यूएन सैन्य समूह को बंगला खाली करने का फरमान
भारत ने एक कड़ा कदम उठाते हुए शुक्रवार को भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र के सैन्य पर्यवेक्षक समूह (यूएनएमओजीआइपी) को देश की राजधानी में स्थित सरकारी बंगला खाली करने को कहा। यह समूह 40 साल से बगैर किसी किराये के सरकारी बंगले पर काबिज है। सरकार ने कहा है कि यह समूह अपनी प्रासंगिकता खा
नई दिल्ली। भारत ने एक कड़ा कदम उठाते हुए शुक्रवार को भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र के सैन्य पर्यवेक्षक समूह (यूएनएमओजीआइपी) को देश की राजधानी में स्थित सरकारी बंगला खाली करने को कहा। यह समूह 40 साल से बगैर किसी किराये के सरकारी बंगले पर काबिज है। सरकार ने कहा है कि यह समूह अपनी प्रासंगिकता खो चुका है लेकिन उसके इस कदम का कश्मीर विवाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने भी इस खबर की पुष्टि करते हुए कहा है कि यूएनएमओजीआइपी को बंगला खाली करने को कहा गया है। जम्मू-कश्मीर में सैन्य गतिविधियों पर नजर रखने वाले इस समूह के खिलाफ सरकार के इस कदम पर राजनीतिक दलों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है। भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने इसका स्वागत किया है जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा ने इस पर सरकार से स्पष्टीकरण देने की मांग की है।
उन्होंने कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि इससे हमारी सुरक्षा पर क्या अंतर आएगा। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने सरकार के इस फैसले का यह कहते हुए स्वागत किया है कि भारत को कश्मीर मुद्दा निपटाने के लिए किसी बाहरी ताकत की जरूरत नहीं है। हम सरकार के कदम का स्वागत करते हैं। यह नई सोच वाली नई सरकार है। हमें कश्मीर मामले में हस्तक्षेप करने वाले किसी की जरूरत नहीं है।
यूएनएमओजीआइपी के कार्यालय की स्थापना यह सुनिश्चित करने के लिए की गई थी कि भारत और पाकिस्तान सीज फायर समझौते का अनुपालन करें। यह समूह पहली बार वर्ष 1949 के जनवरी में कश्मीर में निरीक्षण के लिए आया था। ज्ञातव्य है कि भारत और पाकिस्तान दोनों पूरे कश्मीर को अपना बताते हैं। भारत इस विवाद में किसी के हस्तक्षेप या आलोचना को प्रोत्साहन नहीं देता। दोनों देश आजादी के बाद से लड़े तीन युद्धों में से दो कश्मीर को लेकर ही लड़े हैं।
केंद्रीय दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के कोने पर स्थित इस बंगले पर शुक्रवार को इस समूह के मेजर निकोलस डायज ने कहा, कोई कारण नहीं बताया गया है। हमें बंगला खाली करने को कहा गया है। विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि यह कदम भारत में संयुक्त राष्ट्र की संस्था की मौजूदगी कम करने के प्रयास का हिस्सा है। प्रवक्ता सैयद अकबरुदीन ने कहा कि यह फैसला लंबे समय से चले आ रहे भारत के इस नजरिये के अनुरूप है कि यूएनएमओजीआइपी अपनी प्रासंगिकता खो चुका है।
भारत का कहना है कि भारत और पाकिस्तान ने 1972 में जब यह करार कर लिया कि दोनों देश कश्मीर पर अपने विवाद का मिलकर समाधान करेंगे तो संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी की कोई भूमिका नहीं बचती। डायज का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में कहा गया है कि यह संस्था भारत-पाक सीमा पर नजर रखेगी और सीज फायर करार के उल्लंघनों की रिपोर्ट देगी।
वहीं दूसरी ओर ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी गुट के अध्यक्ष मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने नई दिल्ली स्थित यूएनएमओजीपी के कार्यालय को केंद्र सरकार द्वारा खाली कराए जाने की निंदा है। साथ ही कहा है कि अगर यूएनएमओजीपी के पास कार्यालय चलाने के लिए पैसा नहीं है तो कश्मीर के लोग यह खर्च उठाने को तैयार हैं।
शुक्रवार को जामिया मस्जिद में नमाज-ए-जुम्मा से पूर्व नमाजियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हमेशा प्रयास करती है कि किसी न किसी बहाने कश्मीर समस्या के स्वरूप को बदला जाए। केंद्र सरकार को कश्मीर समस्या से मुंह मोड़ने के बजाय इसे हल करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।
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