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सरकारी महकमे बेकार के मुकदमे वापस लें या जल्द निपटाएं: केंद्र

कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने सभी मुख्यमंत्रियों और केन्द्रीय मंत्रालयों को पत्र लिखकर कहा है कि वे सरकारी मुकदमों की समीक्षा करें।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Sun, 19 Mar 2017 07:34 PM (IST)Updated: Sun, 19 Mar 2017 07:43 PM (IST)
सरकारी महकमे बेकार के मुकदमे वापस लें या जल्द निपटाएं: केंद्र

माला दीक्षित (नई दिल्ली)। अदालतें मुकदमों के बोझ से कराह रही हैं। लंबित तीन करोड़ से ज्यादा मुकदमों में करीब आधे सरकारी हैं। लेकिन अब सरकार ने न्याय को रफ्तार देने और अदालतों से सरकारी मुकदमों का बोझ घटाने के लिए कमर कस ली है। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने सभी मंत्रालयों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर कहा है कि वे सरकारी मुकदमों की समीक्षा करें और लंबित मुकदमों को निपटाने के लिए विशेष अभियान चलाएं। गैर जरूरी मुकदमों को चिन्हित कर या तो वापस लिया जाए या फिर उनका जल्दी निपटारा कराया जाए। इतना ही नहीं सभी राज्य और मंत्रालय इस बारे में कानून मंत्रालय को तिमाही रिपोर्ट भेजेंगे जिसमें बताया जाएगा कि कितने मुकदमें वापस लिए गये, कितने में सुलह हुई और कितने निपटाए गए।

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कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने अपने सभी कैबिनेट सहयोगियों और सभी राज्यों को मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर अदालतों में मुकदमों के बोझ और सरकार के सबसे बड़े मुकदमेंदार होने पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि सरकार को बेवजह की मुकदमेंबाजी से बचना चाहिए। क्योंकि देश भर की अदालतों में करीब 3.14 करोड़ मुकदमें लंबित हैं जिसमें से 46 फीसद सरकार के हैं।

न्यायपालिका का ज्यादातर वक्त सरकार के मुकदमों में ही चला जाता है। न्यायपालिका का बोझ तभी घट सकता है जबकि मुकदमें सोच विचार कर दाखिल किये जायें। लंबित मुकदमों को निपटाने के लिए तत्काल उपाय करने की जरूरत है। प्रसाद ने मंत्रालयों और सरकारी विभागों से कहा है कि वे प्राथमिकता के आधार पर लंबित मुकदमों की समीक्षा करें और उनके जल्द निस्तारण के लिए विशेष अभियान चलाएं। मुकदमों की समीक्षा करते समय मुकदमा जारी रखने में आने वाले खर्च, लगने वाले समय और याचिकाकर्ता को मिलने वाली राहत के पहलू को भी ध्यान में रखा जाए।

प्रसाद ने कहा कि वे जानते हैं कि हर मंत्रालय के पास विवाद और मुकदमों से निपटने का एक तंत्र होता है लेकिन अब इसे और प्रभावी बनाने की जरूरत है ताकि अदालतों से मुकदमों का बोझ घटे। प्रत्येक मामले में मुकदमा दाखिल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श होना चाहिए। सरकार को बाध्यकारी मुकदमेंबाजी बंद करनी चाहिए। कोई भी मुकदमा दाखिल करने से पहले उसे सक्षम अथारिटी के सामने पेश किया जाना चाहिए। जो ये देखेगी कि क्या मुकदमें को टाला जा सकता है। अगर नहीं टाला जा सकता तो विवाद के वैकल्पिक निपटारे जैसे मध्यस्थता आदि पर विचार किया जायेगा। सरकारी विभागों के बीच मुकदमेंबाजी हतोत्साहित होनी चाहिए, बहुत जरूरी होने पर अंतिम उपाय के तौर पर ही मुकदमा किया जाये।

सरकार के वकील द्वारा बार बार अदालती कार्यवाही में स्थगन लेना और बाधा डालने को गंभीरता से लिया जाये। पत्र में कहा गया है कि सभी मंत्रालय और विभाग मुकदमों की संख्या घटाने के लिए कार्य योजना बनाएंगे और लंबित मुकदमों को कम करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए विशेष अभियान चलाएंगे। प्रत्येक मंत्रालय और विभाग मुकदमों की संख्या घटने के बारे में तिमाही रिपोर्ट देखा। प्रसाद ने इस पर जल्दी से जल्दी अमल करने का आग्रह किया है। कानून मंत्री ने न्याय विभाग के सचिव को निर्देश दिया है कि वह मंत्रालयों के साथ नियमित बैठक कर इसकी समीक्षा करेंगे।

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