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फर्जी मुठभेड़ मामलों में अमित शाह बरी

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को विशेष सीबीआइ अदालत ने फर्जी मुठभेड़ के आरोपों से बरी कर दिया है। न्यायाधीश एमबी गोसावी ने शाह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जांच एजेंसी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर पूरी तरह गौर करने के बाद उसके आरोपों से

By vivek pandeyEdited By: Published: Tue, 30 Dec 2014 11:43 AM (IST)Updated: Wed, 31 Dec 2014 06:01 AM (IST)
फर्जी मुठभेड़ मामलों में अमित शाह बरी

मुंबई, राज्य ब्यूरो। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को विशेष सीबीआइ अदालत ने फर्जी मुठभेड़ के आरोपों से बरी कर दिया है। न्यायाधीश एमबी गोसावी ने शाह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि जांच एजेंसी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर पूरी तरह गौर करने के बाद उसके आरोपों से सहमत नहीं हुआ जा सकता है। इसलिए आवेदक को बरी किया जाता है। अमित शाह ने विशेष सीबीआइ अदालत में स्वयं को इस मामले से बरी करने का आग्रह करते हुए तर्क दिया था कि उन्हें राजनीतिक कारणों से फंसाया जा रहा है। इस वर्ष की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर मामलों की सुनवाई अहमदाबाद से मुंबई हस्तांतरित कर दी गई थी। दोनों मामलों में शाह सहित डीजी वंजारा एवं राजकुमार पांडियन जैसे कुछ पुलिस अधिकारियों को जमानत भी मिल गई थी।

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क्या है मामला

लश्कर-ए-तैयबा से संबंध रखनेवाले सोहराबुद्दीन का नवंबर, 2005 और उसके एक साथी तुलसी प्रजापति का दिसंबर, 2006 में गुजरात में एनकाउंटर कर दिया गया था। सीबीआइ ने अमित शाह एवं कुछ पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों सहित कुल 37 लोगों को इन मामलों में आरोपी बनाया था।

जांच एजेंसी का आरोप

सीबीआइ ने सितंबर, 2013 में शाह सहित 37 लोगों के विरुद्ध आरोपपत्र पेश किया था। जांच एजेंसी का आरोप था कि सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी का अपहरण कर सोहराबुद्दीन को फर्जी मुठभेड़ में मार डाला गया था। सीबीआइ के अनुसार, चूंकि तुलसीराम प्रजापति सोहराबुद्दीन मामले का चश्मदीद गवाह था, इसलिए सबूत मिटाने के लिए अगले साल फर्जी मुठभेड़ में उसे भी मार डाला गया।

कोर्ट ने कहा

* फर्जी मुठभेड़ के मामलों में अमित शाह की भागीदारी साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।

* जिन गवाहों के बयान के आधार पर शाह को आरोपी बनाया गया है, उनमें कई विसंगतियां हैं।

* शाह और अन्य आरोपियों की बातचीत के रिकार्ड से साजिश की बात साबित नहीं होती है।

* सभी प्रमाण विश्वसनीय होने चाहिए और उनके बीच तार जुड़े होने चाहिए। ऐसा नहीं है।

शाह को क्लीन चिट से सोहराब के भाई दुखी

नई दुनिया, उज्जैन। सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को क्लीन चिट मिलने से गांव झिरनिया में रह रहे सोहराबुद्दीन के परिजन दुखी हैं। सोहराब के छोटे भाई और भाजपा के मंडल मंत्री शहनवाजुद्दीन ने कहा कि दुख तो है, लेकिन ये न्यायालयी प्रक्रिया है। अभी जांच पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। सपा के प्रदेश सचिव व सोहराबुद्दीन के एक अन्य छोटे भाई नायबउद्दीन शेख का कहना है कि पूरे मामले में सीबीआइ की भूमिका संदिग्ध है। इसका अहसास तीन साल पहले ही हो गया था, तब उन्होंने इसकी शिकायत भी की थी। उसके बाद सीबीआइ ने मेरी सुरक्षा हटा दी थी। करीब दो दशक पूर्व छोटा सा गांव झिरनिया सुर्खियों में आया था। 1994 में गुजरात पुलिस ने गांव के बाहर बने एक कुएं से एके 47 बंदूकों का जखीरा बरामद करने का दावा किया था।

शाह के खिलाफ साजिश के लिए माफी मांगें सोनिया

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। फर्जी एनकाउंटर मामले से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को बरी किए जाने को सच्चाई की जीत करार देते हुए केंद्र सरकार और भाजपा ने दोहराया कि इससे कांग्र्रेस के षड्यंत्र और सीबीआइ के दुरुपयोग का पर्दाफाश हो गया है। मंगलवार को शाह पर आए मुंबई विशेष अदालत के फैसले के बाद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर खुशी जताई और कहा कि कोर्ट ने भाजपा की बात साबित कर दी है। संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे प्रतिशोधात्मक मामला करार देते हुए कहा कि उसमें वैधानिक तथ्यों की सर्वथा कमी थी। फैसला यही होना था। कोर्ट ने सिर्फ सच्चाई बयां की है।

अदालत के फैसले के बाद भाजपा मुख्यालय में जश्न का माहौल था और खुद शाह उसका हिस्सा थे। जश्न के बाद राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि यह किसी से छिपा नहीं है कि सीबीआइ का दुरुपयोग हुआ था और वह नेतृत्व के इशारे पर हुआ था। लिहाजा कांग्रेस अध्यक्ष को देश से क्षमा मांगनी चाहिए।

सीबीआइ को फैसले की प्रति इंतजार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। विशेष अदालत के फैसले पर सीबीआइ ने चुप्पी साध रखी है। इस मामले में सीबीआइ का कोई भी अधिकारी बोलने के लिए तैयार नहीं है। सीबीआइ आधिकारिक रूप से सिर्फ अदालत के फैसले की प्रति का इंतजार करने की बात कह रही है। सीबीआइ के अनुसार फैसले की प्रति मिलने के बाद ही उस पर आगे की कार्रवाई का निर्णय लिया जाएगा। वैसे कानूनी विशेषज्ञों की मानें तो फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करने में सीबीआइ के हाथ बंधे हुए हैं। इसके लिए सीबीआइ को पहले केंद्रीय कानून मंत्रालय की अनुमति लेनी होगी।

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