिस्तानी अधिकारियों के बीच संवाद कायम करने वाले बयान की उन्होंने सराहना की। उन्होंने कहा कि देर से ही सही ये फैसला स्वागतयोग्य है।
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत शिमला समझौता और लाहौर घोषणापत्र के मुताबिक ही होगी। भारत इस मुद्दे पर अपनी भूमिका कई बार साफ कर चुका है।
अगस्त 2014 में पाकिस्तान हाईकमिश्नर अब्दुल बासित और हुर्रियत नेताओं की मुलाकात के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद कर दी थी।
2001 में आगरा समिति के बाद से ही हुर्रियत के नेता पाकिस्तान से बातचीत करते रहे हैं। हालांकि भारत सरकार ने इस तरह की बातचीत को कभी पसंद नहीं किया। भारत सरकार की तरफ से स्पष्ट तौर से कहा जाता रहा है कि हुर्रियत और पाक के बीच बातचीत का कोई आधार नहीं है। 2015 में ऊफा घोषणापत्र के मुताबिक भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत में हुर्रियत का मामला सामने आया। हुर्रियत नेताओं की बातचीत की वजह से दोनों देशों के बीच वार्ता टल भी गयी। इन सब घटनाक्रम के बाद मोदी सरकार की पाक नीति पर जमकर आलोचना हुई।